Supreme Court: शीर्ष अदालत ने कहा- अदालत की भाषा में ली जानी चाहिए गवाही, आरोपित को किया बरी
सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप से एक व्यक्ति को बरी करने के दौरान कहा कि शादी करने के वादे के हर उल्लंघन को झूठा वादा मानना और एक व्यक्ति पर धारा 376 के तहत दुष्कर्म के अपराध के लिए मुकदमा चलाना मूर्खता होगी। फाइल फोटो।
By AgencyEdited By: Sonu GuptaUpdated: Tue, 31 Jan 2023 03:27 AM (IST)
नई दिल्ली, आइएएनएस। सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप से एक व्यक्ति को बरी करने के दौरान कहा कि शादी करने के वादे के हर उल्लंघन को झूठा वादा मानना और एक व्यक्ति पर धारा 376 के तहत दुष्कर्म के अपराध के लिए मुकदमा चलाना मूर्खता होगी। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने पीड़िता के बयान को अंग्रेजी भाषा में दर्ज किया, हालांकि उसने अपनी स्थानीय भाषा में गवाही दी थी। इसने इस बात पर जोर दिया कि गवाह के साक्ष्य को अदालत की भाषा में दर्ज किया जाना चाहिए जैसा कि धारा 277 सीआरपीसी के तहत आवश्यक है।
केवल अंग्रेजी में दर्ज किए जा रहे हैं गवाहों के बयान
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम.त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि सुनवाई के दौरान, यह ध्यान में लाया गया कि अभियोजन पक्ष का बयान ट्रायल कोर्ट द्वारा अंग्रेजी में दर्ज किया गया था, हालांकि उसने अपनी स्थानीय भाषा में गवाही दी थी। पीठ की ओर से निर्णय लिखने वाली जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि अदालत को अवगत कराया गया है कि कुछ निचली अदालतों में गवाहों के बयान उनकी भाषा में दर्ज नहीं किए जा रहे हैं और केवल अंग्रेजी में दर्ज किए जा रहे हैं।
निचली अदालत ने सुनाई थी दस साल की सजा
आरोपित को बरी करते हुए, पीठ ने कहा कि वादे के उल्लंघन के मामले में, इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आरोपित ने पूरी गंभीरता के साथ उससे शादी करने का वादा किया होगा, और बाद में उसके द्वारा अप्रत्याशित कुछ परिस्थितियों या उसके नियंत्रण से बाहर की परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसने उसे अपना वादा पूरा करने से रोक दिया। इस मामले में निचली अदालत ने आरोपित को 10 साल कैद की सजा सुनाने के साथ पीड़िता को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। बाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने सजा घटाकर सात साल कर दी।आरोपित को कोर्ट ने किया बरी
आरोपित ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर पीड़िता द्वारा अदालत के समक्ष अपने बयान में लगाए गए आरोपों को उनके वास्तविक मूल्य पर भी लिया जाता है, तो ऐसे आरोपों को अपीलकर्ता द्वारा दुष्कर्म के रूप में मानना मामले को बहुत आगे बढ़ाना होगा। पीठ ने कहा, अभियोजिका एक विवाहित महिला और तीन बच्चों की मां होने के नाते परिपक्व और समझदार थी। वह उस कार्य के नैतिक या अनैतिक गुणवत्ता के महत्व और परिणामों को समझ सकती थी जिसके लिए वह सहमति दे रही थी। कोर्ट ने आरोपित को शादी के बहाने दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया।
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