'टैक्स नहीं है खनिजों पर लगने वाली रॉयल्टी,' सुप्रीम कोर्ट के फैसले से केंद्र सरकार को झटका
खनिजों पर टैक्स वसूलने के मामले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा खनिजों पर लगने वाली रॉयल्टी को टैक्स नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से केंद्र सरकार को झटका लगा है। बता दें कि राज्य सरकारों और खनन कंपनियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 86 याचिकाएं पहुंची थी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने खनिजों पर लगने वाली रॉयल्टी को लेकर अपना फैसला सुनाया है। एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र को एक बड़ा झटका देते हुए फैसला सुनाया कि खनिजों पर लगने वाली रॉयल्टी टैक्स नहीं है।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 8-1 बहुमत से अपने ही कई पुराने फैसलों को रद्द कर दिया। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संसद के पास संविधान की सूची II की प्रविष्टि 50 के तहत खनिज अधिकारों पर कर लगाने की शक्ति नहीं है।
'1989 में खनिजों पर आया फैसला गलत था'
प्रविष्टि 50 खनिज अधिकारों पर करों से संबंधित है, जो खनिज विकास के संबंध में संसद की तरफ से लगाई गई सीमाओं के अधीन है। सीजेआई ने यह भी कहा कि 1989 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जिसमें रॉयल्टी को कर के रूप में वर्गीकृत किया गया था गलत था।इस फैसले पर जज न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना ने असहमति जताई है। उन्होंने कहा कि केंद्र के पास देश में खनिज अधिकारों पर कर लगाने का विशेष अधिकार है और राज्यों को खनिकों की तरफ से भुगतान की गई रॉयल्टी पर अतिरिक्त लेवी लगाने का समान अधिकार देने से एक विषम स्थिति पैदा होगी।
सुप्रीम कोर्ट में पहुंची थी 86 याचिकाएं
अलग-अलग राज्य सरकारों और खनन कंपनियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में 86 याचिकाएं पहुंची थी। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 8 दिन तक सुनवाई चली। कोर्ट को को तय करना था कि खनिजों पर रॉयल्टी और खदानों पर टैक्स लगाने के अधिकार राज्य सरकार को होने चाहिए या नहीं।31 जुलाई को होगी सुनवाई
बता दें कि पीठ 31 जुलाई को इस पहलू पर पक्षों की सुनवाई करेगी कि क्या फैसले को पूर्वव्यापी या भावी प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए। पूर्वव्यापी आवेदन का मतलब पश्चिम बंगाल,ओडिशा और झारखंड सहित राज्य सरकारों को समृद्ध करना होगा जिनके पास नाबालिगों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने के लिए स्थानीय कानून हैं।
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