Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, क्‍या है वजह..?

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (Swami Avimukteshwaranand Saraswati) के अभिषेक पर रोक लगा दी है। बता दें कि ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के रूप में अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति का समर्थन नहीं किया गया था।

By AgencyEdited By: Krishna Bihari SinghUpdated: Sun, 16 Oct 2022 02:26 AM (IST)
Hero Image
उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के रूप में अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के अभिषेक पर रोक लगा दी गई है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में पट्टाभिषेक पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की खंडपीठ ने रोक का आदेश जारी किया। इसके पहले सालिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि पुरी के गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें यह कहा गया है कि अविमुक्तेश्वरानंद के ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य के रूप में पट्टाभिषेक को संस्तुति नहीं दी गई है।

रोक लगाने की मांग स्‍वीकार 

इस पर खंडपीठ ने रोक की मांग को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की ओर से याचिका दायर की गई थी कि कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने गलत तरीके से यह दावा किया है कि उन्हें स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के उपरांत उनके उत्तराधिकारी के रूप में ज्योतिष्पीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया है।

आवेदन में लगाए गए हैं ये आरोप 

आवेदन में यह भी कहा गया है कि जानबूझकर ऐसी कोशिशें की जा रही हैं जिससे इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहले से चल रहा मामला निरर्थक हो जाए और एक व्यक्ति जो पात्र नहीं है, वह अनुचित तरीके से शंकराचार्य बन जाए। इस तरह के प्रयासों को अंतरिम आदेश से रोका जाना जरूरी है।

याच‍िका में दी गई यह दलील 

याचिकाकर्ता की यह भी मांग थी कि अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य का पदनाम और संबोधन प्रयोग करने से भी रोका जाए। उन्हें छत्र अथवा सिंहासन धारण करने की भी अनुमति नहीं होनी चाहिए। याचिकाकर्ता ने अपनी दलील के पक्ष में कुछ दस्तावेज भी पेश किए और इनके आधार पर दावा किया कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति सही नहीं है, क्योंकि इसमें नियुक्ति की स्वीकृति प्रक्रिया का पूरी तरह उल्लंघन किया गया है। मामले पर अब 18 अक्टूबर को अंतिम सुनवाई होगी।

आदि शंकराचार्य ने की थी चार पीठों की स्‍थापना

समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक हिन्दू विद्वानों के अनुसार शंकराचार्य (Shankaracharya) के बिना कोई पीठ नहीं रह सकती है। हिंदू धर्म के अद्वैत वेदांत परंपरा में शंकराचार्य (Shankaracharya) मठों के प्रमुखों के रूप में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्‍द है। ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य (Shankaracharya) ने उत्तर में बद्रीकाश्रम ज्योतिष पीठ, पश्चिम में द्वारका के शारदा पीठ, पूर्व में पुरी का गोवर्धन पीठ और कर्नाटक के चिक्कमगलूर जिले में श्रृंगेरी शारदा पीठम... यानी कुल चार मठों की स्थापना की थी।

यह भी पढ़ें- SC Comments: सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले पर की बड़ी टिप्पणी, कहा- दोनों पक्षों की मर्जी से होगा अलगाव

यह भी पढ़ें- Supreme Court on Web Series: सुप्रीम कोर्ट का सवाल- वेब सीरीज के लिए कैसे हो सकती है प्री-स्क्रीनिंग कमेटी..?