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Dhirubhai Ambani Birth Anniversary: भजिया तलने से रिलायंस तक का सफर, प्रेरणादायक है धीरूभाई अंबानी की ये कहानी

Dhirubhai Birth Anniversaryदेश के सबसे बड़े कारोबारी समूह यानी रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना करने वाले धीरूभाई का जन्म आज ही के दिन ही हुआ था।देश के उद्योग जगत को नई दिशा देने वाले इस बिजनेस लीडर की कहानी हरेक भारतीयों को कुछ नया और बड़ा करने की प्रेरणा देता है।

By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Wed, 28 Dec 2022 10:46 AM (IST)
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प्रेरणादायक है धीरूभाई अंबानी की ये कहानी
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। धीरूभाई अंबानी की आज पुण्यतिथि है। उनका जन्म 28 दिसंबर 1932 को और मृत्यु 6 जुलाई 2002 को हुई। धीरूभाई गुजरात के एक छोटे से गांव चोरवाड में स्कूल टीचर हीराचंद गोवरधनदास अंबानी के तीसरे बेटे थे। धीरूभाई का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, इसलिए उन्होंने बचपन से ही परिवार की आर्थिक मदद शुरू कर दी थी। धीरूभाई परिवार की आर्थिक मदद के लिए गिरनार की पहाड़ियों के पास भजिया बेचा करते थे। यहां उनकी आय तीर्थयात्रियों की संख्या पर निर्भर करती थी।

आज रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) दुनिया की दिग्गज कंपनियों में शुमार है। रिलायंस के संस्थापक धीरूभाई अंबानी ने दुनिया को बताया है कि कोई बड़ा कारोबार खड़ा करने के लिए न तो बड़ी-बड़ी डिग्रियों की जरूरत होती है और न ही किसी अमीर घर में पैदा होने की। अगर कुछ करने का जज्बा हो, तो व्यक्ति कहीं भी पहुंच सकता है।

धीरूभाई 17 साल की उम्र में नौकरी करने के लिए गए थे यमन

धीरूभाई 17 साल की उम्र में नौकरी के लिए अपने बड़े भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए थे, लेकिन धीरूभाई के सपने बड़े थे। वे वापस भारत आ गए और मुंबई से अपनी कारोबारी यात्रा शुरू की। जब वे साल 1958 में मुंबई आए थे, तो अपने साथ बहुत थोड़ा सा पैसा लेकर आए थे। साथ में वे मुंबई की एक चॉल में रह रहे अदन के एक गुजराती दुकानदार के बेटे के पते का कागज लेकर आए थे, ताकि उसके साथ रूम शेयर कर सकें। इसके अलावा उनका कोई जानने वाला मुंबई में नहीं था।

धीरूभाई अपनी छोटी सी बचत से अपना पहला कारोबार शुरू किया

मुंबई पहुंचने के बाद धीरूभाई अपनी छोटी सी बचत से कुछ व्यापार करने की जुगत लगाने लगे। वे व्यापार की तलाश में अहमदाबाद, बड़ौदा, जूनागढ़, राजकोट और जामनगर भी गए। उन्होंने महसूस किया कि कम पूंजी के साथ वे इन जगहों पर किराना, कपड़े या मोटर पार्ट्स आदि की दुकान लगा सकते थे। यह दुकान उन्हें एक स्थिर आय दे सकती थी, लेकिन यह वह नहीं थी, जिसकी उन्हें तलाश थी। उन्हें तेजी से ग्रोथ करनी थी।

वे वापस मुंबई आ गए। अपनी पत्नी, बेटे और खुद को दो कमरे की एक चॉल में रखा व रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन नाम के साथ एक ऑफिस खोला और खुद को एक मसाला व्यापारी के रूप में लॉन्च किया। उनके ऑफिस में एक मेज, दो कुर्सियां, एक राइटिंग पैड, एक पेन, एक इंकपॉट, पीने के पानी के लिए एक घड़ा और कुछ गिलास थे। उनके ऑफिस में कोई फोन नहीं था, लेकिन वे अपने पास के एक डॉक्टर को पैसा देकर उसके फोन का इस्तेमाल करते थे। पहले दिन से ही धीरूभाई ने मुंबई थोक मसाला बाजार में घूमना शुरू कर दिया था और तत्काल डाउन पेमेंट की शर्त पर थोक खरीद के लिए विभिन्न उत्पादों की कोटेशन इकट्ठा किए।

कुछ समय बाद उन्हें लगा कि मसालों की बजाय अगर सूत का व्यापार करें, तो अधिक फायदा होगा। उन्होंने नरोदा में एक वस्त्र निर्माण इकाई शुरू की। यहां से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने दिन-रात मेहनत की और रिलायंस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाते रहे। धीरूभाई ने साल 1959 में केवल 15,000 रुपये से कारोबार शुरू किया था और उनकी मृत्यु के समय रिलायंस ग्रुप की सकल संपत्ति 60,000 करोड़ पर पहुंच चुकी थी। अब रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड 12 लाख करोड़ रुपये की कंपनी हो गई है।

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