भारी कर्ज में देश के कई राज्य, कुल राजस्व का 13% हिस्सा सिर्फ ब्याज चुकाने में होगा खर्च; मुफ्त रेवड़ियों से परहेज क्यों नहीं?
देश के कई राज्य कर्ज के बोझ से जूझ रहे हैं। अनुमान है कि आने वाले समय में कर्ज का बोझ और बढ़ सकता है। इसका असर राज्य के रेटिंग पर पड़ेगा। कहा जा रहा है कि कई राज्य अपने कुल राजस्व का 13 फीसदी हिस्सा सिर्फ ब्याज पर खर्च करेंगे। वित्त आयोग के मुताबिक कुल राजस्व का 10 फीसदी से अधिक कर्ज चुकाने में नहीं होना चाहिए।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। इस बात के कोई संकेत नहीं है कि भारत में राजनीतिक दल मुफ्त की रेवड़ियां बांटने में कोई कमी करेंगे। ऐसे में तेज आर्थिक विकास दर हासिल करने के बावजूद राज्यों पर कर्ज का बोझ कम होने की सूरत नहीं बन पा रही। देश के प्रमुख राज्यों की वित्तीय स्थिति का आकलन बताता है कि चालू वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान इन पर कर्ज का बोझ इनके जीडीपी के मुकाबले 31-32 फीसद बना रहेगा। इन राज्यों पर पिछले वित्त वर्ष के दौरान कुल जीडीपी का 32 फीसद कर्ज रहा था।
राजस्व का 13 फीसदी हिस्सा कर्ज के ब्याज पर होगा खर्च
यह बात आर्थिक शोध एजेंसी क्रिसिल ने मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में कही है। रिपोर्ट के मुताबिक इस वर्ष कुल राजस्व का 13 फीसद हिस्सा तो ये राज्य कर्ज का ब्याज चुकाने में लगा देंगे जो काफी खतरनाक है। वित्त आयोग का कहना है कि कुल राजस्व का 10 फीसद से ज्यादा हिस्सा कर्ज चुकाने में नहीं होना चाहिए।
इन राज्यों पर खूब कर्ज
क्रिसिल ने महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, गोवा, ओडिसा, छत्तीसगढ़ के बजट पर उक्त रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में बताया गया है कि देश के सभी राज्यों पर जितना कर्ज है उसका 95 फीसद उक्त राज्यों पर है।
राजस्व संग्रह की रफ्तार भी ठीक नहीं
अधिकांश भारतीय राज्य राजकोषीय घाटे की समस्या से जूझ रहे हैं यानी उनके खर्च व राजस्व का अंतर बढ़ता जा रहा है। इनके खर्चे ज्यादा हैं, गारंटीशुदा भुगतान का बोझ बढ़ रहा है और राजस्व संग्रह की वृ्द्धि की रफ्तार भी खास नहीं है। इन राज्यों पर कुल कर्ज का बोझ चालू वित्त वर्ष के दौरान बढ़ कर 96 लाख करोड़ रुपये होने की संभावना है।7.4 लाख करोड़ रुपये का लेना पड़ सकता कर्ज
क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर अनुज सेठी का कहना है कि इस वर्ष राज्यों का राजकोषीय घाटा कुल मिलाकर 1.1 लाख करोड़ रहने की उम्मीद है। ढांचागत विकास, जलापूर्ति, शहरी विकास आदि पर इनकी तरफ से 7.2 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जाने की संभावना है। ऐसे में इन्हें 7.4 लाख करोड़ रुपये के नये कर्ज लेने पड़ सकते हैं।