मदरसों की आड़ में आतंकी फंडिंग और इस्लामिक आतंकवाद का फैलाव- एक्सपर्ट व्यू
देश के लगभग सभी विद्यालय केंद्र और राज्य सरकारों से संबद्ध आधुनिक शिक्षा बोर्डों के नियमों के तहत ही संचालित होते हैं। इन विद्यालयों में आधुनिक शिक्षा प्रदान की जाती है। साथ ही इनमें धर्म से संबंधित तथ्यों को विज्ञान के आधार पर परखा जाता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 22 Sep 2022 11:13 AM (IST)
लोकमित्र गौतम। बीते 10 सितंबर से उत्तर प्रदेश में गैर-सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों का सर्वे चल रहा है। यह सर्वे नेशनल कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) की संस्तुति पर राज्य सरकार द्वारा कराया जा रहा है। इसके बारे में लगभग एक पखवाड़े पहले उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी ने बताया था कि एनसीपीसीआर को कई मदरसों में अनियमितताओं की शिकायतें मिली थीं। इन सभी की जांच के लिए एनसीपीसीआर ने सरकार से सर्वे का अाग्रह किया था, इसीलिए यह हो रहा है।
मदरसों में अध्यापकों की आमदनी का माध्यम क्या है?
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में 16,461 मदरसे हैं, जिनमें से केवल 560 ही सरकारी सहायता प्राप्त हैं। बाकी सभी मदरसे स्ववित्तपोषित हैं। उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्यमंत्री के अनुसार इन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग में की गई तमाम शिकायतों और एनसीपीसीआर की अपेक्षाओं के मुताबिक क्या ये मदरसे जरूरी शर्तों को पूरी कर रहे हैं या नहीं, यह जांचने के लिए सर्वे किया जा रहा है। यह सर्वे महज यह जानने के लिए किया जा रहा है कि इन मदरसों में कितने छात्र पढ़ रहे हैं, उन्हें पेयजल की सुविधा उपलब्ध है या नहीं, मदरसे का फर्नीचर कैसा है, बिजली की आपूर्ति कैसी है, शौचालय ठीक है या नहीं, पढ़ाने वाले अध्यापकों की संख्या क्या है? इनकी आमदनी का माध्यम क्या है और किसी गैर-सरकारी संस्था से मदरसे की संबद्धता क्या है? ये सामान्य जानकारियां हैं, जिन्हें प्रदेश की सरकार को उन लाखों बच्चों के व्यापक हितों के लिए जानना जरूरी है, जो इन मदरसों में पढ़ रहे हैं।
सर्वे कराने का आदेश यूपी सरकार ने क्यों दिया?
इस सर्वे के आरंभ होने के पहले ही एआइएमआइएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इसे लेकर जबरदस्त राजनीति शुरू कर दी। उन्होंने इसे अल्पसंख्यकों के हकों में सरकार का गैर-जरूरी हस्तक्षेप बताया। ओवैसी के अनुसार मदरसे संविधान के अनुच्छेद 30 के अंतर्गत चलते हैं जिनका सर्वे कराने का आदेश उत्तर प्रदेश सरकार ने क्यों दिया? उनका कहना है कि सरकार जिन मदरसों को मदद नहीं देती, उनकी व्यवस्था पर दखल क्यों करना चाहती है? ओवैसी के इस बयान के बाद न केवल यूपी के अल्पसंख्यक मंत्री दानिश अंसारी ने हमला बोलते हुए कहा कि वे हमेशा मुसलमानों को गुमराह करने वाली राजनीति करते हैं, बल्कि एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने भी कहा कि ओवैसी सरासर झूठ बोल रहे हैं। अनुच्छेद 30 का तर्क सरकार के सर्वे पर लागू नहीं होता, क्योंकि सरकार बच्चों के अधिकारों की संरक्षक है, जो स्कूल से बाहर हैं।
सरकार को यह जानने का हक है कि स्कूल न जाने वाले बच्चे किस हालत में हैं और उन्हें शिक्षा प्रणाली के दायरे में शामिल करने का भी अधिकार है। चूंकि उत्तर प्रदेश में थोड़े बहुत नहीं, बल्कि लगभग एक करोड़ बच्चे ऐसे मदरसों में पढ़ रहे हैं, जिनका पूरा आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। वास्तव में देश में मुस्लिमों की गरीबी और पिछड़ेपन का एक कारण यह भी है कि धर्म के नाम पर वे एक ऐसी मदरसा शिक्षा व्यवस्था के दायरे में फंस जाते हैं, जिसका लेखा-जोखा सरकारों के पास नहीं होता।
यही कारण है कि बड़े पैमाने पर मुस्लिम नौजवान जो मदरसों में पढ़ते हैं, न केवल देश की मुख्यधारा की पढ़ाई से दूर हो जाते हैं, बल्कि करियर में भी पिछड़ जाते हैं। ऐसे में सरकारों का दायित्व बनता है कि वे मुस्लिम नौजवानों के भविष्य को ध्यान में रखकर मदरसों को उनके समग्र मूल्यांकन के लिए बाध्य करें, ताकि वे बड़ी संख्या में नौजवान पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित करने के मामले में जवाबदेह बनें। लेकिन वोट की राजनीति के कारण तमाम मुस्लिम नेता ही नहीं चाहते कि कोई सरकार मुसलमानों की बेहतरी के लिए कोई कदम उठाए या उन संस्थाओं को जवाबदेह बनाए, जो मुस्लिमों की शिक्षा आदि के नाम पर कई तरीकों से फंड उगाहते हैं।