शख्स ने दिया शादी का प्रस्ताव फिर नहीं किया विवाह; महिला पहुंची कोर्ट; सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया ये फैसला
विवाह प्रस्ताव का विवाह पर अंत न होना धोखाधड़ी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक शख्स के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। दरअसल शख्स ने महिला के परिवार से बातचीत के बाद शादी करने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने माना कि विवाह प्रस्ताव शुरू करने और अंततः विवाह न हो पाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शादी के प्रस्ताव के लिए परिवार से बात करना और मिलना और उसके बावजूद विवाह के लिए राजी न होना धोखाधड़ी नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक शख्स के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
दरअसल, शख्स ने महिला के परिवार से बातचीत के बाद शादी करने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने माना कि विवाह प्रस्ताव शुरू करने और अंततः विवाह न हो पाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिसको देखते हुए व्यक्ति के खिलाफ मामले को खारिज कर दिया गया।
क्या है पूरा मामला?
एक मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, शख्स का नाम राजू कृष्ण शेडबलकर है और महिला ने राजू, उनके भाइयों, बहन और मां के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। महिला ने आरोप लगाया था कि दोनों परिवार मिले और उसके माता-पिता ने शेडबलकर को उसके लिए उपयुक्त पाया, जिसके बाद वे दोनों एक-दूसरे से बात करने लगे थे। महिला का आरोप है कि उन्होंने उससे शादी न करके धोखा दिया है।कर्नाटक हाई कोर्ट ने शख्स के खिलाफ सुनाया था फैसला
महिला ने यह भी आरोप लगाया कि उसके पिता ने विवाह स्थल बुक करने के लिए 75,000 रुपये का भुगतान भी किया, लेकिन तब उसे पता चला कि उस व्यक्ति ने किसी और से शादी कर ली है। 2021 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने उन्हें धारा 417 के तहत धोखाधड़ी का दोषी ठहराया, जिसमें एक साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
शख्स ने सुप्रीम कोर्ट का खटखटाया दरवाजा
कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए, राजू कृष्ण शेडबलकर ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। बुधवार को हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि पुरुष का महिला को धोखा देने का कोई इरादा था।सैद्धांतिक रूप से यह अभी भी संभव है कि ऐसे मामलों में धोखाधड़ी का अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष के पास पहले ऐसे मामले में मुकदमा चलाने के लिए विश्वसनीय और भरोसेमंद सबूत होने चाहिए। अभियोजन पक्ष के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है और इसलिए धारा 417 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।
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