Supreme Court ने मणिपुर हिंसा से संबंधित CBI के मामले असम स्थानांतरित किए, ऑनलाइन होगी न्यायिक प्रक्रिया
सीआरपीसी की धारा 164 के तहत गवाहों के बयान मणिपुर में स्थानीय मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में दर्ज करने की अनुमति होगी या उस स्थान पर जहां गवाह मणिपुर के बाहर रहते हों जैसा भी मामला होगा। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार को आदेश दिया है कि वह गौहाटी में सीबीआइ के मामलों में ऑनलाइन सुनवाई के लिए समुचित इंटरनेट सुविधा मुहैया कराएगी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा मामले में राज्य के मौजूदा माहौल और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए शुक्रवार को कई निर्देश जारी किए। मणिपुर हिंसा के सीबीआइ को सौंपे गए मामलों का ट्रायल पड़ोसी राज्य असम में होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि वह सीबीआइ जांच वाले मामलों की सुनवाई के लिए एक या एक से अधिक न्यायिक अधिकारी नामित करें।
वारंट के लिए ऑनलाइन अर्जी दे सकते हैं अधिकारी
रिमांड, अभियुक्तों की पेशी, न्यायिक हिरासत जैसी न्यायिक प्रक्रिया गौहाटी में नामित कोर्ट में ऑनलाइन होगी। जांच अधिकारी गिरफ्तारी और वारंट आदि के लिए ऑनलाइन अर्जी दे सकते हैं। कोर्ट ने ऑनलाइन सुनवाई में हिस्सा लेने की इच्छा न रखने वाले गवाहों और पीड़ितों को अपनी इच्छा से गौहाटी की अदालत में पेश होने की भी इजाजत दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परीक्षण पहचान परेड (टीआइपी) मणिपुर स्थित मजिस्ट्रेट के यहां होगी।
ऑनलाइन सुनवाई के इंटरनेट मुहैया कराए सरकार: कोर्ट
सीआरपीसी की धारा 164 के तहत गवाहों के बयान मणिपुर में स्थानीय मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में दर्ज करने की अनुमति होगी या उस स्थान पर जहां गवाह मणिपुर के बाहर रहते हों, जैसा भी मामला होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार को आदेश दिया है कि वह गौहाटी में सीबीआइ के मामलों में ऑनलाइन सुनवाई के लिए समुचित इंटरनेट सुविधा मुहैया कराएगी। ये आदेश प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने शुक्रवार को मणिपुर हिंसा मामले में सुनवाई के दौरान दिए।
शुक्रवार को जब मामला सुनवाई पर आया तो वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि उन्होंने कमेटी के सदस्यों से बात करके सुझाव कोर्ट में दाखिल कर दिए हैं। तभी मणिपुर सरकार और सीबीआइ व केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जातीय हिंसा से पीड़ित मणिपुर में विशेष समुदायों से संबंधित जजों और आरोपितों के स्थानांतरण को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं हो सकती हैं।
ऐसे में उनका सुझाव है कि हिंसा के जिन मामलों की जांच सीबीआइ कर रही है उन मुकदमों को पड़ोसी राज्य असम की अदालत में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए।
पीड़ितों ने मामले की सुनवाई को ट्रांसफर करने का किया विरोध
कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल का सुझाव स्वीकार करने और मौजूदा हालात पर विचार करने के बाद उपरोक्त आदेश पारित किए। हालांकि, पीड़ितों और गैर सरकारी संगठनों की ओर से पेश वकीलों ने मामलों की सुनवाई असम स्थानांतरित करने का विरोध किया। चीफ जस्टिस ने कहा कि वह अभी फिलहाल मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए आदेश दे रहे हैं। बाद में मामले की समीक्षा होगी। वैसे भी यह आदेश सिर्फ सीबीआइ को सौंपे गए मामलों के बारे में है।
हम बस इतना जानते हैं कि लोग परेशान हैं: सीजेआई
वरिष्ठ वकील कोलिन गोंसाल्विस ने कहा कि मुकदमों की सुनवाई उन्हीं पहाड़ी क्षेत्रों की स्थानीय अदालतों में होनी चाहिए जहां घटना हुई है। ऐसा ही पीड़ित चाहते हैं। उनकी दलील पर चीफ जस्टिस ने कहा कि पीड़ित पहाड़ पर भी रहते हैं और पीड़ित घाटी में भी रहते हैं। लोग दोनों जगह हैं। हम नहीं जानते कि कौन ज्यादा पीड़ित है। बस हम इतना चाहते हैं कि लोग परेशान न हों।
चीफ जस्टिस ने आगे कहा कि मौजूदा हालात को देखते हुए और मामलों का निष्पक्ष ट्रायल सुनिश्चित करने के लिए ये आदेश दिए जा रहे हैं। वकीलों द्वारा गौहाटी के जजों के साथ भाषा संबंधी दिक्कतों का मुद्दा उठाए जाने पर कोर्ट ने गौहाटी के चीफ जस्टिस से कहा है कि वह न्यायिक अधिकारियों को नामित करते वक्त इसका ध्यान रखेंगे कि वे मणिपुर की भाषा समझते हों।