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'सजा निलंबित करने के लिए मुआवजे की आधी राशि जमा करने की शर्त न्यायोचित नहीं', SC ने रद्द किया बॉम्बे HC का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया है जिसमें अपील लंबित रहने के दौरान सजा निलंबित करते हुए सीआरपीसी की धारा 357 में तय मुआवजे की आधी राशि 1.43 करोड़ रुपये जमा कराने की शर्त लगाई गई थी। कोर्ट ने माना है कि अपील के दौरान दोषी की सजा निलंबित करने के लिए मुआवजे की आधी राशि जमा करने की शर्त लगाना न्यायोचित नहीं है।

By Jagran News Edited By: Sonu Gupta Updated: Wed, 17 Jul 2024 07:53 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया बॉम्बे हाई कोर्ट का आदेश।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अपील के दौरान दोषी की सजा निलंबित करने के लिए मुआवजे की आधी राशि जमा करने की शर्त लगाना न्यायोचित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) का वह आदेश रद्द कर दिया है, जिसमें अपील लंबित रहने के दौरान सजा निलंबित करते हुए सीआरपीसी की धारा 357 में तय मुआवजे की आधी राशि 1.43 करोड़ रुपये जमा कराने की शर्त लगाई गई थी।

पीठ ने क्या कहा?

न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा व न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने बैंक से अमानत में खयानत (आपराधिक विश्वास भंग) के दोषी याचिकाकर्ता निखिल की याचिका स्वीकार करने वाले आदेश में यह बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि आईपीसी की धारा 357 के उद्देश्य और सुप्रीम कोर्ट के दिलीप एस. दहनुकर मामले में दिये गए पूर्व फैसले को देखते हुए हाई कोर्ट द्वारा सजा निलंबन के लिए मुआवजे की 50 फीसद राशि जमा कराने की शर्त लगाना न्यायोचित नहीं है।

हाई कोर्ट ने दिया था ये आदेश

इस मामले में हाई कोर्ट ने माना था कि दोषी का जुर्म साबित हुआ है और अदालत ने सजा के साथ 2.86 करोड़ मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। हाई कोर्ट का कहना था कि गड़बड़ियां और अपराध गंभीर है। बैंक के वास्तविक उपभोक्ता अपनी अधिकृत राशि का लाभ लेने से वंचित हुए हैं इसलिए अभियुक्त की सजा निलंबित करते वक्त मुआवजा राशि का 50 फीसद हिस्सा जमा कराने की शर्त लगाना न्याय के हित में होगा।

निचली अदालत ने सुनाई थी इतने सालों के लिए जेल की सजा

महाराष्ट्र के इस मामले में अभियुक्त निखिल को निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 409 (आपराधिक विश्वास भंग) और 201 के जुर्म में चार वर्ष छह महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी। साथ ही अदालत ने दोषी को सीआरपीसी की धारा 357 के तहत 2.86 करोड़ रुपये मुआवजा भी अदा करने का आदेश दिया था।

निखिल ने खटखटाया था SC का दरवाजा

दोषी निखिल ने सजा के खिलाफ सत्र अदालत में अपील दाखिल की और साथ ही अपील लंबित रहने के दौरान सजा निलंबित करने की मांग की सत्र अदालत ने सजा निलंबन की मांग खारिज कर दी। इसके बाद निखिल ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अपील लंबित रहने के दौरान सजा निलंबित करने की मांग की।

हाई कोर्ट ने अर्जी स्वीकार करते हुए अपील लंबित रहने के दौरान सजा निलंबित करते हुए मुआवजे की आधी राशि जमा करने की शर्त लगा दी थी, जिसके खिलाफ निखिल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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