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Electoral Bond: चुनावी बॉन्ड योजना असंवैधानिक, खरीददारों के साथ ही भुनाने वाले दलों का विवरण होगा सार्वजनिक

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के दावे के साथ शुरु किये गए चुनावी बॉन्ड की योजना को असंवैधानिक करार दिया है। पार्टियों को मिलने वाले चुनावी फं¨डग की जानकारी को मतदाताओं का अधिकार बताते हुए पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 2019 से चुनाव आयोग को अभी तक जारी किये सभी बॉन्ड के खरीददारों और उन्हें भुनाने वाले दलों के जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है।

By Jagran News Edited By: Devshanker Chovdhary Updated: Thu, 15 Feb 2024 07:23 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड की योजना को असंवैधानिक करार दिया। (फाइल फोटो)
नीलू रंजन, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के दावे के साथ शुरु किये गए चुनावी बॉन्ड की योजना को असंवैधानिक करार दिया है। पार्टियों को मिलने वाले चुनावी फंडिंग की जानकारी को मतदाताओं का अधिकार बताते हुए पांच न्यायाधीशों की बेंच ने 2019 से चुनाव आयोग को अभी तक जारी किये सभी बॉन्ड के खरीददारों और उन्हें भुनाने वाले दलों के जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को किया निरस्त

इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले व्यक्तियों या कंपनियों की जानकारी गुप्त रखने के लिए कंपनी कानून, आरबीआइ कानून, जनप्रतिनिध कानून और आयकर कानून के विभिन्न धाराओं में किये गए संशोधनों को भी निरस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सीधा असर दो महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टियों की फंडिंग के पैटर्न पर पड़ेगा।

कांग्रेस ने फैसले का किया स्वागत

कांग्रेस ने इस फैसले का स्वागत किया जबकि भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर चुप्पी साध रखी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सिर्फ इतना कहा कि 2018 में चुनावी बॉन्ड की योजना को चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से लाया गया था और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के गहन अध्ययन के बाद ही सरकार अगले कदम का फैसला करेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को क्यों किया खारिज?

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के चुनावी पारदर्शिता के सरकार के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पारदर्शिता की तुलना में यह मतदाताओं के पार्टी को फंड देने वालों की जानकारी लेने के अधिकार का हनन ज्यादा करता है। पांच न्यायाधीशों के बेंच में दो अलग-अलग फैसले दिये, लेकिन दोनों में ही चुनावी बॉन्ड योजनाओं को असंवैधानिक करार दिया गया। एक फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायाधीश जेबी पार्दीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा ने दिया।

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वहीं, न्यायाधीश संजीव खन्ना ने अलग से अपना फैसला सुनाया। धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध का उल्लेख करते हुए न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी फंडिंग की आड़ में कंपनियों द्वारा राजनीतिक दल से लाभ उठाने की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है। उनके अनुसार मतदाता का विवेकपूर्ण तरीके से अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए राजनीतिक दल के फंडिंग के स्त्रोत को जानना जरूरी है।

वैसे सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों में काले धन और नकदी के उपयोग करने के लिए जरूरी उपाय करने की जरूरत बताई। लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया कि चुनावी बॉन्ड के योजना से मिलने वाले लाभ की तुलना में नुकसान कहीं ज्यादा है। फैसले के अनुसार चुनावों में काले धन और नकदी को रोकने के लिए कई अन्य उपाय किये जा सकते हैं। लेकिन यह मतदाताओं को पार्टियों की फंडिंग के स्त्रोत जानने के अधिकार की कीमत पर नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा कि चेक या ड्राफ्ट के जरिये फंडिंग और चुनावी बॉन्ड में सिर्फ एक अंतर है कि चुनावी बॉन्ड में फंडिंग करने वाले की जानकारी गोपनीय रहती है। लेकिन इस गोपनीयता की भी एक सीमा होती है और सरकार के लिए इसकी जानकारी हासिल करना संभव है। फंडिंग की गोपनीयता के बजाय फंडिंग की जानकारी को ज्यादा अहम मानते हुए न्यायाधीश संजीव खन्ना ने अपने फैसले में कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान के लिए मतों की गोपनीयता सुनिश्चित करने की तरह है कि पार्टियों की फंडिंग के स्त्रोत की जानकारी मतदाताओं को होना अहम है।

सुप्रीम कोर्ट ने किन बॉन्डों को वापस करने का आदेश दिया?

शीर्ष अदालत ने उन बॉन्डों को वापस करने का आदेश दिया, जिन्हें अभी तक भुनाया नहीं गया है। यदि ये बॉन्ड राजनीतिक दल के पास हैं, तो उसे एसबीआइ को वापस करना होगा, बाद में एसबीआइ बॉन्ड खरीदने वाले को पैसा वापस कर देगा। यदि यह बॉन्ड खरीदने का पैसा एसबीआइ के पास है, तो उसे वापस करेगा। यदि बॉन्ड खरीद लिया गया है और अभी तक इसे खरीदने वाली कंपनी के पास ही है, तो वह उसे वापस कर एसबीआइ से पैसा वापस ले सकता है।

यदि जारी किये बॉन्ड का कोई दावेदार सामने नहीं आता है तो ऐसी स्थिति में वह पैसा प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 2019 के बाद से अभी तक जारी किये गए सभी बॉन्ड की जानकारी एसबीआइ से लेने का आदेश दिया है।

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चुनाव आयोग अपने वेबसाइट पर विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करेगा कि किन-किन कंपनियों ने कितने-कितने के बॉन्ड कब-कब खरीदे और वे किन-किन पार्टियों के पास गए। पिछले पांच सालों में चुनावी बॉन्ड के जरिये फंडिंग करने वाली कंपनियों और उन्हें हासिल करने वाली पार्टियों का पूरा सच सामने आ जाएगा।

बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिन के लिए खोला जाता है। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव के वर्ष में 30 दिन के लिए इस स्कीम को खोल सकती है।