Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Telangana Election: तेलंगाना चुनाव आते ही पीछे छूट गए सामाजिक न्याय के नारे, भागीदारी देने में कोताही पर सब कठघरे में

उत्तर भारत की तरह तेलंगाना में भी अगड़ी-पिछड़ी जातियां हैं। महिलाएं भी कम नहीं हैं किंतु आबादी के अनुकूल हिस्सेदारी देने के राजनीतिक नारों की गूंज सिर्फ हिंदी पट्टी तक ही सीमित दिख रही है। हिंदी पट्टी से बाहर निकलते ही सब हवा है। विधानसभा की कुल 119 सीटों वाले तेलंगाना में सभी दलों को सवर्णों पर ज्यादा भरोसा है लेकिन पिछड़ों पर कम।

By Jagran NewsEdited By: Siddharth ChaurasiyaUpdated: Sat, 18 Nov 2023 07:28 PM (IST)
Hero Image
गृह मंत्री अमित शाह ने सत्ता में आने पर ओबीसी को ही तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है।

अरविंद शर्मा, हैदराबाद। उत्तर भारत की तरह तेलंगाना में भी अगड़ी-पिछड़ी जातियां हैं। महिलाएं भी कम नहीं हैं, किंतु आबादी के अनुकूल हिस्सेदारी देने के राजनीतिक नारों की गूंज सिर्फ हिंदी पट्टी तक ही सीमित दिख रही है। हिंदी पट्टी से बाहर निकलते ही सब हवा है। विधानसभा की कुल 119 सीटों वाले तेलंगाना में सभी दलों को सवर्णों पर ज्यादा भरोसा है लेकिन पिछड़ों पर कम।

बिहार में सत्तारूढ़ राजद-जदयू और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी (सपा) जैसे क्षेत्रीय दलों से भी एक कदम आगे बढ़कर देशभर में सामाजिक न्याय की नई प्रणेता बनी कांग्रेस की तेलंगाना में प्रत्याशियों की सूची में ओबीसी की भागीदारी बहुत छोटी है।

हैदराबाद से बाहर निकलते ही गली-मोहल्लों में बहस इस मुद्दे पर भी जारी है। कारण तलाशे जा रहे हैं। बताए जा रहे हैं और तर्क-कुतर्क भी किए जा रहे हैं। सिकंदराबाद के सनत नगर विधानसभा क्षेत्र के अमीरपेठ में सीताराम यादव की जूस दुकान पर सीए (चार्टर्ड एकाउंटेड) के छात्र से लेकर युवा और बुजुर्ग तक तेलंगाना सरकार का भविष्य बता रहे हैं। सर्वसम्मति नहीं बन रही है। सबकी अलग-अलग राय है।

यह भी पढ़ें: Telangana Election: 'लोकसभा में बड़ी हार के लिए क्या राहुल गांधी ने मोदी से पैसे लिए?' असदुद्दीन ओवैसी ने साधा निशाना

हां, एक बात पर सहमति है कि उत्तर भारत की तरह तेलंगाना की राजनीति में भी जाति एक बड़ी सच्चाई बनती जा रही है। छात्राएं उदासीन नजर आईं, लेकिन छात्रों को राजनीति में बढ़ती रुचि देखकर करीब 50 वर्ष के गोगीगर सम्राट ने एक्सपर्ट टिप्पणी दी कि सड़क से लेकर सदन तक महिलाओं और ओबीसी के पक्ष में आवाज बुलंद करने वाली कांग्रेस ने तेलंगाना में सामाजिक न्याय का मजाक उड़ाया है।

प्रदेश में 2014 में कराए गए एक सर्वे के अनुसार ओबीसी की 52 प्रतिशत से ज्यादा आबादी है, लेकिन टिकट सिर्फ 20 लोगों को दिया गया है। वामदलों के साथ गठबंधन कर लड़ने वाली कांग्रेस की ओर से उतारे गए कुल 116 प्रत्याशियों का यह करीब 18 प्रतिशत है, जबकि सवर्ण श्रेणी में आने वाली जाति रेड्डी की आबादी सिर्फ सात प्रतिशत है, फिर भी उसे 26 टिकट थमा दिए गए।

कांग्रेस ने सवर्ण जातियों को कुल 37 टिकट दिए। बीआरएस ने तो कांग्रेस को भी पीछे छोड़ दिया। उसके 51 प्रत्याशी सवर्ण हैं। बात भाजपा की भी निकली। सीए की छात्रा जयंती ने उसे भी कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया, लेकिन पेशे से ठीकेदार सीवी रंगनाथन को भाजपा प्रत्याशियों की संख्या याद थी। जयंती के छूटते ही उन्होंने गिना दिया कि भाजपा ने सबसे ज्यादा 39 टिकट ओबीसी को दिए हैं।

यह कांग्रेस से 19 और बीआरएस से 15 टिकट अधिक है। साथ ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सत्ता में आने पर ओबीसी को ही तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनाने का वादा भी किया है। जब सत्ता ही सौंप देंगे तो बचा क्या है।सिकंदराबाद के लाल बंगला के मो. इस्सार की शिकायत कांग्रेस और बीआरएस से बराबर की है। कहते हैं कि कांग्रेस ने मुस्लिमों को भी आबादी के अनुसार हिस्सेदारी नहीं दी।

यह भी पढ़ें: Telangana Election: 'भाजपा को छोड़कर तेलंगाना में 2G, 3G और 4G पार्टियां', चुनावी रैली में अमित शाह ने विपक्षी दलों का बताया मतलब

राज्य में 13 प्रतिशत मुस्लिम हैं। सामाजिक न्याय के तहत उन्हें कम से कम 15 टिकट चाहिए था, लेकिन मिले हैं सिर्फ छह। बीआरएस ने तीन देकर ही इतिश्री कर ली। मो. इस्सार को भाजपा से कोई शिकायत नहीं। उससे तो अदावत ही है। न लेना-न देना। हैदराबाद से सटे सनतनगर की सीट इसलिए भी चर्चित हो रही है कि यहां से कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा की पत्नी डॉ. कोटा नीलिमा प्रत्याशी हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा रही नीलिमा त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी हैं।

भाजपा और बीआरएस दोनों से बराबर की चुनौती मिल रही है। यही कारण है कि दिल्ली-नागपुर से कांग्रेस नेताओं का आना-जाना लगा हुआ है। कुछ नेताओं ने तो क्षेत्र में कैंप भी कर रखा है। राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार गणना और उसी के अनुपात में सामाजिक हिस्सेदारी देने की पक्षधर कांग्रेस 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा तोड़ने की बात करती है। राहुल गांधी मुखर होकर बयान भी दे रहे हैं।

केसीआर ने तो बहुत पहले ही इसकी पहल भी कर दी है। 2017 में उन्होंने एसटी और अल्पसंख्यकों के आरक्षण को क्रमश: 10 और 12 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव विधानसभा से भी पास कर केंद्र को भेजा है। हालांकि इस पर अमल होना बाकी है। वर्तमान में तेलंगाना में एससी के लिए 15 प्रतिशत, एसटी के लिए 6 प्रतिशत, ओबीसी के लिए 25 प्रतिशत एवं अल्पसंख्यकों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण निर्धारित है।