Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

कर्नाटक में मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करेगा SC, जारी किया नोटिस

कर्नाटक में सरकार को मंदिरों पर नियंत्रण का अधिकार देने वाले कानून पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को इसके लिए नोटिस जारी किया है।इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को इसी मुद्दे पर पहले से लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया है।याचिका मे कहा गया है कि कानूनी प्रावधानों में सिविल कोर्ट की शक्ति को प्रतिबंधित कर दिया गया है

By Jagran News Edited By: Sonu Gupta Updated: Sat, 06 Jan 2024 07:30 PM (IST)
Hero Image
कर्नाटक में मंदिरों पर सरकार के नियंत्रण को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट। फाइल फोटो।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। कर्नाटक में सरकार को मंदिरों पर नियंत्रण का अधिकार देने वाले कानून पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हिन्दू रिलीजियस इंस्टीट्यूशन एंड चैरिटेबल एन्डोवमेंट एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार का मन बनाते हुए कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका को इसी मुद्दे पर पहले से लंबित याचिका के साथ सुनवाई के लिए संलग्न करने का आदेश दिया है।

याचिका में क्या कहा गया है?

याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक सरकार ने इस कानून की शक्तियों का इस्तेमाल करके राज्य में 3400 से ज्यादा हिन्दू मंदिरों का प्रबंधन अपने कब्जे में ले लिया है। कर्नाटक के एच. रजनीकांत ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिए याचिका दाखिल कर कर्नाटक हिन्दू रिलीजियस इंस्टीट्यूशन एंड चैरिटेबल एन्डोवमेंट एक्ट 1997 की धारा 23 ,24ए, 25बी, 35, 36, 42,43, 50, 63 और 68 को चुनौती देते हुए रद करने की मांग की है।

संविधान के कई अनुच्छेदों का हो रहा उल्लंघन  

याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक के कानून की ये धाराएं संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 व 26 (धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार) का उल्लंघन करती हैं और इन्हें असंवैधानिक घोषित किया जाए।

कोर्ट ने जारी किया है नोटिस

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जेबी पार्डीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने तीन जनवरी को याचिकाकर्ता के वकील माधवी दीवान व हरिशंकर जैन की दलीलें सुनने के बाद याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिका में कानून को चुनौती देते हुए कहा गया है कि विधायिका को ऐसा कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 25 और 26 का उल्लंघन करता हो।

 कर्नाटक का यह कानून राज्य सरकार को अनियंत्रित, असीमित शक्तियां देता है, जिसमें कार्यकारी अथारिटी को मंदिरों के धार्मिक कामकाज और प्रबंधन पर नियंत्रण मिल जाता है। जबकि यह एक तय व्यवस्था है कि सरकार मंदिरों के धार्मिक कामकाज और प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और इसमें पुजारी और अर्चक की नियुक्ति उसकी योग्यता और अन्य संबंधित मामले भी शामिल हैं।

यह भी पढ़ेंः मंदिरों पर सरकारी कब्जे का सवाल: चार लाख से अधिक मंदिरों पर सरकारी कब्जा, किंतु चर्च या मस्जिद पर नियंत्रण नहीं

विधायिका कार्यपालिका को हिन्दू मंदिरों की कीमती संपत्ति हथियाने या चल अचल संपत्ति को किसी और उद्देश्य से स्थानांतरित करने की शक्ति नहीं दे सकती, वह संपत्ति जो देवता में निहित है। कहा गया है कि कर्नाटक एक्ट की धारा 23 के तहत जिन संपत्तियों को रखा गया है उनका प्रबंधन सरकार के हाथ लेने का कोई तर्कसंगत आधार और औचित्य नहीं है जब तक कि वे संस्थान या न्यास या मंदिर प्रबंधन लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ न हों जैसा की संविधान का अनुच्छेद 26 कहता है।

हमेंशा के लिए नहीं हो सकता नियंत्रण

याचिका में कहा गया है कि अगर धार्मिक संस्था या मंदिर प्रबंधन में कुप्रबंधन की शिकायत आती है तो सरकार उसे सीमित समय के लिए सीमित उद्देश्य से नियंत्रण में ले सकती है। ये नियंत्रण हमेशा के लिए नहीं हो सकता और न ही हमेशा जारी रह सकता है। याचिका मे कहा गया है कि कानूनी प्रावधानों में सिविल कोर्ट की शक्ति को प्रतिबंधित कर दिया गया है और उसकी जगह विवादों के हल के लिए कोई वैकल्पिक न्यायिक मंच भी नहीं मुहैया कराया गया है।