Freebies by political parties: रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, 3 जजों की बेंच को पुनर्विचार के लिए भेजा
Freebies by political parties रेवड़ी कल्चर पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया है. कोर्ट ने 3 जजों की बेंच के पास मामला भेज दिया है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त रेवड़ियों को गंभीर मुद्दा बताते हुए इस पर व्यापक विचार विमर्श पर जोर दिया था।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनैतिक दलों द्वारा मुफ्त रेवडि़यों की घोषणा और उन्हें बांटने पर रोक लगाने की मांग पर अब सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की नयी पीठ सुनवाई करेगी। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को देखते हुए और कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से की गई 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग पर मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया है।
मुफ्त रेवड़ियों का मामला सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पहलुओं पर विचार के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा। नयी पीठ 2013 के सुब्रामणियम बालाजी के फैसले पर भी पुनर्विचार कर सकती है। उस फैसले में दो जजों की पीठ ने कहा था मुफ्त उपहार बाटना करेप्ट प्रैक्टिस नही है। @jagrannews
2013 का फैसला दो न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया था जिसमें कहा गया था कि राजनैतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार बांटा जाना जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है। ये आदेश शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा, हिमा कोहली और सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने दिये। जस्टिस रमणा सेवानिवृत हो रहे हैं शुक्रवार को उनका सीजेआइ के तौर पर सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करने का अंतिम दिन था। पिछली सुनवाई पर ही कोर्ट ने 2013 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए मामला तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजने के संकेत दिए थे। शुक्रवार को कोर्ट ने मामले को तीन न्यायाधीशों को भेजते हुए कहा कि मामले पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है।
कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस के आदेश पर मामले को तीन न्यायाधीशों की पीठ में चार सप्ताह बाद सुनवाई पर लगाया जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि चुनाव के समय राजनैतिक दलों द्वारा मुफ्त रेवडि़यों की घोषणा के बारे में पक्षकारों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर विस्तृत सुनवाई की जरूरत है। कुछ मुद्दों को प्रारंभिक स्तर पर तय करने की आवश्यकता है जैसे कि इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है। क्या अदालत द्वारा विशेषज्ञ समिति नियुक्ति करने से किसी उद्देश्य की पूर्ति होगी। कोर्ट ने आदेश में कहा कि कुछ पक्षकारों ने 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है। उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि राजनैतिक दलों का मुफ्त उपहार बांटना भ्रष्ट आचरण नहीं कहा जा सकता।
पीठ ने आदेश में कहा है कि मुद्दों की जटिलता को देखते हुए और सुब्रमण्यम बालाजी का फैसला रद करने की मांग को देखते हुए यह मामला विचार के लिए तीन न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में मुख्य रूप से राजनैतिक दलों द्वारा चुनाव के दौरान किये जाने वाले वादों का मुद्दा उठाते हुए कहा गया है कि इसका राज्य की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ता है और इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने आदेश में कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनावी लोकतंत्र में जैसा कि हमारे यहां है, असली ताकत मतदाता के हाथ में होती है। मतदाता ही तय करते हैं कि कौन सा दल और उम्मीदवार सत्ता में आएगा। और वे ही विधायिका का कार्यकाल खत्म होने के बाद अगले चुनाव में उस दल और उम्मीदवार के प्रदर्शन का आकलन करते हैं।
पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने दलों की ओर से रखी गई दलीलों को देखते हुए केंद्र सरकार से कहा था कि यह एक गंभीर मुद्दा है और केंद्र सरकार क्यों नहीं इस पर विचार के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाती और चर्चा करती है। हालांकि केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर कोर्ट से कहा था कि पहले ही कई दलों ने कोर्ट में अर्जियां दाखिल कर रखी हैं और वे इस पर सुनवाई का विरोध कर रहे हैं ऐसे में सर्वदलीय बैठक में कोई नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है। कोर्ट को ही विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जो सभी हितधारकों से विचार विमर्श करके मामले में विचार कर रिपोर्ट दे।