आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर
सही मायने में भारत तभी सशक्त एवं समृद्ध होगा जब किसी भी भारतीय समुदाय एवं समाज को किसी भी प्रकार के आरक्षण की आवश्यकता नहीं होगी। समाज में सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे तभी भारतीय समाज एक नई ऊंचाई प्रदान करने के लिए प्रयासरत होगी।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Thu, 10 Nov 2022 10:05 PM (IST)
डा. सुनील कुमार मिश्र। हमारे देश में आरक्षण एक जटिल प्रश्न है जिसे कुछ राजनीतिक दलों द्वारा निरंतर जटिलता प्रदान करने की कोशिश की जाती रही है। आज आरक्षण द्वारा सृजित अनेक अवसर केवल उन लोगों तक ही पहुंच पाते हैं जो आरक्षण का लाभ प्राप्त करते हुए सामाजिक एवं आर्थिक रूप से सशक्त हो चुके हैं। आरक्षण का मूल उद्देश्य शोषित एवं वंचित समाज को अवसर प्रदान कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना था। बाबा साहब आंबेडकर का उद्देश्य भी यही था।
यदि शोषित एवं वंचित समाज आगे बढ़ेगा तभी देश खुशहाल होगा, देश की समृद्धि एवं विकसित राष्ट्र का स्वरूप भी देश के सभी वर्ग की सकारात्मक सहभागिता पर ही निर्भर है। किसी भी राष्ट्र का विकास तभी संभव है जब विकास प्रक्रिया में सभी वर्ग की सहभागिता सुनिश्चित की जाय। वर्तमान सामाजिक एवं राजनीतिक परिवेश में कोई भी राजनीतिक दल आरक्षण को समाप्त करने की सोच भी नहीं सकता, परंतु इसका डर दिखाकर अनेक राजनेता अपनी रोटियां सेंक रहे हैं।
हां, आरक्षण की समीक्षा करना नहीं केवल प्रासंगिक प्रतीत होता है, अपितु यह देश हित में भी है। ऐसे में आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण को सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखना चाहिए, न कि इसे राजनीतिक दृष्टि से लाभ अर्जित करने वाले उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए। यह सशक्त एवं समृद्ध समाज की आधारशिला रखेगा तथा सामान्य वर्ग व अन्य वर्ग के बीच में आ रहे वैचारिक दरार को भी भरने का कार्य करेगा।
भारत का संविधान सभी के लिए समान अवसर की बात करता है एवं ऐसे किसी भी विभेद को समाप्त करने की बात करता है जिससे भारतीय समाज में विषमता व्याप्त हो। केंद्र सरकार और उसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद सरकारी तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्थिक आधार पर मिलने वाला आरक्षण जरूरतमंद को ही मिले। यह इसलिए भी आवश्यक है ताकि गरीबों के लिए दी गई इस संजीवनी को भ्रष्टाचार की आंच से दूर रखा जा सके।
इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बात को समझना चाहिए कि आर्थिक आधार पर मिलने वाला आरक्षण का एक सीमित दायरा है एवं एक सीमित आय वर्ग तक का परिवार ही इसका लाभ ले सकता है। यह उन जरूरतमंद परिवारों के लिए है जिनके लिए सामान्य वर्ग में होने के बावजूद दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिल पाती है। विगत दो वर्षों में ईडब्ल्यूएस श्रेणी में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं प्रोफेसर जैसे पदों के लिए निकाले गए विज्ञापन खानापूर्ति मात्र ही हैं, सरकारी तंत्र को इस दिशा में भी सोचने की आवश्यकता है, क्योंकि इस प्रकार से सरकार का यह गंभीर प्रयास अप्रभावी हो जाता है। गरीब व्यक्ति की कोई जाति नहीं होती है।
सामान्य वर्ग के आर्थिक विपन्न व्यक्ति एवं समाज के लिए रोशनी की किरण दिखाने वाला यह प्रयास तभी सार्थक होगा, जब आरक्षण का लाभ लेने वाले समुदाय के साथ ही विपक्ष में बैठी हुई राजनीतिक पार्टियां इसे सामाजिक बदलाव के उपकरण के रूप में देखेंगी, न कि इसकी धार को कुंद करने का प्रयास करेंगी। साथ ही सामान्य वर्ग के सक्षम लोगों को यह संकल्प लेना होगा कि सरकार द्वारा प्रदत्त इस आरक्षण का लाभ केवल जरूरतमंदों को ही मिले। वैसे तो सही मायने में भारत तभी सशक्त एवं समृद्ध होगा, जब किसी भी भारतीय समुदाय एवं समाज को किसी भी प्रकार के आरक्षण की आवश्यकता नहीं होगी। समाज में सभी के लिए समान अवसर उपलब्ध होंगे तभी भारतीय समाज की सभी इकाई देश को एक नई ऊंचाई प्रदान करने के लिए प्रयासरत होगी।
[असिस्टेंट प्रोफेसर, विवेकानंद इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज, नई दिल्ली]