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Indian Army Uniform: ब्रिगेडियर और बड़ी रैंक के अफसरों की वर्दी होगी एक समान, ऐसे समझें यूनिफॉर्म के बदलाव

हाल ही में भारतीय सेना में कुछ बड़े और अहम बदलाव किए गए हैं। ब्रिगेडियर रैंक और उससे ऊपर के अफसरों की यूनिफॉर्म के अंतर को अब खत्म कर दिया गया है। इस खबर के माध्यम से बताते हैं कि इस बदलाव से क्यों और क्या बदलेगा।

By Versha SinghEdited By: Versha SinghUpdated: Thu, 11 May 2023 05:12 PM (IST)
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ब्रिगेडियर और उससे ऊपर की रैंक के अधिकारियों की वर्दी होगी एक समान
नई दिल्ली। Indian Army:  ब्रिगेडियर रैंक और उससे ऊपर के अफसरों की यूनिफॉर्म के अंतर को अब खत्म करने के लिए सेना द्वारा एक बड़ा फैसला लिया गया है। एक अगस्त से इनकी यूनिफॉर्म एक जैसी ही होगी। भले ही उनका कैडर और नियुक्ति करने का तरीका अलग हो।

न्यूज एजेंसी PTI से मिली जानकारी के अनुसार, भारतीय सेना ने रेजिमेंट की सीमाओं से परे, वरिष्ठ नेतृत्व के बीच सेवा मामलों में सामान्य पहचान और दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए ये फैसला लिया है। इस फैसले से भारतीय सेना की निष्पक्षता और न्यायसंगत संगठन और मजबूत होगा।

इस फैसले के बाद अब अधिकारियों की कैप, कंधे पर लगा बैज, गोरगेट पैच, बेल्ट और जूते का मानकीकरण किया जाएगा। फ्लैग-रैंक अधिकारी अब कोई पट्टा (कमरबंद) नहीं पहनेंगे। कर्नल और नीचे के रैंक के अधिकारियों की वर्दी में कोई बदलाव नहीं होगा। ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल रैंक के सभी अधिकारी अब एक ही रंग के बैरे (टोपी), रैंक के सामान्य बैज, एक सामान्य बेल्ट बकल और एक जैसे जूते ही पहनेंगे।

सेना द्वारा इस बड़े बदलाव के बाद वर्दी देखकर अब किसी भी रेजिमेंट या कोर की पहचान नहीं की जा सकेगी। उच्च रैंक के सभी अधिकारी वर्दी के एक ही पैटर्न उपयोग करेंगे।

अब तक कैसी थी वर्दी?

अब तक लेफ्टिनेंट से जनरल रैंक के सभी अधिकारी अपने रेजिमेंटल या कोर के अनुसार वर्दी (पोशाक या उपकरण) पहनते हैं। अब तक इन्फैंट्री अधिकारी और सैन्य खुफिया अधिकारी गहरे हरे रंग के बैरे पहनते थे, बख्तरबंद कोर अधिकारी काले बैरे पहनते थे।

इसके अलावा आर्टिलरी, इंजीनियर्स, सिग्नल, एयर डिफेंस, ईएमई, एएससी, एओसी, एएमसी और कुछ मामूली कोर अधिकारी गहरे नीले रंग के बैरे पहनते थे। पैराशूट रेजिमेंट के अधिकारी मैरून रंग के कपड़े पहनते थे। आर्मी एविएशन कोर के अधिकारी ग्रे बैरे पहनते थे।

गोरखा राइफल्स रेजिमेंट, कुमाऊं रेजिमेंट, गढ़वाल रेजिमेंट और नागा रेजिमेंट के अधिकारी स्लौच टोपी पहनते हैं जिसे बोलचाल की भाषा में तराई हाट या गोरखा हैट कहा जाता है।

बता दें कि हर इन्फैंट्री रेजिमेंट और कोर लैनयार्ड का अपना अलग-अलग पैटर्न होता है जिसे वे कंधे के चारों ओर पहनते हैं। परंपरा के अनुसार इसे दाईं या बाईं शर्ट की जेब में टांका जाता है। वहीं, हर रैंक के बैज भी अलग-अलग होते हैं।

