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Dowry Murder: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कड़ा संदेश जाना चाहिए कि दहेज हत्या के अपराध से सख्ती से निपटा जाएगा

देवघर के गांव बसईपुर के इस मामले में नाशा देवी की शादी के एक साल के अंदर 12 अगस्त 1999 को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। ससुराल वालों ने उसके माता पिता को सूचना दिये बगैर जल्दबाजी में दाह संस्कार कर दिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Sun, 21 Aug 2022 08:02 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या में सास ससुर को 10 साल कैद की सजा पर लगाई मुहर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या के अपराध पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि समाज में कड़ा संदेश जाना चाहिए कि जो भी दहेज हत्या का अपराध करेगा उससे सख्ती से निपटा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि कानून निर्माताओं ने दहेज जैसी बुराई से कड़ाई से निपटने के लिए कानून में आइपीसी की धारा 304 बी (दहेज हत्या) जोड़ी थी। दहेज हत्या के मामले में विधायिका की इस मंशा का ध्यान रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि धारा 304 बी दहेज हत्या का अपराध समाज के खिलाफ अपराध है और इस अपराध का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या में सास ससुर को सजा पर लगाई मुहर

दहेज हत्या के अपराध में सजा देते वक्त इन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने दहेज हत्या के दोषी सास ससुर की याचिका खारिज करते हुए उन्हें दी गई 10 साल की कैद पर अपनी मुहर लगा दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने झारखंड में देवघर के दहेज हत्या के एक मामले में दोषी सास अझोला देवी व ससुर गोविंद महतो की याचिका खारिज करते हुए पिछले सप्ताह दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सत्र अदालत व हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि सत्र अदालत और हाई कोर्ट ने सही सजा दी है। उन्हें इसमें दखल देने की जरूरत नहीं लगती।

बहू की डायरिया से मौत की झूठी कहानी गढ़ी

पीठ ने दोनों की उम्र को देखते हुए सजा कम करने का अनुरोध खारिज करते हुए कहा कि दोनों को दहेज हत्या में दोषी ठहराया गया है। अभियोजन पक्ष ने दहेज मांगे जाने का अपराध साबित किया है। बहू की मौत शादी के एक साल के अंदर हुई है। दोषियों ने बहू की डायरिया से मौत की झूठी कहानी गढ़ी जो साबित नहीं कर पाए। पीठ ने कहा कि दहेज हत्या में न्यूनतम सात साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा है, ट्रायल कोर्ट ने दस साल के कारावास की सही सजा सुनाई है और हाई कोर्ट ने उसे बरकरार रख कर ठीक किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून में धारा 304बी (दहेज हत्या) को जोड़ने की विधायी मंशा दहेज की बुराई से सख्ती से निपटाना था। दहेज हत्या के मामलों में इस विधायी मंशा का ध्यान रखा जाना चाहिए।

दोषी किसी तरह की नरमी के हकदार नहीं

सास ससुर ने सजा को चुनौती देते हुए कहा था कि निचली अदालत और हाई कोर्ट ने आपराधिक न्यायशास्त्र का सिद्धांत ध्यान नहीं रखा जिसमें आरोप साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की होती है। पेश किये गए साक्ष्य संदेह से परे होने चाहिए और संदेह का लाभ अभियुक्तों को मिलना चाहिए। दूसरी ओर झारखंड सरकार के वकील विष्णु शर्मा ने याचिका का जोरदार विरोध किया। कहा दोषी किसी तरह की नरमी के हकदार नहीं हैं। ये मामला दहेज हत्या है। दहेज समाज के खिलाफ अपराध है। तीन चार मौकों पर दहेज मांगने की बात सामने आयी है। शर्मा ने कहा कि अपराध करते वक्त उम्र नहीं देखी जाती और अदालत से राहत मांगने में दोषी उम्र की दुहाई देते हैं।

सास ससुर ने सुप्रीम कोर्ट में सजा को दी थी चुनौती

देवघर के गांव बसईपुर के इस मामले में नाशा देवी की शादी के एक साल के अंदर 12 अगस्त 1999 को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। ससुराल वालों ने उसके माता पिता को सूचना दिये बगैर जल्दबाजी में दाह संस्कार कर दिया। 17 अगस्त को मामा ससुर ने नाशा देवी के पिता को बेटी के मरने की सूचना दी। जिसके बाद 19 अगस्त को पिता ने पति व सास ससुर के खिलाफ दहेज हत्या में प्राथमिकी दर्ज कराई।

पिता की शिकायत में कहा गया था कि जब से शादी हुई थी, तभी से ससुराल वाले लगातार दहेज की मांग कर रहे थे। उनकी बेटी बताती थी कि ससुराल वाले मोटर साइकिल और टीवी मांग रहे हैं। अगर उन्हें टीवी और मोटर साइकिल नहीं दी गई तो वे लोग उसे मार डालेंगे। हर बार जब नाशा मायके आती थी तो दहेज के लिए सताए जाने की शिकायत करती थी। पति व सास ससुर पर दहेज हत्या का मुकदमा चला और तीनों को निचली अदालत व हाई कोर्ट से दस साल की कैद हुई। सास ससुर ने सुप्रीम कोर्ट में सजा को चुनौती दी थी।