आधुनिक भारत के शिल्पकार लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का राष्ट्र सदैव ऋणी रहेगा, एक्सपर्ट व्यू
Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti 2022 भारतीय संस्कृति एवं भू-भाग को विखंडित करने के बाह्य एवं आंतरिक प्रयास होते रहे हैं। स्वाधीनता के बाद नए मुकाम पर खड़े भारत को उसकी हजारों वर्षों की विरासत याद दिलाने के लिए ही सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया था।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Mon, 31 Oct 2022 01:02 PM (IST)
आचार्य राघवेंद्र प्रसाद तिवारी। सनातन संस्कृति में राष्ट्र का अर्थ अत्यंत व्यापक है। यह संस्कृति भूमि के टुकड़े मात्र या कृत्रिम सीमारेखा से घिरे भू-भाग को राष्ट्र मानने पर निषेध रखती है। इसके अनुसार राष्ट्र एक ऐसी इकाई है जिसमें ऐसे मानव समुदाय रहते हों जिनका अतीत, संस्कृति, परंपरा, जीवन पद्धति एवं विचारधारा समान हो एवं जो सह-अस्तित्व की भावना से परिपूर्ण हों। इन्हें चरितार्थ करते हुए पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण में भौगोलिक परिस्थितियों के कारण रहन-सहन, खान-पान, बोली-भाषा, परंपराओं, पर्वों, मान्यताओं सहित समस्त विभिन्नताओं के बावजूद यहां के वासियों के मूल स्वभाव एवं संस्कृति में समानता है। सही अर्थों में भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। साथ ही, भारतीय समाज एक महान संस्कृति एवं वैचारिक अधिष्ठान व संस्कार की मंदाकिनी है। विचार, चिंतन, दर्शन एवं जीवनशैली से यह अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है।
वेदों में प्रकृति एवं मानव के बीच निरूपित एकात्मता एवं सह-अस्तित्व का संबंध समूचे राष्ट्र को स्वीकार है। ‘माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:’ कहकर वेदों ने धरती को मां माना तथा प्राणियों को उसकी संतान। भारतवर्ष के भौगोलिक परिदृश्य को रेखांकित करते हुए विष्णुपुराण में कहा गया है- उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः। ‘अर्थात समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण का भू-भाग भारत है और यहां के निवासी भारतीय हैं।’ वे हजारों वर्षों से इस भू-भाग पर सुख-समृद्धि, भाईचारे के साथ रहते आए हैं। एक समय था जब यहां के प्राकृतिक संसाधन तथा लोगों के परिश्रम ने इसे सोने की चिड़िया बना दिया था। दुनिया भर से व्यापारी यहां अपना धन लेकर आते एवं विभिन्न संसाधन तथा आवश्यक वस्तुएं खरीद कर ले जाते। अपनी ‘उदार चरितानां’ प्रकृति की बदौलत भारत ने विभिन्न देशों को ज्ञान, कला, कौशल, मानव धर्म आदि का पाठ पढ़ाया। किंतु विदेशियों की कुदृष्टि भारत पर पड़ी। उन्होंने आक्रमण कर यहां की शांतिप्रिय जनता को प्रताड़ित किया, धन-संपदा लूटा एवं सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान-प्रणाली को नष्ट किया।
बारदोली की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी
इन त्रासदियों से मुक्ति दिलाने हेतु हमारे देश के अनेक वीर सपूतों एवं साहसी मातृ-शक्तियों ने संघर्ष किया। उनमें से वल्लभभाई पटेल का योगदान अतिमहत्वपूर्ण है। सरदार पटेल को राष्ट्रीय पटल पर पहली पहचान खेड़ा तथा बारदोली सत्याग्रह से मिली। वर्ष 1917 के खेड़ा सत्याग्रह में अंग्रेज सरकार द्वारा लगाए गए अनुचित कर का सरदार पटेल के नेतृत्व में व्यापक विरोध हुआ। अंग्रेजों द्वारा किसानों पर अत्यधिक लगान का बोझ डालने के विरोध में सरदार पटेल ने 1928 में ‘बारदोली सत्याग्रह’ की बागडोर अपने हाथ में ली। मजबूरन अंग्रेज सरकार को लगान कम करना पड़ा।
बारदोली की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी। इस आंदोलन के संदर्भ में गांधी का कहना था कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रहा है एवं ऐसे संघर्ष सीधे स्वराज हेतु किए गए संघर्षों से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते हैं। ऐसे ही अनेक आंदोलनों एवं बलिदानों के फलस्वरूप भारत को अंग्रेजों से मुक्ति मिली। किंतु यह स्वतंत्रता अपने साथ विभाजन की विभीषिका को भी साथ लेकर आई। हमारे देश के दो टुकड़े हो गए। परंतु इससे पहले ही देश को कई टुकड़ों में बांटने की साजिश रची जा चुकी थी। अंग्रेजों ने कहा था कि भारत की 565 रियासतें चाहें तो भारत के साथ रहें, पाकिस्तान के साथ रहे या स्वतंत्र देश बन जाएं। इससे भारतवर्ष के खंड-खंड हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया। त्रावणकोर, हैदराबाद और जूनागढ़ जैसी रियासतें भारत में शामिल होने के विरुद्ध थीं।
सरदार ने ऐसी रियासतों के साथ आम सहमति बनाने हेतु अथक प्रयास किया एवं राष्ट्रहित में साम, दाम, दंड, भेद नीति का प्रयोग किया। जूनागढ़ के नवाब और हैदराबाद के निजाम भारत के साथ फिर भी नहीं जुड़ना चाहते थे। ऐसे में सरदार पटेल ने कुशल रणनीति, सूझ-बूझ एवं सैन्य-बल प्रयोग कर उन्हें भारत का अभिन्न अंग बनाया। विभिन्न रियासतों के भारतीय संघ में एकीकरण में अहम भूमिका निभाने के लिए सरदार पटले को ‘लौह पुरुष’ कहा जाता है।