अब जन्म से पहले ही हो सकेगा गर्भस्थ शिशुअों का इलाज, नई तकनीक विकसित
गर्भाशय को इस तरह ऊपर उठाया गया कि वह अंदर से मां के शरीर से जुड़ा रहे। गर्भाशय से एम्नीऑटिक फ्लुइड को निकाला गया।
नई दिल्ली (जेएनएन)। अमेरिकी डॉक्टरों ने एक अभूतपूर्व ऑपरेशन करके शिशु स्वास्थ्य की दिशा में क्रांतिकारी पहल की है। अमेरिकी शहर टेक्सास में डॉक्टरों ने एक गर्भवती महिला के गर्भाशय को बाहर निकालकर 24 हफ्ते के शिशु की गंभीर बीमारी का सफल ऑपरेशन किया। शिशु को स्पाइना बिफिडा नामक रीढ़ की हड्डी की बीमारी थी, जिसमें बच्चा जीवनभर के लिए अपंग हो सकता है। इस तकनीक के सफल होने से शिशुओं को होने वाली बीमारियों को गर्भ में यानी उनके जन्म लेने से पहले ही ठीक करने की संभावना जगी है। इस तकनीक से भ्रूणावस्था में ही लाइलाज रोगों का इलाज संभव हो सकेगा।
तीन साल का परिश्रम टेक्सास के डॉक्टरों ने स्पेन के बार्सीलोना के डॉक्टरों के साथ मिलकर चिकित्सा क्षेत्र की इस क्रांतिकारी तकनीक को तैयार किया। अमेरिकी डॉक्टरों ने रबर की फुटबॉल के अंदर मुर्गी की खाल पहनी गुड़िया पर कई बार इस तकनीक का परीक्षण किया। ऑब्सट्रेटिक्स एंड गायनेकोलॉजी नामक जर्नल के मुताबिक डॉक्टरों की टीम ने 2014 से अब तक 24-26 हफ्ते के 28 भू्रणों का सफल इलाज किया है। इस उपलब्धि की सार्वजनिक घोषणा अब हुई।
क्रांतिकारी तकनीक :
फीटोस्कोपिक रिपेयर तकनीक में मां के गर्भाशय को शरीर से बाहर निकालकर उसमें रौशनी वाला छोटा कैमरा डाला जाता है। स्क्रीन पर गर्भाशय की तस्वीरों को देखकर बारीक औजारों से ऑपरेशन किया जाता है।
स्पाइना बिफिडा :
एक लाख शिशुओं में से 24 को होने वाली इस बीमारी में शिशुओं की रीढ़ की हड्डी का कुछ हिस्सा खुला रह जाता है। यह बीमारी विटामिन-बी फॉलिक एसिड की कमी से होती है। गर्भाशय में शिशु के चारों ओर मौजूद एम्नीऑटिक फ्लुइड रीढ़ की नाजुक नसों के लिए जहरीला हो जाता है।
ऐसे किया सफल इलाज
1. 13 हफ्ते के भ्रूण में स्पाइना बिफिडा नामक बीमारी पाई गई। गर्भावस्था की समयावधि बढ़ने के साथ शिशु की रीढ़ की हड्डी को अधिक क्षति पहुंचने का खतरा था। इसे ठीक करने के लिए दस डॉक्टरों की टीम ने तीन घंटे तक ऑपरेशन किया।
2. गर्भाशय को इस तरह ऊपर उठाया गया कि वह अंदर से मां के शरीर से जुड़ा रहे। गर्भाशय से एम्नीऑटिक फ्लुइड को निकाला गया। गर्भाशय को बड़ा करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड पंप किया गया।
3. शिशु के शरीर के दोनों तरफ दो चीरे लगाए गए जिससे त्वचा ढीली हो सके। इस त्वचा को खींचकर रीढ़ की हड्डी के खुले भाग को ढांका गया। इन्हें टांकों की मदद से जोड़ा गया जिससे एम्नीऑटिक फ्लुइड दोबारा बनने के बाद घाव में न भरे।