'यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें किशोरी लड़कियां', कलकत्ता HC के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलटा; बरी आरोपी भी दोषी करार
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के 2023 के फैसले को खारिज कर दिया। दरअसल ये मामला पिछले साल उच्च न्यायालय की विवादास्पद टिप्पणी के बाद शुरू हुआ। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की सलाह दी थी। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को खारिज कर दिया।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के 2023 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें किशोरियों को 'यौन इच्छाओं पर नियंत्रण' रखने की सलाह दी गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 'किशोरों की निजता के अधिकार के संबंध में' शीर्षक से स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई की।
क्या था मामला?
दरअसल, ये मामला पिछले साल उच्च न्यायालय की विवादास्पद टिप्पणी के बाद शुरू किया गया। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने को कहा था और नाबालिग लड़की के साथ यौन गतिविधियों में शामिल होने के आरोप से 25 वर्षीय व्यक्ति को बरी कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया फैसला
अब न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को खारिज कर दिया है। पीठ ने कहा कि निर्णय लिखने के तरीके के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, खासकर संवेदनशील प्रकृति के मामलों में। इसके अलावा, न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि आरोपी की सजा को पोक्सो अधिनियम की धारा 6 और धारा 376 के तहत बहाल कर दिया है।
बरी आरोपी दोषी करार
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा कि मामले में पीड़ित को निर्णय लेने में मदद करने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल भी गठित किया गया है। पिछले वर्ष अक्टूबर में कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक फैसले से विवाद खड़ा हो गया था, जब यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो अधिनियम) 2012 के तहत एक 25 वर्षीय व्यक्ति की सजा को पलट दिया था और किशोर लड़कियों के यौन व्यवहार के संबंध में टिप्पणी की थी।
पीठ ने कहा, 'किशोरों में यौन संबंध सामान्य है, लेकिन यौन इच्छा या ऐसी इच्छा की उत्तेजना व्यक्ति द्वारा की गई किसी क्रिया पर निर्भर करती है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। इसलिए, यौन इच्छा बिल्कुल भी सामान्य और मानक नहीं है।'
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई में क्या कहा?
उच्च न्यायालय ने 16-18 वर्ष की आयु के किशोरों के बीच सहमति से बने, गैर-शोषणकारी संबंधों को संबोधित करने के लिए POCSO अधिनियम में प्रावधानों की आवश्यकता पर भी ध्यान दिया। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता में इस महीने की शुरुआत में एक जूनियर डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के मामले में दायर याचिका पर भी सुनवाई की। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कोलकाता पुलिस की जांच से असंतुष्टि जताते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी।