Supreme court: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट इसी महीने सुनाएगा फैसला
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट इसी महीने फैसला सुना सकता है। केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35ए को समाप्त कर दिया था। याचिकाकर्ताओं में जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता शामिल हैं।
By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Mon, 04 Dec 2023 09:34 PM (IST)
माला दीक्षित, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट इसी महीने फैसला सुना सकता है। बहुत कुछ उम्मीद है कि मामले में फैसला 15 दिसंबर तक ही आ जाए क्योंकि इस मामले में सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ के एक सदस्य न्यायाधीश संजय किशन कौल 25 दिसंबर को सेवानिवृत हो रहे हैं उनकी सेवानिवृति से पहले ही मामले में फैसला आएगा।
तारीखों पर निगाह डालें तो 16 और 17 दिसंबर को शनिवार और रविवार है जबकि 18 दिसंबर से लेकर एक जनवरी तक सुप्रीम कोर्ट में क्रिसमस और शीतकालीन अवकाश रहेगा, ऐसे में 15 दिसंबर सुप्रीम कोर्ट का इस महीने का आखिरी कार्य दिवस होगा, इसलिए फैसला तब तक आ जाने की उम्मीद है।यह भी पढ़ेंः Parliament Winter Session: नए जमाने के Post Office के लिए होगा नया कानून, पोस्ट ऑफिस बिल-2023 राज्यसभा से पारित
5 अगस्त 2029 को समाप्त हुआ था अनुच्छेद 370
केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35ए को समाप्त कर दिया था। याचिकाकर्ताओं में जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता शामिल हैं। याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में बांटे जाने के कानून जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट को भी चुनौती दी गई है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 16 दिन चली लंबी सुनवाई पूरी होने पर पांच सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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तीन साल तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा मामला
जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला करीब तीन साल तक ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। मार्च 2020 के बाद मामले में 2 अगस्त को संविधान पीठ में नियमित सुनवाई शुरू हुई थी और पांच सितंबर को फैसला सुरक्षित हुआ।