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सुप्रीम आदेश के खिलाफ नहीं जा सकती कोई अदालत: Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता के 27 हफ्ते से अधिक के भ्रूण का गर्भपात करने की अनुमति दी है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि भारत में कोई भी अदालत सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ नहीं जा सकती। हाई कोर्ट का रवैया संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है।अपने 11 पेज के आदेश में कहा कि गुजरात हाई कोर्ट को गर्भपात की अपील को खारिज करने का कोई अधिकार नहीं है।

By AgencyEdited By: Sonu GuptaUpdated: Mon, 21 Aug 2023 09:35 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता के 27 हफ्ते से अधिक के भ्रूण का गर्भपात करने की अनुमति दी है।
नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता के 27 हफ्ते से अधिक के भ्रूण का गर्भपात करने की अनुमति दी है। यह अब तक के सबसे लंबी अवधि के भ्रूण का गर्भपात है जिसे मंगलवार को अंजाम दिया जाएगा। सर्वोच्च अदालत ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि बड़ी अदालत के मामले का निपटारा करने के बाद आखिर हाई कोर्ट को आदेश पारित करने की क्या जरूरत थी।

देश की कोई अदालत नहीं जा सकती SC के खिलाफ

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि भारत में कोई भी अदालत सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ नहीं जा सकती। हाई कोर्ट का रवैया संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है। सर्वोच्च अदालत के शनिवार को आदेश पारित करने के बाद गुजरात हाई कोर्ट ने उसी दिन गर्भपात की याचिका को खारिज कर दिया था।

गुजरात HC को अपील खारिज करने का नहीं है अधिकार

दुष्कर्म पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्ज्वल भुयन की खंडपीठ ने उसे गर्भपात के लिए स्वस्थ करार दिया। साथ ही अपने 11 पेज के आदेश में कहा कि गुजरात हाई कोर्ट को गर्भपात की अपील को खारिज करने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस नागरत्ना ने जताई कड़ी नाराजगी

जैसे ही मामला सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया, उसे सूचित किया गया कि विगत शनिवार को विशेष सुनवाई के दौरान जैसे ही सर्वोच्च अदालत ने पीड़िता के पक्ष में फैसला दिया, गुजरात हाई कोर्ट ने एक और फैसला देकर अपने पूर्ववर्ती आदेश पर सफाई देने की कोशिश की। यह सुनते ही जस्टिस नागरत्ना ने कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा

हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट के जवाबी फैसले से बिलकुल खुश नहीं हैं। कोई भी जज सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट नहीं सकता। आखिर गुजरात हाई कोर्ट में हो क्या रहा है? क्या जज अपने से उच्च अदालतों के आदेशों का ऐसे जवाब देते हैं? इसतरह के प्रयासों से हाई कोर्ट के जज हमारी कही बातों का प्रतिरोध करने का प्रयास करते हैं।

मेडिकल आधार पर दी जा सकती है गर्भपात की इजाजतः SC

विगत 19 अगस्त (शनिवार) को सर्वोच्च अदालत ने पीड़िता का गर्भपात कराने का आदेश देते हुए उसकी नए सिरे से चिकित्सा जांच कराने का आदेश दिया था। लेकिन उस दिन भी सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 17 अगस्त के आदेश को यह कह कर खारिज किया था कि उन्हें ऐसे मामलों में त्वरित फैसले लेने की आवश्यकता समझनी चाहिए। इसे सामान्य मामला समझकर लटकाना नहीं चाहिए। बार-बार के स्थगन से हाई कोर्ट में बहुत समय जाया हुआ। ध्यान रहे कि मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत अधिकतम 24 हफ्ते की गर्भवती विवाहिता को मेडिकल आधार पर गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है।

भ्रूण के जीवित रहने या नहीं रहने पर दिशा-निर्देश

खंडपीठ ने पीडि़त घरेलू सहायिका को गर्भपात के लिए मंगलवार को सुबह नौ बजे अस्पताल में उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर आपरेशन के बाद भ्रूण जीवित रहता है तो उसे अस्पताल में सभी सुविधाएं देते हुए इनक्यूबेशन में सुरक्षित रखा जाए। ऐसी अवस्था में गुजरात सरकार उस शिशु को कानून के अनुरूप गोद देने के सभी उपाय करे। अन्यथा भ्रूण के टिशु को संरक्षित कर पीडि़ता के दुष्कर्म के खिलाफ दर्ज कराए मामले में उसका इस्तेमाल किया जाए। ताकि डीएनए साक्ष्य को दुष्कर्म मामले में बतौर सुबूत पेश कर सकें।

दुष्कर्म से गर्भधारण महिला के लिए पीड़ादायी

सर्वोच्च अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में बिना शादी के और दुष्कर्म से हुए गर्भ में गर्भवती महिला को अपमान और तनाव के कारण अत्यधिक शारीरिक और मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। भारतीय समाज में एक शादी के बाद गर्भधारण नासिर्फ दंपती के लिए उत्सव मनाने की वजह बल्कि परिवार और मित्र भी उतने ही प्रसन्न होते हैं। इसके विपरीत बिना विवाह, दुष्कर्म, यौन शोषण आदि से हुए गर्भधारण में पीडि़त महिला को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है।