Surdas Jayanti 2020: जब महाकवि सूरदास को भी देनी पड़ी थी भक्ति की परीक्षा
Surdas Jayanti 2020 सूरदास के गुरु बल्लभाचार्य के वंशज ने एक बार परीक्षा लेने के लिए प्रभु को वस्त्र धारण नहीं कराए महाकवि ने वैसा पद सुना दिया।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 28 Apr 2020 09:27 AM (IST)
रसिक शर्मा, मथुरा। Surdas Jayanti 2020: हिंदी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रज भाषा के महाकवि सूरदास को भी एक बार अपनी भक्ति और काव्य रचना की परीक्षा देनी पड़ी थी। प्रभु का जैसा श्रृंगार होता है, नेत्रों से दिव्यांग होते हुए भी वह वैसा ही वर्णन अपने पद में करते थे। उनके गुरु बल्लभाचार्य के वंशज ने एक बार परीक्षा लेने के लिए प्रभु को वस्त्र धारण नहीं कराए।
..और ब्रज रज को पीठ दिखाकर नहीं गए सूर : महाकवि ने वैसा पद सुना दिया-आज हरि देखे नंगम नंगा। इसके बाद उनकी भक्ति पर सवाल उठाने वाले निशब्द हो गए। सूरदास ने काव्य की साधना में भक्तिकाल के स्वर्णिम 73 वर्ष गोवर्धन के समीप चंद्र सरोवर (राजस्व ग्राम के रूप में परासौली दर्ज है) में बिताए। यहां पर ही रहकर उन्होंने ब्रजभाषा में पदों की रचना की।भागवत किंकर गोपाल प्रसाद उपाध्याय बताते हैं कि इतिहास में वर्णन मिलता है कि सूरदास जी का जन्म वैशाख सुदी पंचमी संवत 1535 में हुआ। उन्होंने 15 वर्ष की अवस्था में महाप्रभु बल्लभाचार्य जी से दीक्षा ली। दीक्षा से पूर्व वह विनय के पद लिखा करते थे। दीक्षा के उपरांत बल्लभाचार्य जी की कृपा से भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का गायन किया।
रचित पद ‘भरोसौ दृण इन चरणन केरौ : वह बताते हैं कि चंद्रसरोवर से करीब तीन किमी दूर जतीपुरा में श्रीनाथजी को नित्य कीर्तन सुनाने जाते थे। सदगुरु बल्लभाचार्य में उनकी आस्था थी, जिसका प्रमाण उनके द्वारा रचित पद ‘भरोसौ दृण इन चरणन केरौ’ में मिलता है। सूरदास जी रोजाना प्रभु की श्रृंगार सेवा में उपस्थित रहते थे। भगवान का जैसा शृंगार होता था, उसी का वर्णन वह पदों के माध्यम से करते थे। एक बार गोकुलनाथ (बल्लभाचार्य के वंशज) ने प्रभु का शृंगार कर सूरदास जी की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने प्रभु का पुष्पों से शृंगार किया।
प्रभु को वस्त्र धारण नहीं कराए और सूरदास से शृंगार का पद गाने के लिए कहा। इस पर सूरदास जी ने सुनाया-आज हरि देखे नंगम नंगा। उन्होंने सूर सागर, साहित्य लहरी, सूर सारावली जैसे ग्रंथों की रचना की। संवत 1640 में परासौली में उन्होंने इस दुनिया से विदा ली, सूरदास जी की समाधि परासौली में है।सूरदास के गुरु बल्लभाचार्य के वंशज ने एक बार परीक्षा लेने के लिए प्रभु को वस्त्र धारण नहीं कराए, महाकवि ने वैसा पद सुना दिया।