राइफल रेजिमेंट रैंक काले रंग के बैज पहनते हैं, जबकि कुछ रेजिमेंट गिल्ट और सिल्वर रंग के बैज पहनते हैं। अलग-अलग रंग के बैकिंग होते हैं, जिन्हें रेजिमेंट या कोर की व्यक्तिगत परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार रैंक के इन बैज के साथ पहना जाता है।

वहीं, रेजिमेंटल परंपरा को देखते हुए वर्दी पर बटन भी अलग-अलग तरह के होते हैं। राइफल रेजिमेंट काले बटन पहनते हैं जबकि ब्रिगेड ऑफ द गार्ड्स के अधिकारी गोल्डन बटन पहनते हैं। बेल्ट में रेजिमेंटल परंपराओं के अनुसार अलग-अलग बकल हैं।

क्या ये पहली बार हुआ है?

जानकारी के अनुसार, इस प्रथा को भारतीय सेना ने 40 साल पहले अपनाया था। उस समय में सभी आला अधिकारी एक जैसी यूनिफॉर्म पहनते थे।

बता दें कि लगभग 1980 के दशक के मध्य तक रेजिमेंटल सेवा लेफ्टिनेंट कर्नल के पद तक थी। कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों में सामान्य वर्दी पैटर्न और प्रतीक चिन्ह होते थे।

कर्नल और ब्रिगेडियर ने अपने रेजिमेंटल प्रतीक चिन्ह को छोड़ दिया और अपने टोपी बैज पर अशोक प्रतीक पहननना शुरू कर दिया था और बैरे का रंग खाकी होता था।

हालांकि, 1980 के दशक के मध्य में एक बटालियन या रेजिमेंट की कमान को कर्नल के पद पर अपग्रेड करने का फैसला लिया गया था। इस तरह, कर्नल ने फिर से रेजिमेंटल प्रतीक चिन्ह पहनना शुरू कर दिया था।

इसके अलावा, ब्रिगेडियर को जनरल अधिकारियों की टोपी बैज पहनने की अनुमति दी गई थी जिसमें ओक के पत्तों की माला के साथ क्रॉस तलवार और बैटन शामिल किए गए थे।

अब क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत?

सेना में रेजिमेंटल सेवा अधिकांश अधिकारियों के लिए कर्नल के पद पर समाप्त होती है, इसलिए उस खास रेजिमेंट या कोर के साथ यूनिफॉर्म में भी बदलाव अंतिम बदलाव होना चाहिए जिससे किसी भी रेजिमेंट को उच्च रैंकों पर पदोन्नत न किया जाए।

चूंकि अक्सर अलग-अलग रेजिमेंटल सैनिकों को उच्च रैंकों या कर्नल पद पर नियुक्त किया जाता है। ऐसे में अब ये सैनिक अपने रेजिमेंट की वर्दी की जगह एक ही तरह की वर्दी में दिखाई देंगे। 

रिपोर्टस के मुताबिक ये फैसला लंबे और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद पिछले महीने सेना कमांडरों के सम्मेलन के दौरान लिया गया था। हालांकि परिवर्तन के पीछे कई प्रमुख कारण हैं, महत्वपूर्ण यह है कि ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी बड़े पैमाने पर मुख्यालय में तैनात हैं। जहां पर सभी सेवाओं के अधिकारी एक साथ काम करते हैं।

ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक वाले अधिकारी वे हैं जिन्होंने पहले से ही इकाइयों या बटालियनों की कमान संभाली है और अब मुख्यालयों में तैनात किए गए हैं।  इस तरह से सभी की एक तरह की वर्दी कार्यस्थल में समान पहचान स्थापित करेगी।

साथ ही इससे भारतीय सेना में भावनात्मक तालमेल भी बैठ सकेगा। वहीं सभी वरिष्ठ रैंक के अधिकारियों में एकरूपता होगी। कर्नल या उससे नीचे के रैंक के अधिकारियों की वर्दी पहले की ही तरह होगी।

