12 सौ साल पुराने मंदिर में लग रहे महादेव के जयकारे, अनूठी है इसकी वास्तुकला
भगवान शिव का यह मंदिर करीब 12 सौ साल पुराना है। हिंदु आस्था के प्रतीक इस प्राचीन मंदिर का निर्मांण बांण वंशीय राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने करवाया था।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 31 Jul 2018 11:59 AM (IST)
कोरबा [जेएनएन]। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से रतनपुर होते हुए अंबिकापुर जाने वाले मार्ग पर पाली नामक कस्बे में मनोरम वादियों के बीच एक सुन्दर जलाशय है। इस जलाशय के चारों तरफ बहुत सारे मंदिर स्थित हैं। इनमें से कई मंदिर सदियों पुराने हैं और अब इनके भग्नावशेष ही यहां नजर आते हैं। इन्हीं भग्नावशेषों के बीच एक मंदिर नौवीं शताब्दी से आज तक खड़ा हुआ है। भगवान शिव का यह मंदिर करीब 12 सौ साल पुराना है।
बांण वंशीय राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने करवाया था निर्मांण
मंदिर के चारों तरफ उकेरे गए शिल्प नयनाभिराम हैं। ऊपर की तरफ जहां देवी देवताओं को प्रदर्शित किया गया है, वहीं नीचे श्रृंगार रस से ओत प्रोत नायिकाओं को विभिन्न् मुद्राओं में खजुराहो की तर्ज पर प्रदर्शित किया गया है। हिंदु आस्था के प्रतीक इस प्राचीन मंदिर का निर्मांण बांण वंशीय राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने करवाया था। मंदिर का निर्मांण लाल बलुआ पत्थरों को तराश कर किया गया था। इस मंदिर को लेकर कई तरह की किंवदंतियां यहां प्रचलित हैं।
मंदिर के चारों तरफ उकेरे गए शिल्प नयनाभिराम हैं। ऊपर की तरफ जहां देवी देवताओं को प्रदर्शित किया गया है, वहीं नीचे श्रृंगार रस से ओत प्रोत नायिकाओं को विभिन्न् मुद्राओं में खजुराहो की तर्ज पर प्रदर्शित किया गया है। हिंदु आस्था के प्रतीक इस प्राचीन मंदिर का निर्मांण बांण वंशीय राजा विक्रमादित्य द्वितीय ने करवाया था। मंदिर का निर्मांण लाल बलुआ पत्थरों को तराश कर किया गया था। इस मंदिर को लेकर कई तरह की किंवदंतियां यहां प्रचलित हैं।
नौवीं सदी में हुआ था मंदिर का निर्मांण
मंदिर के अंदर एक शिलालेख खुदा हुआ मिला है, जिसमें 'श्रीमद जाजल्लादेवस्य कीर्ति रिषम" लिखा है। इसके आधार पर यह माना जाता रहा कि मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ और इसके बाद कलचुरी वंशीय यशस्वी राजा जाजल्लदेव प्रथम के समय 11 वीं सदी के अंत में इसका जीर्णोंद्धार हुआ होगा। 19 वीं सदी में भारत के प्रथम पुरातात्विक सर्वेक्षण रॉबर्ट कन्निघम ने मंदिर का निरीक्षण कर इसके बारे में लेख लिखे थे।
मंदिर के अंदर एक शिलालेख खुदा हुआ मिला है, जिसमें 'श्रीमद जाजल्लादेवस्य कीर्ति रिषम" लिखा है। इसके आधार पर यह माना जाता रहा कि मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ और इसके बाद कलचुरी वंशीय यशस्वी राजा जाजल्लदेव प्रथम के समय 11 वीं सदी के अंत में इसका जीर्णोंद्धार हुआ होगा। 19 वीं सदी में भारत के प्रथम पुरातात्विक सर्वेक्षण रॉबर्ट कन्निघम ने मंदिर का निरीक्षण कर इसके बारे में लेख लिखे थे।
दस दिनों तक चलेगा मेला
सावन के पहले सोमवार के मौके पर आज प्रदेश भर से आए श्रद्धालुओं ने यहां शिवलिंग पर जल चढ़ाया। इसके साथ ही दस दिनों तक चलने वाला मेला शुरू हुआ। पूरे भक्तिभाव के साथ श्रद्धालु यहां भगवान महादेव की आराधना में जुटे हुए हैं। मंदिर से लगातार भोलेनाथ के जयकारों की आवाज गूंज रही है। महादेव के प्राचीन शिवलिंग का भष्म श्रृंगार हो रहा है और विशेष पूजा-अर्चना की जा रही है। मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। अनूठा है अष्ट कोणाकार महामंडप
मंदिर के वास्तुशिल्प में इसका अष्ठकोणिय महामंडप बेहद अनूठा है। अनुमान है कि प्रवेश द्वार से लगा एक छोटा बरामदा रहा होगा जिसके बाद ही गुम्बद युक्त अष्ट कोणाकार महामंडप है। अंतराल और गर्भ गृह की ओर से जब गुम्बद को देखते हैं तो वह कई वृत्ताकार थरों से बना है और विभिन्न् आकृतियों से सजाया गया है। मंडप का आंतरिक भाग और स्तम्भ भी विभिन्न् देवी देवताओं, काव्यों में वर्णित पात्रों की कलाकृतियों से परिपूर्ण है। गर्भ गृह के द्वार का अलंकर भी अद्वितीय है।
सावन के पहले सोमवार के मौके पर आज प्रदेश भर से आए श्रद्धालुओं ने यहां शिवलिंग पर जल चढ़ाया। इसके साथ ही दस दिनों तक चलने वाला मेला शुरू हुआ। पूरे भक्तिभाव के साथ श्रद्धालु यहां भगवान महादेव की आराधना में जुटे हुए हैं। मंदिर से लगातार भोलेनाथ के जयकारों की आवाज गूंज रही है। महादेव के प्राचीन शिवलिंग का भष्म श्रृंगार हो रहा है और विशेष पूजा-अर्चना की जा रही है। मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ है। अनूठा है अष्ट कोणाकार महामंडप
मंदिर के वास्तुशिल्प में इसका अष्ठकोणिय महामंडप बेहद अनूठा है। अनुमान है कि प्रवेश द्वार से लगा एक छोटा बरामदा रहा होगा जिसके बाद ही गुम्बद युक्त अष्ट कोणाकार महामंडप है। अंतराल और गर्भ गृह की ओर से जब गुम्बद को देखते हैं तो वह कई वृत्ताकार थरों से बना है और विभिन्न् आकृतियों से सजाया गया है। मंडप का आंतरिक भाग और स्तम्भ भी विभिन्न् देवी देवताओं, काव्यों में वर्णित पात्रों की कलाकृतियों से परिपूर्ण है। गर्भ गृह के द्वार का अलंकर भी अद्वितीय है।