Move to Jagran APP

Supreme Court: 'देश बचाने के लिए जरूरी फैसलों पर सरकार को मिले छूट' नागरिकता अधिनियम मामले में SC की टिप्पणी

Supreme Court सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पूर्वोत्तर के कई राज्य उग्रवाद व हिंसा से प्रभावित हैं और देश को बचाने के लिए सरकार को आवश्यक बदलाव की स्वतंत्रता और छूट दी जानी चाहिए। आज भी पूर्वोत्तर के कुछ हिस्से हैं हम उनका नाम नहीं ले सकते लेकिन ऐसे राज्य हैं जो उग्रवाद और हिंसा से प्रभावित हैं।

By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Thu, 07 Dec 2023 06:47 AM (IST)
Hero Image
उन्होंने कहा, ‘हमें सरकार को कुछ छूट भी देनी होगी।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पूर्वोत्तर के कई राज्य उग्रवाद व हिंसा से प्रभावित हैं और देश को बचाने के लिए सरकार को आवश्यक बदलाव की स्वतंत्रता और छूट दी जानी चाहिए। असम में लागू नागरिकता अधिनियम की धारा-6ए का जिक्र करते हुए प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि देश के समग्र कल्याण के लिए सरकार को कुछ समझौते करने होते हैं। उन्होंने कहा, ‘हमें सरकार को कुछ छूट भी देनी होगी।

आज भी पूर्वोत्तर के कुछ हिस्से हैं, हम उनका नाम नहीं ले सकते, लेकिन ऐसे राज्य हैं जो उग्रवाद और हिंसा से प्रभावित हैं। हमें सरकार को उतनी छूट देनी होगी कि वह देश को बचाने के लिए जरूरी बदलाव कर सके।’

उन्होंने यह टिप्पणी तब की जब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने कहा कि धारा-6ए एक समान रूप से लागू होती है और घुसपैठियों को फायदा पहुंचाती है जो नागरिकता कानून का उल्लंघन कर असम में रहते आ रहे हैं। संविधान पीठ असम में घुसपैठियों से संबंधित नागरिकता कानून की धारा-6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 17 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

केंद्रीय शासित प्रदेश परामर्श के लिए तैयार करे नीति

नागरिकता कानून में धारा-6ए को असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से निपटने के लिए विशेष प्रविधान के रूप में जोड़ा गया था। इसके मुताबिक, बांग्लादेश समेत निर्दिष्ट क्षेत्रों से एक जनवरी, 1966 के बाद और 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए और तब से वहीं रह रहे लोगों को धारा-18 के तहत भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए अपना पंजीकरण कराना होगा। दीवान ने इस प्रविधान को गैरकानूनी घोषित करने की मांग करते हुए मंगलवार को केंद्र को यह निर्देश देने की मांग भी की थी कि छह जनवरी, 1951 के बाद असम आए भारतीय मूल के सभी लोगों को बसाने व उनके पुनर्वास के लिए वह राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश के परामर्श से एक नीति तैयार करे।

आज भी असम में अवैध रूप से आने का कर रहा है दावा

पीठ ने सवाल किया कि क्या संसद इस आधार पर असम में संघर्ष जारी रहने दे सकती है कि कानून राज्यों के बीच भेदभाव करेगा। 1985 में असम की स्थिति ऐसी थी कि वहां बहुत हिंसा हो रही थी। उन्होंने जो भी समाधान खोजा होगा वह निश्चित रूप से अचूक होगा। शुरुआत में दीवान ने कहा कि असम के घुसपैठियों से विदेशी अधिनियम की धारा-तीन के तहत निपटे जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धारा-6ए का अस्तित्व आज भी असम में अवैध रूप से आने और नागरिकता के लिए दावा करने में मदद करता है।

नागरिकता कानून की धारा-6ए की वैधता को चुनौती पर सुनवाई के दौरान की टिप्पणी

असम को सजातीय एकल वर्ग से अलग करना अस्वीकार्य वरिष्ठ अधिवक्ता दीवान ने कहा, असम व पड़ोसी राज्य सजातीय एकल वर्ग बनाते हैं और असम को उनसे अलग करना अस्वीकार्य है। किसी हिंसक या राजनीतिक आंदोलन के बाद किया गया राजनीतिक समझौता वर्गीकरण का आधार नहीं है। उन्होंने कहा, बिना किसी समयसीमा के बड़ी संख्या में घुसपैठियों को नियमितीकरण की मंजूरी देना असम के लोगों की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक आकांक्षाओं को कमजोर करता है।