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पिता को आवंटित सरकारी घर में रह रहा Govt कर्मचारी HRA का हकदार नहीं, सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि सरकारी कर्मचारी अगर अपने सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी पिता को आवंटित रेंट फ्री सरकारी आवास में रहता है तो वह मकान भत्ता यानि एचआरए का दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने एचआरए लेने पर भेजे गए रिकवरी नोटिस को रद्द करने की मांग ठुकरा दी।

By Jagran News Edited By: Abhinav Atrey Updated: Sat, 11 May 2024 08:52 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया। (फाइल फोटो)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि सरकारी कर्मचारी अगर अपने सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी पिता को आवंटित रेंट फ्री सरकारी आवास में रहता है तो वह मकान भत्ता यानि एचआरए का दावा नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने सरकारी आवास में रहते हुए एचआरए लेने पर भेजे गए रिकवरी नोटिस को रद्द करने की मांग ठुकरा दी।

सुप्रीम कोर्ट में यह फैसला न्यायमूर्ति बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली आर. के. मुंशी की अपील खारिज करते हुए सुनाया है। मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता मुंशी के पिता को सरकारी आवास आवंटित था जो कि जम्मू कश्मीर पुलिस में डीएसपी और विस्थापित कश्मीरी पंडित थे।

किसी एक को ही एचआरए मिल सकता है

याचिकाकर्ता उन्हीं के साथ सरकारी आवास में रहता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी, सरकारी नौकरी से सेवानिवृत हुए अपने पिता को आवंटित रेंट फ्री सरकारी आवास में रहता है तो वह एचआरए का हकदार नहीं हो सकता। वह व्यक्ति एचआरए रूल 6 (एच) (4) का सहारा नहीं ले सकता, जो कहता है कि दो या दो से अधिक सरकारी कर्मचारी जैसे पति पत्नी या माता पिता या बच्चे किसी एक को आवंटित सरकारी आवास में साथ-साथ रहते हैं तो उनमें से किसी एक को ही एचआरए मिल सकता है।

आवास अपीलकर्ता के पिता को आवंटित था

मौजूदा मामले में जम्मू कश्मीर सिविल सर्विस (एचआरए एंड सिटी कंपनशेसन अलाउंस ) रूल 1992 के दो उपबंधों रूल 6 (एच) (1) और (2) तथा रूल 6(एच) (4) का मुद्दा शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आवास अपीलकर्ता के पिता को आवंटित था और वह 1993 में सेवानिवृत हो गए। ऐसे में यह स्वत: सिद्ध है कि पद से हटने के बाद वह एएचआरए का दावा करने के पात्र नहीं हैं।

सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी के तौर पर आवास हुआ था आवंटित

पीठ ने कहा कि यह बात सही है कि उसके पिता को विस्थापित कश्मीरी पंडित और सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी के तौर पर आवास आवंटित हुआ था लेकिन वास्तविकता वही है कि सेवानिवृति के बाद वह एचआरए का दावा नहीं कर सकते। हाई कोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं है।

ये था मामला

इस मामले में याचिकाकर्ता आर. के. मुंशी जम्मू कश्मीर पुलिस में इंस्पेक्टर टेलीकॉम था। वह 30 अप्रैल 2014 को सेवानिवृत हो गया। उसे विभाग से एचआरए रिकवरी का एक नोटिस आया। कहा गया कि उसने अवैध रूप से एचआरए ले लिया है जिसे वह वापस लौटाए। उस पर रूल 6 (एच) के तहत कार्रवाई हुई थी। जिसमें कहा गया था कि सरकारी आवास में रहते हुए उसे एचआरए लिया है।

अपीलकर्ता को 396814 रुपये जमा कराने का नोटिस भेजा गया। उसने रिकवरी नोटिस को हाई कोर्ट में चुनौती दी लेकिन हाई कोर्ट याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आया था।

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