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अक्सर कमजोरों का उत्पीड़न करते हैं शक्तिशाली लोग, जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की ये टिप्पणी?

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के ठाणे जिले के एक जमीन विवाद मामले में सुनवाई की। इस दौरान सर्वोच्च अदालत ने एक अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि हमारे समाज की बनावट ही ऐसी है कि अक्सर शक्तिशाली लोग कमजोरों का शोषण करते हैं। मगर न्याय में कोई पक्षपात नहीं होता है। इसकी मदद से कमजोर भी ताकतवर पर हावी हो सकता है।

By Ajay Kumar Edited By: Ajay Kumar Updated: Sat, 20 Jul 2024 12:02 AM (IST)
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जमीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक जमीन विवाद पर सुनवाई करते हुए कहा कि न्याय में कोई पक्षपात नहीं होता और इसकी मदद से कमजोर भी ताकतवर पर हावी हो सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमारे समाज की संरचना ऐसी है कि शक्तिवान लोग अक्सर कमजोरों का शोषण और उत्पीड़न करते हैं।

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जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने कहा, ''भूमि स्वामित्व एक ऐसा क्षेत्र है, जहां हम देखते हैं कि धोखाधड़ी, छल और लालच के साथ सत्ता की तलवारों को धार दी जा रही हैं।'' शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र के ठाणे जिले में जमीन के एक टुकड़े से संबंधित मामले में की।

न्याय में कोई पक्षपात नहीं होता

पीठ ने कहा कि न्याय में कोई पक्षपात नहीं होता और इसलिए इसकी मदद से कमजोर भी ताकतवर पर हावी हो सकता है। साथ ही कहा, ''हम इस मामले के तथ्यों पर बाद में विस्तार से चर्चा करेंगे, लेकिन यह विक्रेताओं के दुर्भावनापूर्ण इरादों के कारण आम आदमी द्वारा झेली जा रही निरंतर पीड़ा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जो या तो दबाव डालकर या कानूनी प्रक्रियाओं में हेरफेर करके दोहरा लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।''

कमजोर लोगों की सहायता करता है न्याय

अदालत ने कहा कि कभी-कभी वादी की पीड़ा तब और बढ़ जाती है, जब न्याय का ऐसा मजाक दशकों तक चलता है और ऐसे मामलों में कानून कमजोर लोगों की सहायता के लिए आता है। पीठ ने कहा, ''ऐसे मामलों का फैसला करते समय हम सिर्फ लोगों के जीवन और संपत्तियों से ही नहीं निपट रहे होते हैं, बल्कि कानूनी प्रणाली में उनके भरोसे से भी निपट रहे होते हैं। हमारे सामने आए ऐसे मामलों में हमें केवल विवादास्पद लेन-देन का यांत्रिक विश्लेषण नहीं करना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि अन्याय का निवारण हो और किसी को भी अपने गलत कामों से लाभ न मिले।''

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