Swami Vivekanand के नाम बदलने की कहानी भी है अनूठी, पहले कहे जाते थे नरेंद्रनाथ
Swami Vivekanand का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। क्या आप जानते हैं कि Swami Vivekanand नाम उन्हें कैसे मिला।
By Digpal SinghEdited By: Updated: Sat, 12 Jan 2019 11:04 AM (IST)
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। Swami Vivekanand (स्वामी विवेकानंद) का आज जन्मदिन है। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में स्वामी जी का जन्म हुआ था। शिकागो में 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म संसद के दौरान सबसे दमदार भाषण देकर उन्होंने भारत की पहचान को विश्व में स्थापित कर दिया था। यह तो आप जानते ही हैं कि Swami Vivekanand का असली नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था। क्या आप जानते हैं कि Swami Vivekanand नाम उन्हें कैसे मिला।
स्वामी जी के नरेंद्रनाथ से विवेकानंद बनने की कहानी भी जानेंगे। पहले जान लेते हैं स्वामी जी से जुड़ा एक रोचक प्रसंग। स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। वो किसी भी काम को करने से पहले उनसे सलाह-मशविरा और आशीर्वाद लिया करते थे। स्वामी जी के गुरु का देहांत हो चुका था और जिस साल उन्हें अमेरिका जाना था वो उनके साथ नहीं थे। इस स्थिति में उन्होंने अपनी गुरु मां का आशीर्वाद लेना चाहा। विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस की पत्नी मां शारदा के पास पहुंचे। उन्होंने उनके पैर छुए और उन्हें बताया कि उन्हें अमेरिका में भाषण देने जाना है और वो उनका आशीर्वाद लेना चाहते हैं। लेकिन इस पर मां शारदा ने कहा कि तुम कल आना मैं देखना चाहती हूं कि तुम इस काबिल हो भी या नहीं।
चाकू उठाकर दिया और मिल गया मां शारदा का आशीर्वाद
मां की बात सुनकर स्वामी जी थोड़ा हैरान रह गए थे। लेकिन गुरु मां के कहे अनुसार वो अगले दिन फिर उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे। विवेकानंद जब पहुंचे तो मां शारदा रसोई में थीं। विवेकानंद ने उनसे कहा कि मां मैं आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। मां शारदा ने यह सुनकर कहा ठीक है पहले तुम मुझे चाकू उठाकर दो मुझे सब्जी काटनी है। विवेकानंद ने चाकू उठाया और मां की तरफ बढ़ा दिया। चाकू लेते ही मां शारदा ने अपने विवेकानंद को आशीर्वाद दे दिया।
मां की बात सुनकर स्वामी जी थोड़ा हैरान रह गए थे। लेकिन गुरु मां के कहे अनुसार वो अगले दिन फिर उनका आशीर्वाद लेने पहुंचे। विवेकानंद जब पहुंचे तो मां शारदा रसोई में थीं। विवेकानंद ने उनसे कहा कि मां मैं आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। मां शारदा ने यह सुनकर कहा ठीक है पहले तुम मुझे चाकू उठाकर दो मुझे सब्जी काटनी है। विवेकानंद ने चाकू उठाया और मां की तरफ बढ़ा दिया। चाकू लेते ही मां शारदा ने अपने विवेकानंद को आशीर्वाद दे दिया।
मां ने कहा, ‘जाओ नरेंद्र मेरे समस्त आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं।' मां का आशीर्वाद पाने के बाद भी नरेंद्र को बेचैनी थी, उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर चाकू का आशीर्वाद से क्या जुड़ाव है और उन्होंने आखिरकार मां से यह पूछ ही लिया। तब मां ने उन्हें बताया कि बेटा, “जब भी कोई दूसरे को चाकू पकड़ाता है तो धार वाला सिरा पकड़ाता है लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया।”
ऐसे बने नरेंद्रनाथ से विवेकानंद
अब बात करते हैं नरेंद्रनाथ दत्ता कैसे स्वामी विवेकानंद बन गए। आप भी जानना चाहेंगे कि उन्हें विवेकानंद नाम किसने दिया। इस बारे में बेहद कम लोगों को ही जानकारी है। अक्सर माना जाता है कि यह नाम उन्हें उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने दिया, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल हुआ यूं कि स्वामी जी को अमेरिका यात्रा पर जाना था। लेकिन, अमेरिका जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। उनकी इस पूरी यात्रा का खर्च राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने उठाया था। उन्होंने ही स्वामी जी को विवेकानंद नाम भी दिया। प्रसिद्द फ्रांसिसी लेखक रोमां रोलां ने अपनी किताब 'द लाइफ ऑफ़ विवेकानंद एंड द यूनिवर्सल गोस्पल' में भी लिखा कि शिकागो में आयोजित 1891 में विश्वधर्म संसद में जाने के लिए राजा के कहने पर स्वामीजी ने यही नाम स्वीकार किया।
अब बात करते हैं नरेंद्रनाथ दत्ता कैसे स्वामी विवेकानंद बन गए। आप भी जानना चाहेंगे कि उन्हें विवेकानंद नाम किसने दिया। इस बारे में बेहद कम लोगों को ही जानकारी है। अक्सर माना जाता है कि यह नाम उन्हें उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने दिया, लेकिन ऐसा नहीं है। दरअसल हुआ यूं कि स्वामी जी को अमेरिका यात्रा पर जाना था। लेकिन, अमेरिका जाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। उनकी इस पूरी यात्रा का खर्च राजपूताना के खेतड़ी नरेश ने उठाया था। उन्होंने ही स्वामी जी को विवेकानंद नाम भी दिया। प्रसिद्द फ्रांसिसी लेखक रोमां रोलां ने अपनी किताब 'द लाइफ ऑफ़ विवेकानंद एंड द यूनिवर्सल गोस्पल' में भी लिखा कि शिकागो में आयोजित 1891 में विश्वधर्म संसद में जाने के लिए राजा के कहने पर स्वामीजी ने यही नाम स्वीकार किया।
शिकागो पहुंचकर विवेकानंद हर जुबां पर छा गए
शिकागो में उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत भाईयो और बहनों शब्दों के साथ की। इसके बाद उन्होंने भारतीय धर्म और दर्शन का जो जिक्र किया, उनके उस भाषण को सुनकर वहां मौजूद सभी लोग आश्चर्य चकित रह गए। यह इसलिए भी था, क्योंकि इतनी कम आयु का इतना जबरदस्त भाषण देने वाला वहां कोई दूसरा नहीं था। इससे पहले शून्य को लेकर ऐसा भाषण किसी ने नहीं दिया था।
शिकागो में उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत भाईयो और बहनों शब्दों के साथ की। इसके बाद उन्होंने भारतीय धर्म और दर्शन का जो जिक्र किया, उनके उस भाषण को सुनकर वहां मौजूद सभी लोग आश्चर्य चकित रह गए। यह इसलिए भी था, क्योंकि इतनी कम आयु का इतना जबरदस्त भाषण देने वाला वहां कोई दूसरा नहीं था। इससे पहले शून्य को लेकर ऐसा भाषण किसी ने नहीं दिया था।