इससे पहले बदली गई है भारतीय सेना की वर्दी

बता दें कि साल भारतीय सेना की वर्दी में साल 2022 में बदलाव किया गया था। 15 जनवरी 2022 को सेना दिवस परेड के दिन नई वर्दी की पहली झलक दिखाई दी थी। सैनिकों ने नई वर्दी को ही पहन कर परेड ग्राउंड पर करतब किया था। वर्दी बदलने का ये फैसला भारतीय सेना ने लंबे समय बाद लिया था।

बता दें कि ये फैसला इंडियन आर्मी की नई कॉम्बेट यूनिफॉर्म की सुरक्षा को देख कर लिया गया था। सेना के यूनिफॉर्म में खास तौर पर अलग रंगों का इस्तेमाल किया गया था। 2022 में भारतीय सेना ने करीब 13 लाख सैनिकों को नई वर्दी दी थी।

क्या थी न्यू कॉम्बेट यूनिफॉर्म की खासियत?

इस कॉम्बेट यूनिफॉर्म को सुरक्षा मामलों में काफी अहम माना गया था। इंडियन आर्मी की नई वर्दी में कई ऐसे रंगों का भी उपयोग किया गया था जो सैनिकों को किसी लड़ाई के दौरान किसी भी जगह पर आसानी से छिपने में मदद करेंगे। वर्दी में रंगों का चुनाव सैनिकों की सुरक्षा के लिहाज से भी किया गया था।

वर्दी में इस्तेमाल रंग ऐसे थे जो दुश्मन की नजर में आने से बच सकें। इस बदलाव के बाद पहले की तरह सैनिकों को वर्दी की नई शर्ट को पैंट के अंदर इन करने की जरूरत नहीं पड़ती। नई वर्दी का रंग प्रतिशत वही रखा गया था जो वर्तमान वर्दी में इस्तेमाल किया जाता रहा है।

वर्दी में जैतून और मिट्टी सहित दूसरे रंगों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता रहा है, जिसका उपयोग अभी भी किया जा रहा है।

नई लड़ाकू वर्दी में भी कंधे और कॉलर टैग काले रंग के रखे गए थे। कंधे की धारियों को रैंक के हिसाब से दिखाते हुए इसे आगे के बटनों पर ले जाने का नियम बनाया गया।

इस कॉम्बेट यूनिफॉर्म को तैयार करने के लिए नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्‍नोलॉजी (NIFT) से भी विचार विमर्श किया गया था। इसके साथ ही अन्य देशों की सेनाओं की यूनिफॉर्म पर भी शोध किया गया जा चुका है।

अन्य सेनाओं में क्या परंपरा है?

ब्रिटिश सेना में, जहां से भारतीय सेना अपने समान पैटर्न और संबंधित हेरलड्री प्राप्त करती है, कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी को स्टाफ वर्दी के रूप में संदर्भित किया जाता है, इसे रेजिमेंटल वर्दी से अलग करने के लिए रेजिमेंटल वर्दी के किसी भी आइटम, विशेष रूप से हेडड्रेस, को स्टाफ की वर्दी के साथ पहनने की अनुमति नहीं है।

पड़ोसी देशों में, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सेनाएँ ब्रिटिश सेना की तरह ही समान पैटर्न का उपयोग करती हैं।

लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से परे सभी रेजिमेंटल वर्दी आइटम को छोड़ दिया जाता है। ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के सभी अधिकारी समान पैटर्न की वर्दी पहनते हैं।

खाकी वर्दी का चलन कैसे हुआ शुरू?

ईस्ट इंडियन कंपनी ने भारतीय सैनिकों को रंगीन वर्दी पहनाना शुरू कर दिया था। वर्दी के इतने अधिक चटकिले रंग के कारण दुश्मन आसानी से भारतीय सैनिकों को अपना निशाना बना लेती थी। जिसके कारण बड़ी संख्या में कई सैनिक मारे जाते थे। जिसे देखते हुए ब्रिटिश भारतीय सेना ने खाकी वर्दी पहनाए जाने का फैसला किया था।

ब्रिटिश भारतीय सैनिकों ने पहले और दूसरे विश्व युद्धों में इन वर्दी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था। इसके अलावा ब्रिटिश भारतीय सैनिकों को खाकी शॉर्ट्स भी पहनने का अधिकार दिया गया था।