अनुच्छेद 361 की समीक्षा करेगा सुप्रीम कोर्ट, इसके तहत राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से मिलती है छूट
सर्वोच्च अदालत अनुच्छेद 361 की समीक्षा करेगा। इस अनुच्छेद की वजह से राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से छूट मिलती है। पश्चिम बंगाल की महिला ने याचिका दाखिल की और मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट दिशा निर्देश तय करे कि राज्यपाल के लिए किस सीमा तक अनुच्छेद 361 के तहत आपराधिक मुकदमे से छूट लागू होगी।12 अगस्त को अगली सुनवाई होगी।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों को आपराधिक मुकदमों से पूर्ण छूट देने वाले संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 361 की समीक्षा करने को राजी हो गया है। कोर्ट ने शुक्रवार को राज्यपाल को आपराधिक कार्यवाही से छूट के बारे में दिशा निर्देश तय करने की मांग वाली एक याचिका पर विचार का मन बनाते हुए नोटिस जारी किया। शीर्ष अदालत ने अटार्नी जनरल से इस मामले की सुनवाई में मदद करने का आग्रह किया है। मामले में 12 अगस्त को फिर सुनवाई होगी।
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क्या है अनुच्छेद 361?
संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपाल को आपराधिक कार्यवाही से पूर्ण छूट प्रदान करता है। अनुच्छेद 361 (2) कहता है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल के पद पर रहते हुए उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही किसी भी अदालत में नहीं चल सकती। यानी उनके पद पर रहते हुए न तो उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज हो सकता है और न ही किसी अदालत में आपराधिक कार्यवाही चल सकती है।
बंगाल की महिला ने दाखिल की याचिका
पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला संविदा कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर राज्यपाल को आपराधिक कार्यवाही से पूर्ण छूट देने वाले इस प्रविधान पर सवाल उठाया है। महिला ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए याचिका में मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट दिशा निर्देश तय करे कि राज्यपाल के लिए किस सीमा तक अनुच्छेद 361 के तहत आपराधिक मुकदमे से छूट लागू होगी।
राज्यपाल किस हद तक संविधान में मिली इस छूट का लाभ ले सकते हैं। इसके साथ ही याचिका में यह भी मांग की गई है कि अगर कोर्ट को जरूरी लगे तो वह पश्चिम बंगाल पुलिस को मामले की जांच करने और माननीय राज्यपाल का बयान दर्ज करने का आदेश दे।
अनुच्छेद 361 में मिली छूट का मुद्दा उठाया
शुक्रवार को यह याचिका प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष सुनवाई पर लगी थी। महिला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने राज्यपाल को अनुच्छेद 361 में मिली छूट का मुद्दा उठाया और याचिका में लगाए गए आरोपों का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई जांच ही न हो। उन्होंने कहा कि मामले की जांच करके अभी ही साक्ष्य एकत्र किये जाने चाहिए, इसे अनिश्चितकाल तक नहीं टाला जा सकता। उन्होंने कहा कि कोर्ट याचिका में की गई मांग सी और डी पर नोटिस जारी करे।
बंगाल सरकार को बनाया पक्षकार
मांग सी में पुलिस को जांच करने और राज्यपाल का बयान दर्ज करने का निर्देश मांगा गया है जबकि मांग डी में राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 361 में आपराधिक कार्यवाही से मिली पूर्ण छूट का दायरा तय करने और दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है। याचिका में सिर्फ पश्चिम बंगाल सरकार को पक्षकार बनाया गया है।
पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मामले में केंद्र सरकार को पक्षकार बनाने की छूट देते हुए पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने आदेश में लिखाया कि याचिकाकर्ता ने राज्यपाल के पद पर रहने के दौरान अनुच्छेद 361 में आपराधिक कार्यवाही से मिली छूट का मुद्दा उठाया है। याचिका में यह मुद्दा उठाया गया है कि कब आपराधिक कार्यवाही शुरू हो सकती है। कोर्ट ने मामले पर विचार का मन बनाते हुए नोटिस जारी किया।
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