पहले पति से नहीं हुआ तलाक, क्या फिर दूसरे पति से गुजारा भत्ता ले सकती है पत्नी? सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने महिला के भरण पोषण से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए एक फैसले में कहा है कि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का अधिकार पत्नी द्वारा लाभ लेने का अधिकार नहीं है बल्कि ये पति का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है। महिला की पहली शादी 1999 में हुई थी। 2005 में उसने दूसरी शादी कर ली थी।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पहली शादी कानूनन समाप्त हुए बगैर भी महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने दूसरे पति से भरण पोषण पाने का दावा कर सकती है।
शीर्ष अदालत ने एक फैसले में कहा है कि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण का अधिकार पत्नी द्वारा लाभ लेने का अधिकार नहीं है, बल्कि ये पति का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है।
2005 में अलग हो गई थी महिला
महिला की पहली शादी 1999 में हुई थी। 2005 में दोनों अलग हो गए और दोनों के बीच शादी तोड़ने और अलग-अलग रहने का एक समझौता हुआ। इसके बाद महिला ने नवंबर 2005 को पड़ोसी से दूसरी शादी की।
इस शादी को कोर्ट से शून्य घोषित करा लिया। इसके बाद दूसरे पति और महिला ने फरवरी 2006 को दोबारा शादी कर ली और इस शादी का रजिस्ट्रेशन भी कराया। लेकिन 2008 में दोनों के बीच विवाद बढ़ा और महिला ने दूसरे पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कराया।
परिवार अदालत ने सुनाया था फैसला
- महिला ने दूसरे पति से भरण पोषण दिलाने की मांग की। परिवार अदालत ने 3500 रुपये पत्नी और 5000 रुपये बेटी को भरण पोषण देने का दूसरे पति को आदेश दिया। जिसके खिलाफ पति ने हाई कोर्ट में अपील की और हाई कोर्ट ने पत्नी को भरण पोषण का आदेश रद कर दिया था, जिसके खिलाफ महिला सुप्रीम कोर्ट आयी थी।
- न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने तेलंगाना हाई कोर्ट के समक्ष विचारणीय कानूनी सवाल था कि जब किसी महिला की पहली शादी कानूनी रूप से बनी हुई है, कानूनन उसका विवाह विच्छेद नहीं हुआ तो क्या उस महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दूसरे पति से भरण पोषण का दावा करने का हकदार है।
- इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व फैसले हैं, जिनमें से कुछ हां और कुछ ना कहते हैं। इस ताजे फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 125 के सामाजिक कल्याण के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया, जिसके तहत महिला की आर्थिक रूप से सक्षम न होने वाली गृहणी की स्थिति पर विचार किया गया।
- शीर्ष अदालत ने दूसरे पति की भरण पोषण के विरोध की दलीलें खारिज करते हुए कहा कि मौजूदा मामला लिव इन रिलेशनशिप का नहीं है। महिला की इससे शादी हुई है और इसमें कोई विवाद भी नहीं है। प्रतिवादी (दूसरा पति) भरण पोषण के अधिकार को हतोत्साहित करने के लिए यह दलीलें दे रहा है कि उसकी शादी शुरुआत से ही शून्य है, क्योंकि पहली शादी अभी भी बनी हुई है।
पीठ ने की बड़ी टिप्पणी
पीठ ने कहा कि दो और चीजें विचार करने लायक हैं। पहली यह कि महिला ने सत्यता छुपाई नहीं थी। वह पहली शादी के बारे में जानता था और उसने जानते हुए शादी की थी। एक बार नहीं बल्कि दो बार उसके साथ शादी की।
दूसरा पहलू यह है कि महिला ने पहले पति से अलग होने का आपसी समझौता कोर्ट में पेश किया है। वैसे तो यह विवाह विच्छेद की कानूनी डिक्री नहीं है, लेकिन फिर भी इससे साबित होता है कि दोनों के बीच संबंध समाप्त हो चुके हैं। वे अलग अलग रह रहे हैं। इसके अलावा महिला पहले पति से भरण पोषण नहीं ले रही है।
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