'प्रावधानों के आधार पर आरोपी को जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता', एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को जमानत पर रोक को लेकर अहम टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रावधान अदालतों को आरोपी को जमानत देने से नहीं रोकते हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सर्वव्यापी और पवित्र है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधान अदालतों को आरोपी को जमानत देने से नहीं रोकते हैं। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार 'सर्वव्यापी और पवित्र' है।
पीठ ने कहा, "अगर संवैधानिक अदालत को लगता है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी-विचाराधीन के अधिकार का उल्लंघन हुआ है, तो उसे दंडात्मक कानून में प्रतिबंधात्मक वैधानिक प्रावधानों के आधार पर आरोपी को जमानत देने से नहीं रोका जा सकता है। उस स्थिति में, ऐसे वैधानिक प्रतिबंध आड़े नहीं आएंगे।"
अदालतों का जमानत से इनकार करना गलत
अदालत ने कहा, "यहां तक कि दंड विधान की व्याख्या के मामले में, चाहे वह कितना भी कठोर क्यों न हो, संवैधानिक न्यायालय को संविधानवाद और विधि के शासन के पक्ष में झुकना पड़ता है, जिसका स्वतंत्रता एक अभिन्न अंग है।"शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी विशेष मामले के दिए गए तथ्यों में संवैधानिक न्यायालय जमानत देने से इनकार कर सकता है, लेकिन यह कहना गलत होगा कि किसी विशेष विधान के तहत जमानत नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने नेपाल निवासी शेख जावेद इकबाल द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणियां कीं। इसने इकबाल को जमानत पर रिहा कर दिया।पुलिस के अनुसार, इकबाल ने कबूल किया था कि वह नेपाल में जाली भारतीय मुद्रा नोटों के अवैध कारोबार में लिप्त था। उसके खिलाफ अब निरस्त भारतीय दंड संहिता की धारा 489 (बी) (जाली या जाली मुद्रा-नोट या बैंक-नोट को वास्तविक के रूप में उपयोग करना), और 489 (सी) (जाली या जाली मुद्रा-नोट या बैंक-नोट रखना) और बाद में आतंकवाद विरोधी कानून के तहत आरोप पत्र दायर किया गया था। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दी ये दलील
इकबाल की ओर से पेश हुए अधिवक्ता एम एस खान ने दलील दी कि अपीलकर्ता 9 साल से अधिक समय से हिरासत में है। खान ने अधिवक्ता प्रशांत प्रकाश और कौसर खान के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा कि निकट भविष्य में आपराधिक मुकदमा समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है और इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने दलील का विरोध किया और कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप बहुत गंभीर हैं।
अधिवक्ता खान ने कहा कि चूंकि वह एक विदेशी नागरिक है, इसलिए उसके भागने का खतरा है। अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है और ट्रायल कोर्ट को ट्रायल में तेजी लाने का निर्देश दिया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मुकदमा बहुत धीमी गति से चल रहा है और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने की संभावना नहीं है।