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गुजरात में गिर एवं उसके आसपास के इलाकों में उत्साहजनक है बब्बर शेरों की संख्या बढ़ना

गिर एवं उसके आसपास के इलाकों में फिलहाल एशियाई शेरों की संख्या 674 बताई गई है जबकि 2015 में हुई गणना में यह तादाद 523 थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 16 Jun 2020 09:58 AM (IST)
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गुजरात में गिर एवं उसके आसपास के इलाकों में उत्साहजनक है बब्बर शेरों की संख्या बढ़ना

मोहम्मद शहजाद। गुजरात में गिर के जंगलों में इन दिनों बब्बर शेरों की दहाड़ ज्यादा गूंज रही है। ऐसा शेरों की ताजा गणना से पता चला है। इसके अनुसार गुजरात के गिर वन क्षेत्र में एशियाई शेरों की आबादी 29 फीसद बढ़ गई है। गिर एवं उसके आसपास के इलाकों में फिलहाल एशियाई शेरों की संख्या 674 बताई गई है, जबकि 2015 में हुई गणना में यह तादाद 523 थी। इस तरह दुनिया में एशियाई शेरों की इस अकेली बची पनाहगाह में शेरों के कुनबे में 151 की बढ़त हुई है। इसका क्षेत्रफल भी 2015 के 22 हजार वर्ग किमी के मुकाबले कुल 30 हजार वर्ग किमी हो गया है। यह खुशखबरी वन्य जीव प्रेमियों के साथ-साथ आम भारतीयों को भी राहत देने वाली है, क्योंकि एशियाई बब्बर शेर पूरे भारत का गौरव हैं।

दिलचस्प यह है कि एशियाई शेरों की तादाद में यह वृद्धि तब हुई है जब 2018 में गिर और उसके आसपास के जंगलों में फैले खतरनाक संक्रमण कैनाइन डिस्टेंपर वाइरस (सीडीवी) के कारण दो दर्जन से अधिक शेरों की असमय मृत्यु हो गई थी। तब उन्हें इस संक्रमण से बचाने के लिए अमेरिका से 300 वैक्सीन मंगाई गई थी। इन प्रयासों से समय रहते सीडीवी के संक्रमण पर काबू पा लिया गया। जबकि इसी संक्रमण के चलते 1994 में पूर्वी अफ्रीका के सेरेंगटी जंगलों में शेरों की कुल आबादी का 30 फीसद सफाया हो गया था।

मालूम हो कि जूनागढ़ के नवाब ने 1936 में पहली बार शेरों की गणना कराई थी। उसके बाद 1965 से थोड़ी-बहुत लेटलतीफी के साथ हर पांच बरस में इनकी जनगणना का काम होता रहा है। 1990 की गणना में इनका कुनबा महज 284 तक ही बचा था, लेकिन सरकारी एवं सामुदायिक स्तर पर किए गए प्रयासों के बाद सकारात्मक नतीजे आने लगे। 2005 तक हुई तीन गणना में इनकी संख्या महज 20 से लेकर 30 तक बढ़ती रही। फिर 2010 की गणना में इसमें 52 और 2015 में पिछली गणना में 117 का उछाल आया। इस बार की शेरों की गणना में 151 की वृद्धि हुई है जो अब तक सर्वाधिक है।

हालांकि 2020 में हुई शेरों की गणना के तरीके पर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। दरअसल इस बार गणना का काम अत्याधुनिक और ज्यादा वैज्ञानिक तरीके से अंजाम नहीं दिया सका। इस बार पूनम अवलोकन (पूíणमा को शेरों की गिनती करने का तरीका) जैसी पारंपरिक पद्धति का इस्तेमाल किया गया। कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि यह ज्यादा सटीक तरीका नहीं है। 2015 की गणना में दो हजार लोगों ने हिस्सा लिया था जिसमें वन विभाग के अधिकारियों के अलावा वन प्रेमी, वन्य जीवों के विशेषज्ञ और एनजीओ के लोग भी थे। अब गिनती की प्रक्रिया का भले जो विवाद हो, शेरों की संख्या का बढ़ना तो वाकई में सुखद है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)