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पाकिस्तानी सूफी संत के शव को भारत लाने की गुहार, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये जवाब

सूफी संत हजरत शाह मुहम्मद अब्दुल मुक्तदिर शाह मसूद अहमद की 2022 में बांग्लादेश में मृत्यु हो गयी थी। उनके पार्थिव शरीर को प्रयागराज में दफनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी जिसे सीजेआई ने खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने दरगाह द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ये मुमकिन नहीं है।

By Agency Edited By: Mahen Khanna Updated: Fri, 05 Apr 2024 03:48 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट में आया अलग ही मामला।
एजेंसी, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में भारत में जन्मे पाकिस्तानी सूफी संत के पार्थिव शरीर को बांग्लादेश से लाने के लिए अर्जी दाखिल की गई। सूफी संत हजरत शाह मुहम्मद अब्दुल मुक्तदिर शाह मसूद अहमद की 2022 में बांग्लादेश में मृत्यु हो गयी थी। उनके पार्थिव शरीर को प्रयागराज में दफनाने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसे सीजेआई ने खारिज कर दिया। 

वसीयत का दिया गया हवाला

याचिका में 1992 में पाकिस्तानी नागरिकता हासिल करने वाले प्रयागराज के पूर्व मूल निवासी सूफी संत की वसीयत का हवाला दिया गया था। इसमें कहा गया है कि उनके पार्थिव शरीर को उत्तर प्रदेश के शहर की दरगाह में दफनाया जाएगा, जिसकी उन्होंने अध्यक्षता की थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

शीर्ष अदालत ने दरगाह द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि वह एक पाकिस्तानी नागरिक था। आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि भारत सरकार उसके अवशेषों को भारत में दफनाने के लिए लाएगी। ऐसा कोई अधिकार नहीं है जिसके प्रवर्तन की मांग की जा सके। 

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ''हमें संवैधानिक अधिकारों के प्रवर्तन के सिद्धांतों के अनुसार भी चलना होगा। उन्होंने कहा कि अगर वह भारतीय नागरिक होते तो याचिका पर ध्यान दिया गया होता।''

दरगाह की ओर से पेश वकील ने कहा कि अहमद का पाकिस्तान में कोई परिवार नहीं है और इसके अलावा, सूफी संत दरगाह के 'सज्जादा नशीन' थे। पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया कि सूफी संत के पार्थिव शरीर को भारत लाने की मांग करने का कोई संवैधानिक रूप से योग्य अधिकार नहीं है, क्योंकि वह पाकिस्तानी नागरिक थे।