Supreme Court: 'पति का पत्नी के स्त्रीधन पर कोई नियंत्रण नहीं', सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सिर्फ संकट में कर सकते हैं उसके पैसे का उपयोग
तीन साल बाद राव ने हैदराबाद में अपनी बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ स्त्रीधन वापस करने की मांग करते हुए एफआईआर दर्ज की।न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ससुराल वालों के खिलाफ मामला रद्द कर दिया और कहा कि पिता के पास अपनी बेटी का स्त्रीधन वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह पूरी तरह से उसका था।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। तीन साल बाद, राव ने हैदराबाद में अपनी बेटी के पूर्व ससुराल वालों के खिलाफ 'स्त्रीधन' वापस करने की मांग करते हुए एफआईआर दर्ज की।
पूर्व ससुराल वालों ने एफआईआर को रद्द करने के लिए असफल रूप से तेलंगाना उच्च न्यायालय का रुख किया। फिर उन्होंने HC के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ससुराल वालों के खिलाफ मामला रद्द कर दिया और कहा कि पिता के पास अपनी बेटी का 'स्त्रीधन' वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह पूरी तरह से उसका था।
उच्चतम न्यायालय ने एक व्यक्ति को एक महिला को उसके खोए हुए सोने के बदले में 25 लाख रुपये देने का निर्देश देते हुए दोहराया है कि पति का अपनी पत्नी के स्त्रीधन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है और वह संकट के समय में इसका इस्तेमाल कर सकता है, लेकिन उसे अपनी पत्नी को लौटाना उसका नैतिक दायित्व है।इस मामले में महिला ने दावा किया कि शादी के समय उसके परिवार ने उसे 89 सोने के सिक्के उपहार में दिए थे। इसके अतिरिक्त, शादी के बाद, उसके पिता ने उसके पति को 2 लाख रुपये का चेक दिया।
महिला के अनुसार, शादी की पहली रात को, पति ने उसके सभी आभूषणों की कस्टडी ले ली और सुरक्षा की आड़ में अपनी मां को सौंप दिया। उसने आरोप लगाया कि पति और उसकी मां ने अपनी पहले से मौजूद वित्तीय देनदारियों को पूरा करने के लिए सभी आभूषणों का गबन कर लिया।पूर्व ससुराल वालों ने एफआईआर को रद्द करने के लिए असफल रूप से तेलंगाना उच्च न्यायालय का रुख किया। फिर उन्होंने HC के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने ससुराल वालों के खिलाफ मामला रद्द कर दिया और कहा कि पिता के पास अपनी बेटी का 'स्त्रीधन' वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह पूरी तरह से उसका था।
जस्टिस करोल ने फैसला लिखते हुए कहा कि आम तौर पर स्वीकृत नियम, जिसे न्यायिक रूप से मान्यता दी गई है, वह यह है कि महिला संपत्ति पर पूर्ण अधिकार रखती है। इसमें कहा गया है कि आपराधिक कार्यवाही का उद्देश्य गलत काम करने वाले को न्याय के कटघरे में लाना है और यह बदला लेने या उन लोगों के खिलाफ प्रतिशोध लेने का साधन नहीं है, जिनके साथ शिकायतकर्ता की दुश्मनी हो सकती है।