सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के 68 न्यायाधीशों की पदोन्नति पर लगाई रोक, राहुल गांधी को सजा सुनाने वाले जज भी शामिल
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के 68 न्यायाधीशों की पदोन्नति पर रोक लगा दी है। इसमें राहुल गांधी को मानहानि मामले के एक मामले में सजा सुनाने वाले सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा भी शामिल हैं।
By AgencyEdited By: Achyut KumarUpdated: Fri, 12 May 2023 01:58 PM (IST)
नई दिल्ली, एएनआई। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात के 68 न्यायिक अधिकारियों की पदोन्नति पर रोक लगा दी है। इसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि मामले के एक मामले में दोषी करार देने वाले सूरत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुखभाई वर्मा भी शामिल है।
जस्टिस एमआर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि गुजरात राज्य न्यायिक सेवा नियम 2005 के अनुसार, जिसे 2011 में संशोधित किया गया था, पदोन्नति योग्यता-सह-वरिष्ठता के सिद्धांत और उपयुक्तता परीक्षण पास करने पर की जानी चाहिए।
''टिकाऊ नहीं है राज्य सरकार का आदेश''
पीठ ने कहा, "हम इस बात से अधिक संतुष्ट हैं कि उच्च न्यायालय द्वारा जारी की गई विवादित सूची और जिला न्यायाधीशों को पदोन्नति देने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश अवैध और इस अदालत के फैसले के विपरीत है। इसलिए, ये टिकाऊ नहीं हैं।"पदोन्नति सूची के कार्यान्वयन पर लगी रोक
पीठ ने आगे कहा, "हम पदोन्नति सूची के कार्यान्वयन पर रोक लगाते हैं। संबंधित पदोन्नतियों को उनके मूल पद पर भेजा जाता है, जो वे अपनी पदोन्नति से पहले धारण कर रहे थे।" पीठ ने पदोन्नति पर रोक लगाते हुए एक अंतरिम आदेश पारित किया और निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई एक उपयुक्त पीठ द्वारा की जाए, क्योंकि न्यायमूर्ति शाह 15 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
शीर्ष अदालत जिला जजों के उच्च कैडर में 68 न्यायिक अधिकारियों के चयन को चुनौती देने वाली वरिष्ठ सिविल जज कैडर के अधिकारियों, रविकुमार महेता और सचिन प्रतापराय मेहता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।दोनों याचिकाकर्ता गुजरात सरकार के विधि विभाग में अंडर सेकेट्री और राज्य विधि सेवा प्राधिकरण में सहायक निदेशक हैं।
13 अप्रैल को गुजरात सरकार को जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों न्यायिक अधिकारियों की याचिका पर 13 अप्रैल को गुजरात सरकार और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी किया था। शीर्ष अदालत ने मामला लंबित होने के बावजूद न्यायिक अधिकारियों के प्रमोशन का फैसला करने और इस संबंध में 18 अप्रैल को आदेश पारित करने को लेकर काफी आलोचना की थी।