सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कर्जदारों की जवाबी याचिका पर सुनवाई कर सकती हैं दीवानी अदालतें
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक आदेश में कहा कि कर्ज देने वाले बैंकों या वित्तीय संस्थानों के विरुद्ध कर्जदारों के जवाबी मुकदमे पर दीवानी अदालतें विचार कर सकती हैं। जस्टिस संजय किशन कौल जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने की टिप्पणी।
नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने एक आदेश में कहा कि कर्ज देने वाले बैंकों या वित्तीय संस्थानों के विरुद्ध कर्जदारों के जवाबी मुकदमे पर दीवानी अदालतें विचार कर सकती हैं। अगर बैंक या वित्तीय संस्थान एक विशेष कानून के तहत ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) के समक्ष अलग से वसूली की कार्रवाई कर रहे हैं, तो भी ऐसा किया जा सकता है।
वित्तीय संस्थानों के खिलाफ दीवानी अदालत में हो सुनवाई
शीर्ष अदालत इस जटिल कानूनी सवाल पर विचार कर रहा था कि क्या ऐसा कर्जदार, जो डीआरटी के समक्ष बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण वसूली की कार्रवाई का सामना कर रहा है, वह वित्तीय संस्थानों के खिलाफ दीवानी अदालत में जवाबी मुकदमा दायर कर सकता है या नहीं।
दीवानी वाद किया जा सकता है दायर
जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा, 'रिकवरी आफ डेट्स ड्यू टू बैंक्स एंड फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस (आरडीबी) एक्ट, 1993 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत बैंक के दावे के जवाब में प्रतिवादी द्वारा दीवानी वाद दायर नहीं किया जा सकता है।'
पीठ ने मामले में क्या कहा
पीठ ने यह भी कहा कि सिविल प्रोसीजर कोड में ऐसी कोई शक्ति नहीं है, जिसके तहत ऋण की वसूली के लिए आवेदन करने वाले बैंक या वित्तीय संस्थान के विरुद्ध कर्जदार द्वारा दाखिल स्वतंत्र वाद को आरडीबी एक्ट के तहत डीआरटी को स्थानांतरित किया जा सके।