टीवी समाचार चैनलों पर सुप्रीम कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी, नए गाइडलाइंस के लिए NBDA को दिया 4 हफ्ते का समय
टीवी समाचार चैनलों की निगरानी के स्व-नियामक तंत्र को सख्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन को आदेश जारी किया है। अदालत ने एनबीडीए को नए गाइडलाइंस जारी करने के लिए चार और हफ्ते का समय दिया है। दरअसल एनबीडीए की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने सुप्रीम कोर्ट से नए दिशानिर्देश लाने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा था।
नई दिल्ली, ANI। सुप्रीम कोर्ट टीवी समाचार चैनलों की निगरानी के स्व-नियामक तंत्र को 'सख्त' करना चाहती है। इसी को देखते हुए सोमवार को शीर्ष अदालत ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) को नए गाइडलाइंस लाने के लिए और चार हफ्ते का समय दे दिया है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने दलीलों पर सुनवाई की। एनबीडीए की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने नए दिशानिर्देश लाने के लिए चार सप्ताह का समय मांगा। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। जनरल तुषार ने कोर्ट में कहा कि केंद्र सरकार ने इस मामले में पहले ही तीन स्तरीय तंत्र तैयार किया है, जिसमें से पहला सेल्फ रेगुलेशन है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
न्यूज ब्रॉडकास्टर फेडरेशन ऑफ इंडिया (NBFI) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि एनबीएफआई को भी अपने स्वयं के नियम दाखिल करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस पर सीजेआई ने कहा, 'हम चाहते हैं कि स्व-नियामक तंत्र को कड़ा किया जाए।' उन्होंने कहा कि सुझावों और दिशानिर्देशों का स्वागत है। बता दें कि NBDA के विपरित NBFI 2022 नियमों के अनुसार केंद्र के साथ पंजीकृत एकमात्र नियामक संस्था है।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने टीवी समाचार चैनलों की निगरानी के लिए मौजूदा स्व-नियामक तंत्र में गलती पाई थी। इसी को देखते हुए SC ने केंद्र से प्रतिक्रिया मांगी और कहा कि वह गाइडलाइंस को 'अधिक प्रभावी' बनाना चाहती है। पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि वह मीडिया पर कोई सेंसरशिप नहीं लगाना चाहती है।
सुशांत सिंह राजपूत की मौत का क्यों हुआ जिक्र?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दिवंगत बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की कवरेज के दौरान कुछ चैनल आपे में आ गए थे। शीर्ष अदालत ने कहा था कि स्व-नियामक तंत्र के उल्लंघन के लिए टीवी समाचार चैनल पर अधिकतम जुर्माना केवल 1 लाख रुपये लगाया जा सकता है, जो 2008 में तय किया गया था।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि मीडिया ट्रायल अदालत की अवमानना है और मीडिया से आग्रह किया कि वह 'लक्ष्मण रेखा' को पार न करें।
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