मसालों पर नहीं लोग किन हालात में भोजन तैयार करते हैं, खाने का स्वाद भी उसी पर निर्भर
आपने महसूस किया होगा कि एक ही सामग्री और विधि अपनाने पर भी दो लोगों का खाना एक जैसा नहीं बनता है। वास्तव में भोजन में केवल स्थूल ही नहीं सूक्ष्म सामग्री का भी समावेश होता है। इसे सामान्य मनुष्य भावना की तरह समझ सकता है।
डा. महेश परिमल। हमारी संवेदनाएं बहुत काम की होती हैं। संवेदनाओं की यह यात्रा जीवन के हर क्षेत्र में होती है। जिस तरह से दिल से दिल के तार जुड़ते हैं, वैसे ही संवेदनाएं भी संवेदनाओं से मेल-मिलाप करती हैं। घर में मां जब भी भोजन बनाती हैं, वह सदैव रुचिकर और स्वादिष्ट होता ही है, क्योंकि वह भोजन बनाते समय स्वयं को झोंक देती हैं। यही बात घर के अन्य सदस्यों के बनाए भोजन में कई बार नहीं होती। लोग किन हालात में भोजन तैयार करते हैं, भोजन का स्वाद भी उसी पर निर्भर करता है। घर में विवाद हो, उसके बाद भोजन बने तो वह भोजन कभी भी रुचिकर या स्वादिष्ट नहीं होगा, क्योंकि उस समय मन में बुरे विचारों का भाव होगा, जो भोजन में अनायास ही चला जाएगा। इस तरह से विचार और संवेदनाएं अपना काम करती हैं।
इसे यदि धर्म की दृष्टि से देखें तो स्पष्ट होगा कि भोजन की दो देवियां हैं। मां अन्नपूर्णा और मां शीतला। भोजन बनाने की प्रक्रिया अपनेआप में पूजा है। पूजा जब भी की जाती है, प्रफुल्लित मन से। तभी ईश्वर प्रसाद ग्रहण करेंगे और तभी वह मनुष्यों के खाने लायक होगा। आपने महसूस किया होगा कि एक ही सामग्री और विधि अपनाने पर भी दो लोगों का खाना एक जैसा नहीं बनता है। वास्तव में भोजन में केवल स्थूल ही नहीं, सूक्ष्म सामग्री का भी समावेश होता है। इसे सामान्य मनुष्य भावना की तरह समझ सकता है। जैसी भावना रखते हुए भोजन बनाया जाएगा, वैसा ही उसका स्वाद आएगा और वैसा ही व्यक्ति पर प्रभाव पड़ेगा।
बीते समय में लोगों का आग्रह होता था कि रसोई में स्नानादि के बाद ही जाया जाए। इसका कारण यही था कि मन शांत और शरीर पवित्र हो, तो भोजन भी अमृत जैसा होता है। भोजन में अपनेपन की एक गंध होती है, जिसे अक्सर हम उस समय महसूस करते हैं, जब हम किसी बेहद अपने के घर भोजन करते हैं। भोजन के पहले लोगों के हाव-भाव से ही पता चल जाता है कि भोजन कैसा बना होगा। कई बार ऐसा भी होता है कि भोजन पूरी तन्मयता से बनाया जाए, पर भोजन ग्रहण करने वाले की स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह भी उसी अपनेपन के साथ भोजन ग्रहण करे। इसलिए दोनों में तादात्म्य होना आवश्यक है। इसके बिना भोजन के स्वाद की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए जब भी भोजन करें, तो पहले उसे प्रणाम अवश्य करें।
आपका भोजन जहां से आया है, उस भंडार को और जिसने भोजन बनाया है, उसका धन्यवाद करें। यह तादात्म्य की पहली सीढ़ी है। इसके बाद भोजन हृदय से ग्रहण करें, एक-एक निवाला आपको तृप्त करता जाएगा और आप संतुष्टि की परमसीमा तक पहुंच जाएंगे। कुछ ही देर में आपको भोजन से संतुष्टि प्राप्त हो जाएगी। उसके बाद यह अवसर फिर मिले, इसी कामना के साथ आप भोजन समाप्त करेंगे, तो निश्चित ही आप स्वयं को सौभाग्यशाली मानेंगे।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)