EWS Reservation: EWS आरक्षण पर SC की मुहर, लेकिन सीजेआई और जस्टिस भट्ट इसके खिलाफ; प्रमुख बातें
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध करार दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला बंटा हुआ आया। सीजेआई यूयू ललित और जस्टिस एस रवींद्र भट ने इस मुद्दे पर असहमति जताई। जानिए किस जज ने क्या रखी राय।
By TilakrajEdited By: Updated: Tue, 08 Nov 2022 08:51 AM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) को दिए गए आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध बताते हुए, इससे संविधान के उल्लंघन के सवाल को नकार दिया। इसे मोदी सरकार का एक और महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी ईडब्ल्यूएस को आरक्षण दिए जाने के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच संदस्यीय बेंच ने 3-2 से ये फैसला सुनाया है। इससे यह साफ हो गया कि केंद्र सरकार ने 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, संविधान का उल्लंघन नहीं है। आइए आपको बताते हैं ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले की मुख्य बातें।
- सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखने का फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे से संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं हुआ।
- संविधान पीठ ने ये फैसला 3-2 से सुनाया है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बहुमत का फैसला दिया। वहीं, जस्टिस एस रवींद्र भट और सीजेआई यूयू ललित ने इस मुद्दे पर असहमति जताते हुए इसे अंसवैधानिक करार दिया है।
- सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत कोटा को किसी भी रूप में बाधित नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि गरीब सवर्णों को समाज में बराबरी तक लाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई के रूप में संशोधन की आवश्यकता थी।
- मोदी सरकार ने साल 2019 में 103वें संविधान संशोधन विधेयक के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था की थी, जिसका कई लोगों ने विरोध किया था।
EWS आरक्षण के पक्ष में 3 जज
- जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने EWS आरक्षण के समर्थन में अपनी सहमति जताई। उन्होंने कहा कि आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का किसी भी रूप में उल्लंघन नहीं करता है। ईडब्ल्यूएस आरक्षण समानता संहिता का उल्लंघन नहीं करता।
- जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का को जायज ठहराया है। उन्होंने कहा कि वह जस्टिस माहेश्वरी के साथ सहमत हैं। सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस कोटा वैध और संवैधानिक है।
- जस्टिस जेबी पारदीवाला ने भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण में को आपत्ति नहीं है। मैं जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसले के साथ हूं। हालांकि, EWS कोटा को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए।
चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने EWS आरक्षण के खिलाफ रखी राय
- जस्टिस रवींद्र भट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि संविधान सामाजिक न्याय के साथ छेड़छाड़ की अनुमति नहीं देता है। इस तरह का आरक्षण भारतीय संविधान के आधारभूत ढांचा के तहत उपयुक्त नहीं है। ऐसे आरक्षण की सीमा पार करना संविधान के आधारभूत ढांचे के खिलाफ है। जस्टिस भट ने कहा कि आरक्षण देना कोई गलत नहीं, लेकिन ईडब्ल्यूएस आरक्षण में भी एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए।
- इस मामले में चीफ जस्टिस यूयू ललित की राय ने सभी को चौंकाया। चीफ जस्टिस यूयू ललित ने ईडब्ल्यूएस कोटे के खिलाफ अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि वह जस्टिस भट के निर्णय के साथ हैं। इस तरह EWS कोटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला 3:2 रहा।
साल 2019 में लाए गए ईडब्ल्यूएस कोटा को तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके समेत कई याचिकाकर्ताओं ने इसे संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन बताया था। साल 2022 में संविधान पीठ का गठन हुआ और 13 सिंतबर को चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस दिनेश महेश्वरी, जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पादरीवाला की संविधान पीठ ने सुनवाई शुरू की थी।