तलाक के मामलों पर SC की तल्ख टिप्पणी, पति-पत्नी की लड़ाई में हमेशा होती है बच्चों की हार
शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को कस्टडी के मामलों का निपटारा बच्चों के सर्वाधिक हितों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए जो इस लड़ाई में पीडि़त होते हैं।
By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Tue, 18 Feb 2020 07:44 PM (IST)
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि कस्टडी की लड़ाई में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पति-पत्नी में से कौन जीतता है, लेकिन इसमें बच्चों की हमेशा ही हार होती है। बच्चे ही इसकी सबसे भारी कीमत चुकाते हैं क्योंकि वे बिखर जाते हैं जब न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अदालत उन्हें माता या पिता में से किसी एक के साथ जाने के लिए कहती है। इसमें उनकी कोई गलती नहीं होती फिर भी वे अपने माता-पिता के प्यार-दुलार से वंचित हो जाते हैं।
एक दंपत्ति के बीच लंबे समय से चल रहे वैवाहिक विवाद पर फैसले के दौरान जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि बच्चों के अधिकारों का सम्मान करने की जरूरत है क्योंकि वे माता और पिता दोनों का ही प्यार पाने के अधिकारी हैं। शादी टूटने का मतलब माता-पिता की जिम्मेदारी खत्म हो जाना नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों को कस्टडी के मामलों का निपटारा बच्चों के सर्वाधिक हितों को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए जो इस लड़ाई में पीडि़त होते हैं। अगर मध्यस्थता की प्रक्रिया का कोई परिणाम न निकले तो अदालतों को मामले का समाधान जल्द से जल्द करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ बच्चा भारी कीमत चुकाता है।
पीठ ने कहा कि बच्चे की कस्टडी का फैसला करते समय पहली और सर्वोपरि सोच हमेशा बच्चे की बेहतरी होती है और अगर बच्चे की बेहतरी की बात हो तो तकनीकी आपत्तियां बाधा नहीं बन सकतीं। इस मामले में शीर्ष अदालत ने हमेशा सहमति से विवाद सुलझाने की कोशिश की, लेकिन पति-पत्नी का अहंकार आड़े आ गया और उनके दो बच्चों की पीड़ा अंतहीन हो गई है। पीठ ने आगे कहा, 'इस मामले में वैवाहिक विवाद के चलते दादा-दादी न सिर्फ अपने बच्चों बल्कि अपने पोते-पोतियों के प्यार दुलार से भी वंचित हुए और अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा। ऐसे बहुत कम भाग्यशाली लोग होते हैं जिन्हें जीवन के इस पड़ाव पर यह खुशी मिलती है जहां बुजुर्ग अपने बच्चों और उनके बच्चों के साथ रह पाते हैं।'