Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Revised Criminal Law Bills: फांसी की सजा पाया दोषी दया याचिका खारिज करने के निर्णय को कोर्ट में नहीं दे सकेगा चुनौती

देश में आपराधिक कानून बदलने वाला है। नया कानून संसद से पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हो जाएगा। नये कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 कहती है कि दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय के खिलाफ किसी अदालत में अपील नहीं होगी। नये कानून में दया याचिका दाखिल करने की समय सीमा भी तय की गई है।

By Jagran News Edited By: Anurag GuptaUpdated: Sat, 23 Dec 2023 11:30 PM (IST)
Hero Image
दया याचिका दाखिल करने की समय सीमा तय (फाइल फोटो)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। देश में आपराधिक कानून बदलने वाला है। नया कानून संसद से पारित हो चुका है और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हो जाएगा। नये कानून लागू होने के बाद आपराधिक न्याय प्रणाली में काफी बदलाव आएंगे उनमें से एक यह भी है कि फांसी की सजा पाया दोषी राष्ट्रपति या राज्यपाल के दया याचिका खारिज करने के निर्णय को अदालत में चुनौती नहीं दे पाएगा।

कौन दाखिल कर सकता है दया याचिका?

नये कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 472 कहती है कि दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति या राज्यपाल के निर्णय के खिलाफ किसी अदालत में अपील नहीं होगी। यानी सीधा मतलब है कि आदेश को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इतना ही नहीं नये कानून के मुताबिक, कोई तीसरा पक्ष दया याचिका दाखिल नहीं कर सकता।

कानून कहता है कि दया याचिका दोषी, उसका कानूनी उत्तराधिकारी या कोई रिश्तेदार ही दाखिल कर सकता है। इसका मतलब है कि किसी दोषी की सजा माफ कराने के लिए कोई तीसरा पक्ष दया याचिका नहीं दाखिल कर सकता, जबकि मौजूदा कानून में ऐसी कोई शर्त नहीं है।

नये कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की ये दोनों ही व्यवस्थाएं नई हैं, क्योंकि इससे पहले बहुत बार फांसी की सजा पाए दोषी दया याचिका खारिज करने के राष्ट्रपति के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं, इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने उन याचिकाओं पर विचार किया और पूरे मामले के विश्वेषण के बाद मौत की सजा को उम्रकैद में भी तब्दील किया।

यह भी पढ़ें: नया कानून लागू होने से आपराधिक मुकदमा वापस लेने के सरकार के एकतरफा अधिकार पर लगेगा अंकुश

शत्रुघन चौहान बनाम भारत सरकार मामला

इस संबंध में शत्रुघन चौहान बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट का 21 जनवरी, 2014 का फैसला उल्लेखनीय है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड के मामले में गाइड लाइन तय की हैं। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका निपटाने में अनुचित देरी के आधार पर 15 दोषियों की मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी।

राष्ट्रपति या राज्यपाल का आदेश अंतिम होगा

सभी 15 दोषियों की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा दया याचिका खारिज होने के बाद कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था, लेकिन अब नये कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की दया याचिका से संबंधित प्रावधान करने वाली धारा 472 में साफ कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 72 (राष्ट्रपति को दोषी को माफी देने का अधिकार) और अनुच्छेद 161 (राज्यपाल को दोषी को माफी देने का अधिकार) के तहत दिये गए आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में अपील नहीं होगी और राष्ट्रपति या राज्यपाल का आदेश अंतिम होगा।

कानून में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के निर्णय पर पहुंचने के किसी भी सवाल पर कोई भी अदालत में किसी तरह की जांच नहीं की जाएगी। यानी नया कानून कहता है कि किसी भी अदालत को इस चीज की जांच पड़ताल और सवाल करने का अधिकार नहीं होगा कि राष्ट्रपति या राज्यपाल दया याचिका के बारे में लिए गए निर्णय पर कैसे पहुंचे। देखा जाए तो कानून में स्पष्ट तौर पर आगे कोर्ट जाने पर पूर्ण विराम लगाया गया है।

मृत्युदंड के दोषियों की ओर से दया याचिका दाखिल करने के संबंध में नये कानून में एक और खास प्रावधान है जिसके मुताबिक, दया याचिका दोषी, उसका कानूनी उत्तराधिकारी या रिश्तेदार ही दाखिल कर सकता है। यानी किसी तीसरे पक्ष को दोषी की माफी के लिए दया याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं होगा।

यह भी पढ़ें: तारीख पर तारीख का जाएगा जमाना, राजद्रोह कानून भी होगा खत्म; नए क्रिमिनल लॉ को मिली राज्यसभा से भी मंजूरी

दया याचिका दाखिल करने की समय सीमा तय

उल्लेखनीय है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा पाए बलवंत सिंह राजोआणा ने मृत्युदंड की माफी के लिए स्वयं कोई दया याचिका दाखिल नहीं की, उसकी माफी के लिए सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने दया याचिका दाखिल कर रखी है। नया कानून लागू होने के बाद इस तरह कोई तीसरा पक्ष दया याचिका नहीं दाखिल कर पाएगा।

नये कानून में दया याचिका दाखिल करने की समय सीमा भी तय की गई है, जो कि अभी तक तय नहीं थी। नया कानून कहता है कि कि जेल अधीक्षक द्वारा केस के संबंध में ब्योरा सूचित करने की तारीख के बाद तीस दिन में दोषी स्वयं या उसका कानूनी वारिस या रिश्तेदार दया याचिका दाखिल कर सकता है।