खुद हजरत मुहम्मद साहब का संदेश कैसे भूल गई तबलीगी जमात, ये इंसान और इंसानियत के भी दुश्मन
अफसोस की बात है दीन की शिक्षा देने वाली तबलीगी जमात खुद हजरत मुहम्मद साहब के दिए गए संदेश को भूल गई।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 05 Apr 2020 05:58 PM (IST)
रामिश सिद्दीकी। भारत में कोरोना महामारी से बचने के लिए सुरक्षात्मक उपाय पहली बार जनवरी में लागू किए गए थे जब सरकार ने चीन से आने वाले सभी यात्रियों की थर्मल स्क्रीनिंग करने के लिए अपने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को निर्देश जारी किया था। इसके बाद ही सरकार ने विदेश से आने वाले सभी यात्रियों को इसके दायरे में रखकर समझदारी भरा कदम उठाया। 19 मार्च को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने 22 मार्च की सुबह 7 बजे से रात्रि 9 बजे तक सभी नागरिकों को ‘जनता कर्फ्यू ’ (लोगों के कर्फ्यू) का पालन करने के लिए कहा। उसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा यह घोषणा हुई कि 23 मार्च, 2020 की सुबह 6 बजे से दिल्ली को 31 मार्च तक बंद रखा जाएगा। 24 मार्च को प्रधानमंत्री ने 21 दिनों के लिए देशव्यापी बंद का आदेश दिया।
जब देश के नागरिक अपने घरों में रहकर ईश्वर से कोरोना वायरस से बचने के लिए प्रार्थना कर रहे थे, तभी देश की राजधानी नई दिल्ली से एक खबर सामने आई कि मार्च के शुरू में दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात में 13 मार्च को इंडोनेशिया, मलेशिया और अन्य देशों के नागरिकों के साथ 3,000 से अधिक लोगों का एक कार्यक्रम हुआ। देश भर से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले कई लोगों में कोविड-19 के लक्षण पाए जा रहे हैं चाहे वे तमिलनाडु से हों या कश्मीर से। आज इस कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों में से लगभग 10 लोग कोविड-19 के कारण मर भी चुके हैं, जिनमें जमात के कश्मीर प्रमुख भी शामिल हैं। आलम ये हो गया है कि देश के कुल कोरोना वायरस संक्रमितों में एक चौथाई संख्या उन लोगों की है जिनका दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी मरकज से प्रत्यक्ष या परोक्ष नाता रहा है।
हम पूछना चाहते हैं कि जमात ने इस महामारी के चलते अपने कार्यक्रम को रद्द करने के लिए दूरदर्शिता क्यों नहीं दिखाई? जमात एक विश्वव्यापी संगठन है और इसे दुनिया भर में मौजूद बड़े इस्लामी संगठनों में से एक गिना जाता है। अपने विशाल नेटवर्क के बावजूद वे ये मापने में विफल कैसे रहे कि विदेशी नागरिकों को ऐसे समय में इतनी बड़ी संख्या में लाकर देश में रह रहे अनेकों के लिए ख़तरा बन सकते हैं। उनका कार्यक्रम समाप्त होने के बाद भी उनके यहां एक बड़ी संख्या में लोग एक-साथ वहीं रुके रहे जिनमें से कुछ में कोविड-19 के लक्षण नज़र आने लगे थे।
जमात एक लंबे समय से मुसलमानों के भीतर इस्लाम का प्रचार करने और उन्हें धर्म के बुनियादी सिद्धांतों के बारे में बताने का काम करता आया है। लेकिन वे स्वयं हजरत मुहम्मद साहब का संदेश कैसे भूल गए जहां उन्होंने बताया था कि ऐसी महामारी के समय किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए? मैं यहां पैगंबर साहब के जीवन के दो उद्धरणों को पेश करना चाहता हूं। जब उन्होंने एक बार अपने एक साथी से कहा था कि स्वस्थ के साथ बीमार को मत बैठाओ। यह इस्लाम के पैगंबर का एक स्पष्ट संदेश था ऐसे समय के लिए जब आपके बीच कोई ऐसा बीमार व्यक्ति हो जिसे संक्रामक बीमारी हो।
पैगंबर साहब के समय कुष्ठ रोग एक संक्रामक बीमारी थी। स्वास्थ्य विज्ञान 1450 साल पहले तक इतना विकसित नहीं हुआ था कि वह उस रोग का इलाज कर सकता। ऐसी संक्रामक बीमारी पर पैगंबर साहब ने एक बार कहा था कि इससे ऐसे दूर भागो जैसे आप एक शेर से दूर भागते हैं। उपरोक्त दो बातों से यह स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति या समाज का व्यवहार ऐसे संक्रामक रोगों के समय कैसा होना चाहिए। यही संदेश जो डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार द्वारा भी इतने लंबे समय से प्रचारित किया जा रहा है जिसके चलते आज देशव्यापी बंद किया गया।
लेकिन इन सबके बावजूद भी कुछ दिनों पहले तक मरकज में 1000 से अधिक लोग एकत्रित रहे जिनमें से कुछ कोविड-19 से संक्रमित थे। मीडिया के माध्यम से यह भी सामने आया है के जमात के संक्रमित लोग जिन्हें क्वारंटाइन किया गया है, वे उन डॉक्टरों से इलाज कराने से इंकार कर रहे हैं जो मुस्लिम नहीं हैं। मैं ऐसे लोगों को याद दिलाना चाहता हूँ कि मदीना के लोगों को पढ़ाने वाले शिक्षकों का पहला जत्था गैर-मुस्लिम था। समाज और सरकार एक पहिए के दो दांते की तरह हैं और ये दोनों दांते मिलकर किसी राष्ट्र के पहिए को आगे बढ़ाते हैं।
आज जब सरकार अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए इतना बड़ा बलिदान कर रही है जहां उसने देश बंद करने का निर्णय लिया, जो आज अमेरिका जैसा देश भी नहीं ले पा रहा है तो देश के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह सरकार के साथ सहयोग करे। वे सभी लोग जो जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और जिनके संक्रमित होने की आशंका है उन्हें अपने यहां के स्वास्थ्य अधिकारियों से संपर्क करना चाहिए और उनके दिशानिर्देश का पालन करना चाहिए, ताकि ये बीमारी दूसरों को फैलने से रोकी जा सके। इस तरह न केवल वे अपने परिवार और दोस्तों की रक्षा करेंगे बल्कि हदीस का पालन करते हुए एक जिम्मेदार मुस्लिम की भूमिका निभाएंगे और साथ राष्ट्र की सुरक्षा में भी योगदान देंगे।
(लेखक इस्लामिक विषयों के जानकार हैं)ये भी पढ़ें:- COVID-19: इस संकट की घड़ी में अब धर्म बनेगा दुनिया के लिए संबल, विज्ञान की राह पर धर्म
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