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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, खसखस के परीक्षण में मारफीन मिली तो कोई और टेस्ट जरूरी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार अगर जब्त किए गए खसखस के परीक्षण में मारफीन और मेकोनिक एसिड की मात्रा मिल गई तो नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत आरोपित का दोष स्थापित करने के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं है।

By AgencyEdited By: Amit SinghUpdated: Fri, 21 Oct 2022 02:39 AM (IST)
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खसखस के परीक्षण में मारफीन और मेकोनिक एसिड की मात्रा
नई दिल्ली, आइएएनएस: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि एक बार अगर जब्त किए गए खसखस (पोपी स्ट्रा या अफीस के फल की भूसी) के परीक्षण में मारफीन और मेकोनिक एसिड की मात्रा मिल गई तो नार्कोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट के तहत आरोपित का दोष स्थापित करने के लिए किसी अतिरिक्त परीक्षण की जरूरत नहीं है।

हाई कोर्ट का कथन न्यायोचित नहीं

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, 'हमारा मानना है कि हाई कोर्ट का यह कहना न्यायोचित नहीं था- भले ही रसायन परीक्षक की रिपोर्ट यह स्थापित करती हो कि निषिद्ध पदार्थ में मेकोनिक एसिड और मारफीन है तब भी जब तक यह स्थापित नहीं होता कि उसे पापावेर सोम्निफेरम-एल से निकाला गया था, एनडीपीएस एक्ट की धारा-15 के तहत दोषसिद्धि को बरकरार नहीं रखा जा सकता।'

हिमाचल प्रदेश सरकार की अपील को अनुमति

इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने वकील अभिनव मुखर्जी के जरिये दाखिल हिमाचल प्रदेश सरकार की अपील को अनुमति प्रदान कर दी। इसमें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी जिसने निर्मल कौर की दोषसिद्धि और सजा को रद कर दिया था। निर्मल के पास से नौ बोरी में लगभग 350 किलोग्राम खसखस की भूसी (पोपी हस्क) बरामद हुई थी।

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा, 'हाई कोर्ट का यह कहना भी तर्कसंगत नहीं था कि रासायन परीक्षक की रिपोर्ट में विकल्प तौर पर यह स्थापित किया जाना चाहिए कि जब्त सामग्री पापावेर की किसी अन्य प्रजाति का हिस्सा है जिसमें से अफीम या कोई फेनेंथ्रीन अल्कलाइड निकाला जा सकता है और जिसे 1985 के अधिनियम के उद्देश्य के लिए केंद्र द्वारा अफीम के रूप में अधिसूचित किया गया है।'