'सभापीठ की अवज्ञा के कारण निलंबन हो गया था जरूरी', उपराष्ट्रपति धनखड़ ने खरगे और पवार को लिखा पत्र
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे एवं राकांपा प्रमुख शरद पवार को पत्र लिखकर कहा है कि स्वीकार नहीं की जाने वाली मांगों के जरिये सदन को पंगू बनाने का प्रयास दुर्भाग्यपूर्ण है। धनखड़ ने खरगे को लिखे पत्र में कहा कि पीड़ा के साथ कह रहा हूं कि मेरे आग्रह और प्रयासों को सदन में स्वस्थ कामकाज के लिए आपका समर्थन नहीं मिला।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। संसद की सुरक्षा में सेंध मामले का संदर्भ लेते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के दो बड़े नेताओं से आसन के प्रतिकूल व्यवहार पर चिंता जताई है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे एवं राकांपा प्रमुख शरद पवार को पत्र लिखकर कहा है कि स्वीकार नहीं की जाने वाली मांगों के जरिये सदन को पंगू बनाने का प्रयास दुर्भाग्यपूर्ण है।
सभापति ने सदस्यों के निलंबन को जरूरी बताते हुए कहा कि अत्यधिक कदाचार और सभापीठ की अवज्ञा के कारण ऐसा करना जरूरी हो गया था। धनखड़ ने खरगे को लिखे पत्र में कहा,
यह भी पढ़ें: नया कानून लागू होने से आपराधिक मुकदमा वापस लेने के सरकार के एकतरफा अधिकार पर लगेगा अंकुशपीड़ा के साथ कह रहा हूं कि मेरे आग्रह और प्रयासों को सदन में स्वस्थ कामकाज के लिए आपका समर्थन नहीं मिला। अनुभवी नेता के तौर पर आप जानते हैं कि पीठासीन अधिकारी के साथ बातचीत उच्च प्राथमिकता होती है। सभापति के लिए इससे अधिक पीड़ादायक कुछ नहीं हो सकता कि मुलाकात का आग्रह स्वीकार नहीं किया गया। यह संसदीय परंपरा के अनुरूप नहीं था। इस तरह का विमर्श सभापति को सदन में सार्थक बहस के लिए प्रेरित करता है।
'दलगत दृष्टि से न देखें यह घटना'
पवार को लिखे पत्र में धनखड़ ने संसद की सुरक्षा में चूक को सबके लिए चिंताजनक बताते हुए कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने तत्परता से अन्वेषण और जांच सुनिश्चित की। विभिन्न दलों के नेताओं से बातचीत की और उनके सुझावों को कार्यान्वित किया। इस घटना को दलगत दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। इस समस्या का समाधान करने तथा उपाय करने के लिए हम सबको सामूहिक रूप से विचार की आवश्यकता है।
धनखड़ ने लिखा कि व्यापक धारणा है कि इस मुद्दे का राजनीतिकरण किया जा रहा है, जो चिंता से निपटने के लिए सामूहिक संकल्प प्रदर्शित करने की जरूरत से पूरी तरह अलग है। देखकर दुख हुआ कि कुशल राजनीतिज्ञ का दृष्टिकोण प्रदर्शित करने और उच्च सदन की गरिमा बनाए रखने के बजाय अनुभवी सदस्यों ने भी दलगत भावना से प्रेरित दृष्टिकोण अपनाया।
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