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'कोई जन्मजात नहीं होता अपराधी, बनाया जाता है', सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ शख्स को दे दी जमानत

Supreme Court News खंडपीठ ने कहा कि अपराध कितना ही गंभीर क्यों नहीं हो एक अपराधी को जल्द से जल्द सुनवाई का अधिकार है। लेकिन एक अरसे से सुनवाई अदालतें और हाई कोर्ट कानून के इस बहुत ही मान्य सिद्धांत को भूल गए हैं। उन्हें समझना होगा कि जमानत को सजा के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

By Agency Edited By: Abhinav Atrey Updated: Fri, 05 Jul 2024 09:24 PM (IST)
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खंडपीठ ने नकली नोटों के साथ गिरफ्तार हुए आरोपित को दी सशर्त जमानत। (फाइल फोटो)
एएनआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अपराधी पैदा नहीं होते, बल्कि बनाए जाते हैं। किसी के अपराध करने के पीछे कई कारक जिम्मेदार होते हैं। निसंदेह हर संत का एक बीता हुआ कल होता है और हरेक पापी का एक भविष्य होता है।

सर्वोच्च अदालत ने इस टिप्पणी के साथ दो हजार के नकली नोटों के साथ गिरफ्तार हुए एक आरोपित की चार साल से रुकी सुनवाई पर टिप्पणी करते हुए उसे सशर्त जमानत दे दी। विगत तीन जुलाई के अपने आदेश में जस्टिस जेबी पार्डीवाला और उज्ज्ल भुयन की खंडपीठ ने कहा कि लोग जन्म से अपराधी नहीं होते हैं। हर इंसान में मानवीय गुणों को उभारने की गुंजाइश होती है। इसीलिए किसी भी अपराधी के सुधरने की उम्मीद को खारिज नहीं किया जाना चाहिए।

अपराध करने की कई वजहें हो सकती हैं

प्राय: यह मूलभूत मानवीय सिद्धांत वयस्क या किशोर अपराधियों के संबंध में विचार करते हुए लोग भूल जाते हैं। अपराध करने की कई वजहें हो सकती हैं। यह कारक आर्थिक, सामाजिक या नैतिक मूल्यों के साथ मां-बाप की अनदेखी आदि हो सकते हैं। अपराध किसी आवेश या परिस्थितिजन्य भी हो सकते हैं।

अपराधी को जल्द से जल्द सुनवाई का अधिकार- पीठ

खंडपीठ ने कहा कि अपराध कितना ही गंभीर क्यों नहीं हो, एक अपराधी को जल्द से जल्द सुनवाई का अधिकार है। लेकिन एक अरसे से सुनवाई अदालतें और हाई कोर्ट कानून के इस बहुत ही मान्य सिद्धांत को भूल गए हैं। उन्हें समझना होगा कि जमानत को सजा के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

ऐसे में जमानत से वंचित करने का कोई अधिकार नहीं

अगर संबंधित अदालत समेत कोई राज्य या अभियोजन पक्ष को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपित के मूलभूत अधिकारों को प्रदान करने या सुरक्षित करने की चिंता नहीं है तो उन्हें अपराध गंभीर मानते हुए जमानत से वंचित करने का कोई अधिकार नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि वह आरोपित की जमानत मंजूर कर रही है लेकिन वह मुंबई शहर छोड़कर नहीं जा सकेगा। उसे हर 15 दिन में संबंधित एनआईए कार्यालय या पुलिस थाने में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी।

ये है मामला

उल्लेखनीय है कि इस आरोपित को 9 फरवरी, 2020 में मुंबई के अंधेरी में दो हजार के 1193 नकली नोटों के साथ गिरफ्तार किया गया था। जांच एजेंसी का आरोप है कि नकली नोट पाकिस्तान से तस्करी करके मुंबई लाए गए थे। सर्वोच्च अदालत का कहना है कि इसी मामले में दो अन्य आरोपित जमानत पर बाहर हैं।

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