'पत्नी को ताना मारना, टीवी देखने नहीं देना क्रूरता नहीं हो सकती', बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला
Bombay high court News महिला के ससुराल वालों की गवाही के आधार पर उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपों को आत्महत्या का तत्काल कारण नहीं माना जा सकता क्योंकि मृतका अपनी जान लेने से लगभग दो महीने पहले अपने ससुराल गई थी। न्यायाधीश ने 20 साल पहले आरोपी को दोषी ठहराते समय ट्रायल कोर्ट की अनुचित टिप्पणियों की भी आलोचना की।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बॉम्बे हाई कोर्ट ने शनिवार को एक हैरान करने वाला फैसला दिया। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी को ताना मारना, उसे अकेले मंदिर नहीं जाने देना या कालीन पर सुलाना आईपीसी की धारा 498ए के तहत 'क्रूरता' नहीं माना जा सकता।
2004 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, कोर्ट ने आईपीसी की धारा 498ए और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति और उसके परिवार को बरी कर दिया। कथित तौर पर उनकी हरकतों की वजह से 2002 में एक महिला ने आत्महत्या कर ली थी। बेंच आरोपी की अपील पर मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसे अप्रैल 2004 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया था।
ये लगाए गए थे आरोप
हाईकोर्ट के 17 अक्टूबर के आदेश के अनुसार, आरोपी के खिलाफ आरोपों में मृतक महिला को उसके द्वारा पकाए गए खाने के लिए ताना मारना, उसे पड़ोसियों से बातचीत करने या अकेले मंदिर नहीं जाने देना, उसे टीवी नहीं देखने देना, उसे चटाई पर सुलाना शामिल है।