प्रसिद्ध लेखक, विचारक और चिंतक डॉ. महीप सिंह का निधन
दिल का दौरा पड़ने से प्रसिद्ध साहित्यकार व विचारक डॉ. महीप सिंह (86) का मंगलवार की दोपहर निधन हो गया। भारत भारती सम्मान से नवाजे जा चुके डॉ. सिंह के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है।
जागरण संवाददाता, नईदिल्ली/ गुड़गांव। दिल का दौरा पड़ने से प्रसिद्ध साहित्यकार व विचारक डॉ. महीप सिंह (86) का मंगलवार की दोपहर निधन हो गया। भारत भारती सम्मान से नवाजे जा चुके डॉ. सिंह के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है। सिंह गुड़गांव के पालम विहार कॉलोनी में अपने बेटे संदीप सिंह के साथ रह रहे थे।
स्वास्थ्य खराब होने के चलते एक सप्ताह पहले उन्हें मेट्रो अस्पताल में दाखिल कराया गया था, जहां मंगलवार दोपहर करीब एक बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। चिकित्सकों के मुताबिक सिंह का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ है।महीप सिंह का परिवार पाकिस्तान के झेलम का रहने वाला था, लेकिन वर्ष 1930 में इनके पिता बच्चों के साथ उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में रहने आ गए थे।
कानपुर के डीएवी कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने पीएचडी की डिग्री आगरा विश्वविद्यालय से की और फिर दिल्ली आ गए। उन्होंने देश- विदेश में अध्यापन कार्य भी किया। उन्होंने एक लेखक, विचारक और स्तंभकार के रूप में ख्याति अर्जित की। उनकी लिखी कहानियां दिशांतर और कितने सैलाब, लय, पानी और पुल, सहमे हुए, अभी शेष है, अपने आप में अद्वितीय हैं।
चार दशक से भी अधिक लंबी अपनी लेखन यात्रा में डा. महीप सिंह ने लगभग 125 कहानियां लिखीं। ‘काला बाप गोरा बाप’, ‘पानी और पुल’, ‘सहमे हुए’, ‘लय’, ‘धूप की उंगलियों के निशान’, ‘दिशांतर और कितने सैलाब’ जैसी कहानियां हिन्दी कहानी के मील के पत्थर हैं। उनके उपन्यास ‘यह भी नहीं’ और ‘अभी शेष है’ काफी चर्चित रहे।