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Swami Swaroopanand No More: स्‍वामी स्वरूपानंद सरस्वती को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं माना था शंकराचार्य, क्‍या था पूरा विवाद

हाईकोर्ट ने यह आदेश शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा 1989 में दायर एक याचिका पर दिया था। वर्ष 1973 से बद्रीनाथ धाम का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आरोप लगाया था कि स्वामी वासुदेवानंद फर्जी दस्तावेजों के जरिये पर अपना दावा पेश करते रहे हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Sun, 11 Sep 2022 06:43 PM (IST)
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बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य की पदवी को लेकर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
नई दिल्‍ली, जेएनएन। 2017 में बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य की पदवी को लेकर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती के बीच चल रहे विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिष पीठ को लेकर फैसला सुनाते हुए दोनों को शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया थो। इसे लेकर जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस केजे ठाकर की डिवीजन बेंच ने फैसला सुनाया था। ज्ञात हो कि शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का रविवार को निधन हो गया। स्‍वामी स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती दो पीठों (ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ) के शंकराचार्य थे। वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे।

3 माह में नये शंकराचार्य के चयन करने का दिया था आदेश

वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 3 माह में नये शंकराचार्य के चयन करने का दिया आदेश था। हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि नई नियुक्‍ति तक स्वामी वासुदेवानन्द शंकराचार्य के पद पर बने रहेंगे। वहीं हाईकोर्ट ने काशी विद्वत परिषद, भारत धर्म महामण्डल और धार्मिक संगठन मिलकर नये शंकराचार्य का चुनाव करने का आदेश दिया था। तीनों पीठों के शंकराचार्यों की मदद से शंकराचार्य घोषित करने का आदेश दिया था।

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने दायर की थी याचिका

हाईकोर्ट ने यह आदेश शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा 1989 में दायर एक याचिका पर दिया था। वर्ष 1973 से बद्रीनाथ धाम का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आरोप लगाया था कि स्वामी वासुदेवानंद फर्जी दस्तावेजों के जरिये पर अपना दावा पेश करते रहे हैं। वह एक दंडी संन्यासी होने के पात्र नहीं हैं क्योंकि वह नौकरी में रहे हैं और 1989 से वेतन लेते रहे हैं।

कोर्ट ने 4 पीठों को ही वैध पीठ माना

कोर्ट ने कहा था कि नए शंकराचार्य के चयन में 1941 की प्रक्रिया अपनायी जाए। हाईकोर्ट ने शंकराचार्य की नियुक्ति होने तक यथास्थिति कायम रखने का भी आदेश दिया था। कोर्ट ने आदि शंकराचार्य द्वारा घोषित 4 पीठों को ही वैध पीठ माना। कोर्ट ने स्वघोषित शंकराचार्य पर भी कटाक्ष किया। कोर्ट ने फर्जी शंकराचार्यों और मठाधीशों पर भी अंकुश लगाने का निर्देश दिया था।

शंकराचार्य के पदवी को लेकर स्वामी वासुदेवानन्द और स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती के बीच विवाद था। निचली अदालत ने स्वामी वासुदेवानन्द के खिलाफ फैसला सुनाया था। जिला कोर्ट ने 5 मई 2015 को अपने फैसले में स्वामी वासुदेवानंद को शंकराचार्य नहीं माना था। उनके छत्र, चंवर, सिंहासन धारण करने पर रोक लगा दी थी।

ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य बने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

बाद में 25 नवंबर, 2017 को फैसला लिया गया था कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ही ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य होंगे। श्री भारत धर्म महामंडल वाराणसी द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार सर्व सम्मति से यह निर्णय तीनों पीठों के शंकराचार्य, विद्वानों, पंडितों, संन्यासियों ने लिया था।