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'कानून के तहत लोगों को खंभे से बांधकर पीटने का अधिकार है? जाओ जेल के मजे लो', SC ने गुजरात पुलिसकर्मियों को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात के खेड़ा में पांच मुस्लिम समुदाय के लोगों को सरेआम पीटने पर गुजरात पुलिस के अधिकारियों की फटकार लगाई है। शीर्ष कोर्ट ने गुस्से में पुलिस से पूछा कि उन्हें इन लोगों को खंभे से बांधने और पीटने का अधिकार कहां से मिला? इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने चार पुलिस वालों को पहले ही सजा सुना चुका है।

By Jagran News Edited By: Abhinav AtreyUpdated: Tue, 23 Jan 2024 07:36 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात पुलिसकर्मियों को लगाई कड़ी फटकार (फाइल फोटो)
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात के खेड़ा में पांच मुस्लिम समुदाय के लोगों को सरेआम पीटने पर गुजरात पुलिस के अधिकारियों की फटकार लगाई है। शीर्ष कोर्ट ने गुस्से में पुलिस से पूछा कि उन्हें इन लोगों को खंभे से बांधने और पीटने का अधिकार कहां से मिला?

इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने चार पुलिस वालों को पहले ही सजा सुना चुका है। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ आरोपी पुलिसवालों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख अख्तियार किया था। मामले को देखते हुए शीर्ष कोर्ट ने पुलिसवालों की अपील स्वीकार कर ली। हाई कोर्ट के फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है।

हाई कोर्ट ने 14 दिन के जेल की सजा सुनाई थी

हाई कोर्ट ने इंस्पेक्टर एवी परमार, एसआई डीबी कुमावत, हेड कांस्टेबल केएल दाभी और कांस्टेबल आरआर दाभी को संदिग्धों को हिरासत में लेने और पूछताछ करने के सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए अवमानना का दोषी माना था। इसके लिए कोर्ट ने चारों को 14 दिन के साधारण जेल की सजा सुनाई थी।

जाओ और हिरासत का आनंद लो- सुप्रीम कोर्ट

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने मामले में सुनवाई की। सुनवाई के दौरान नाराज जस्टिस गवई ने कहा, "क्या आपके पास कानून के तहत लोगों को खंभे से बांधने और उन्हें पीटने का अधिकार है? जाओ और हिरासत के मजे लो।"

आप चाहते हैं कि यह अदालत हस्तक्षेप करे? कोर्ट

जस्टिस मेहता ने गुजरात के पुलिस अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, "ये किस तरह के अत्याचार हैं? लोगों को खंभे से बांधना, सार्वजनिक तौर पर उनकी पिटाई करना और वीडियो बनाना। फिर आप चाहते हैं कि यह अदालत हस्तक्षेप करे।"

आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे पुलिसवाले

अधिकारियों की ओर से पेश सीनियर वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा चारों पुलिसवाले पहले से ही आपराधिक मुकदमा, विभागीय कार्यवाही और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच का सामना कर रहे हैं।

हाई कोर्ट के पास अवमानना कार्यवाही में सुनवाई का अधिकार है?

सिद्धार्थ दवे ने कहा कि यहां प्रश्न है कि क्या हाई कोर्ट के पास अवमानना कार्यवाही में उनके खिलाफ सुनवाई का अधिकार है? उन्होंने दलील दी कि इस समय प्रश्न इन अधिकारियों के दोष का नहीं बल्कि हाई कोर्ट के अवमानना मामले में अधिकार क्षेत्र का है। दवे ने कहा कि क्या इस अदालत के फैसले की जानबूझकर अवज्ञा की गई? इस प्रश्न का उत्तर तलाशना होगा। क्या पुलिसकर्मियों को फैसले की जानकारी थी?

जस्टिस गवई ने इस पर कहा कि कानून की जानकारी नहीं होना वैध बचाव नहीं है। उन्होंने कहा कि हर पुलिस अधिकारी को पता होना चाहिए कि डीके बसु मामले में क्या कानून निर्दिष्ट किया गया। विधि के छात्र के रूप में हम सुनवाई कर रहे हैं और डीके बसु फैसले के बारे में पढ़ रहे हैं।

ये है मामला

बता दें कि साल 2022 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें पांच लोगों को बीच सड़क पर खंभे से बांधकर पीटा गया था। जिन लोगों की सरेआम पिटाई की गई थी वो मुस्लिम समुदाय से थे। उन्हें पुलिस ने कथित तौर पर गरबा कार्यक्रम में पत्थरबाजी के आरोप में पकड़ा था।

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