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SC: लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा को चेतावनी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा माननी होंगी जमानत की शर्तें

लखीमपुर खीरी 2021 हिंसा मामले में हत्या के आरोपित पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सख्त हिदायत देते हुए कहा कि वह जमानत की शर्तों का सख्ती से पालन करें। न्यायमूर्ति सूर्यकांत दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने पीड़ितों को अवमानना याचिका दायर करने की अनुमति दी। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को मिश्रा को जमानत दी थी।

By Agency Edited By: Jeet Kumar Updated: Thu, 24 Oct 2024 12:00 AM (IST)
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लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में आशीष मिश्रा को चेतावनी
 पीटीआई, नई दिल्ली। लखीमपुर खीरी 2021 हिंसा मामले में हत्या के आरोपित पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सख्त हिदायत देते हुए कहा कि वह जमानत की शर्तों का सख्ती से पालन करें।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने पीड़ितों को अवमानना याचिका दायर करने की अनुमति दी। पीठ ने मिश्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता से कहा कि जमानत शर्तों का सख्ती से पालन करना होगा।

वकील प्रशांत भूषण ने कही ये बात

पीड़ितों की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को मिश्रा को जमानत दी थी। साथ ही जमानत की शर्तों का पालन करने का निर्देश दिया था और उन्हें तय तारीख से केवल एक दिन पहले अपने मुकदमे के स्थान पर जाने की अनुमति दी थी। लेकिन वह एक अक्टूबर को वहां (लखीमपुर खीरी) ऐसे गए जैसे दो अक्टूबर को राष्ट्रीय अवकाश वाले दिन सुनवाई हो। जबकि अगले दिन अदालत बंद थी और उन्होंने एक अक्टूबर को एक विशाल सार्वजनिक रैली को संबोधित किया।

सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म मामले की सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाली

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वैवाहिक दुष्कर्म मामले की सुनवाई बुधवार को चार सप्ताह के लिए टाल दी है। दोनों पक्षों के वकीलों द्वारा अपनी दलीलें रखने के लिए मांगे गए एक-एक दिन के समय को देखते हुए चीफ जस्टिस को लगा कि मामले की सुनवाई दीपावली की छुट्टियों के पहले पूरी होनी संभव नहीं है, इसलिए सुनवाई चार सप्ताह के लिए टाल दी गई। चार सप्ताह बाद नयी पीठ मामले पर सुनवाई करेगी।

जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं जिनमें वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग की गई है। याचिकाओं में आइपीसी की धारा 375 के अपवाद दो और नये कानून बीएनएस की धारा 63 के अपवाद दो को रद करने की मांग की गई है जो पति को दुष्कर्म से छूट देता है।

वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण ने एक दिन का समय मांगा

बुधवार को मामला प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगा था। पीठ ने जब पक्षकारों के वकीलों से पूछा कि वे बहस के लिए कितना समय लेंगे, इस पर वरिष्ठ वकील गोपाल शंकर नारायण ने एक दिन का समय मांगा। उन्होंने कहा कि जितनी सामग्री रिकॉर्ड पर रखी गई है उसे देखते हुए उन्हें बहस के लिए एक दिन का समय चाहिए होगा।

बुधवार को मामले पर आगे सुनवाई होनी थी

सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि उन्हें एक दिन का समय चाहिए होगा क्योंकि इस मामले के परिणाम दूरगामी हैं। अन्य वकीलों ने भी इसी तरह समय मांगा जिसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि मामले की सुनवाई निकट भविष्य में पूरी करना संभव नहीं होगा। इस मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद नयी पीठ द्वारा की जाएगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर को सुनवाई शुरू की थी। एक याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी और कुछ और वकीलों की ओर से पक्ष रखा जा चुका था। बुधवार को मामले पर आगे सुनवाई होनी थी।

स्वामी श्रद्धानंद की याचिका पर विचार से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्वामी श्रद्धानंद (84) की याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। कारावास में पत्नी की हत्या के आरोपित श्रद्धानंद ने अदालत से उस फैसले की समीक्षा की मांग की थी, जिसमें उन्हें आजीवन कारावास का आदेश दिया गया था। न्यायमूर्ति बीआर गवई, पीके मिश्रा और केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को शेष जीवन के लिए जेल से रिहा करने से इनकार करने वाले फैसला संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) का उल्लंघन करता है।

इस पर पीठ ने कहा कि तर्क दिया जा सकता है कि तथ्यों के आधार पर यह उचित नहीं है। लेकिन एक सजा के रूप में इसे लागू किया जा सकता है, जिसे अब पांच न्यायाधीशों द्वारा बरकरार रखा गया है।

श्रद्धानंद ने पहले ही राष्ट्रपति को एक अभ्यावेदन दिया है

कर्नाटक राज्य और शिकायतकर्ता की ओर से पेश वकीलों ने सूचित किया है कि श्रद्धानंद ने पहले ही राष्ट्रपति को एक अभ्यावेदन दिया है। इस पर पीठ ने कहा कि मामले को देखते हुए, नहीं लगता कि मौजूदा कार्यवाही में किसी हस्तक्षेप की जरूरत है। गौरतलब है कि श्रद्धानंद की पत्नी मैसूर की तत्कालीन रियासत के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्माइल की पोती थीं।