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अब ठगी ही नहीं लोगों की जान तक ले रहा साइबर क्राइम, कड़ा कानून बनाने की जरूरत, जानिए क्या है डिजिटल अरेस्ट?

साइबर ठगी के मामले अब सिर्फ धमकाकर डिजिटल अरेस्ट के जरिये लाखों-करोड़ों रुपये खाते में ट्रांसफर कराने तक सीमित नहीं हैं बल्कि फोन पर मिली झूठी धमकी से डरकर लोगों की जान भी जाने लगी है। आगरा में शिक्षिका की मौत की घटना ने सभी को झकझोर दिया है। साइबर ठगी डिजिटल अरेस्ट को लेकर सरकार गंभीर है और पुलिस भी अलर्ट है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 07 Oct 2024 07:00 AM (IST)
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साइबर अपराध से निपटने में मौजूद कानून अपर्याप्त। (सांकेतिक फोटो)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। साइबर ठगी के मामले अब सिर्फ धमकाकर डिजिटल अरेस्ट के जरिये लाखों-करोड़ों रुपये खाते में ट्रांसफर कराने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि फोन पर मिली झूठी धमकी से डरकर लोगों की जान भी जाने लगी है। आगरा में शिक्षिका की मौत की घटना ने सभी को झकझोर दिया है। साइबर ठगी, डिजिटल अरेस्ट को लेकर सरकार गंभीर है और पुलिस भी अलर्ट है, लेकिन क्या मौजूदा कानून इनसे निपटने में सक्षम हैं?

क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े?

विशेषज्ञ मौजूदा कानूनों को इनसे निपटने में पर्याप्त नहीं मानते। उनका कहना है कि साइबर क्राइम से निपटने के लिए इसी को समर्पित कड़ा कानून लाने की जरूरत है ताकि लोगों में अपराध के प्रति डर पैदा हो और उस पर लगाम लगे।

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सरकार ने छह फरवरी को साइबर ठगी की शिकायतों और ठगी गई राशि का जो ब्योरा संसद में पेश किया था, उससे पता चलता है कि एक जनवरी से लेकर 31 दिसंबर, 2023 तक देशभर में साइबर ठगी की कुल 11,28,265 शिकायतें दर्ज हुईं जिनमें कुल 7,48,863.9 लाख रुपये ठगे गए। जबकि 92,159.56 लाख रुपये फ्रीज किए गए। 3,19,799 शिकायतें अभी होल्ड पर हैं। ये आंकड़े साइबर ठगी की गंभीरता दर्शाते हैं।

क्या है डिजिटल अरेस्ट?

पहले लोगों को सिर्फ फोन, एसएमएस, व्हाट्सएप या मेल पर लिंक भेजकर ठगी में फंसाया जाता था, लेकिन अब साइबर ठगों ने डिजिटल अरेस्ट का नया तरीका निकाला है जिसमें व्यक्ति अपने ही घर में वीडियो चैट पर हर समय कनेक्ट रहता है उसे फर्जी पुलिस, फर्जी कोर्ट आर्डर के जरिये जेल भेजने का भय दिखाकर खाते से पैसा ट्रांसफर कराया जाता है। जब तक वह समझ पाए कि उसके साथ ठगी हुई है तब तक ट्रांसफर की गई रकम निकाली जा चुकी होती है और फोन नंबर बंद हो चुके होते हैं।

मौजूदा कानून पर्याप्त नहीं

साइबर अपराधों से निपटने में मौजूदा कानूनों की सक्षमता पर साइबर क्राइम विशेषज्ञ व वकील पवन दुग्गल कहते हैं कि मौजूदा कानून इनसे निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। अभी अपराध जमानती हैं और सजा हल्की है जिससे अपराध के प्रति भय पैदा नहीं होता। मौजूदा आइटी एक्ट में तीन वर्ष तक की सजा व पांच लाख जुर्माना है। अपराध जमानती है।

साइबर क्राइम की प्रयोगशाला बना भारत!

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में कुछ उपबंध जोड़े गए हैं, उसमें इलेक्ट्रॉनिक धोखाधड़ी में सात वर्ष तक की सजा है। सजा की मात्रा पर्याप्त नहीं है। वह कहते हैं कि भारत साइबर क्राइम की प्रयोगशाला बन गया है। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का भी अपराध में इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में साइबर अपराध से निपटने के लिए एक समग्र रणनीति और अलग से कड़ा कानून लाने की जरूरत है। जिसमें कड़ी सजा के साथ तय समय में केस का निपटारा होने की व्यवस्था हो।

अपराधियों में भय पैदा करना जरूरी

अभी साइबर अपराध में सजा की दर एक प्रतिशत से भी कम है। मौजूदा कानून में डिटरेंस एलिमेंट नहीं है। इससे अपराधियों में भय नहीं होता। कड़ा कानून होने के साथ यह संदेश जाना जरूरी है कि सजा मिलेगी, ताकि लोगों में अपराध के प्रति भय पैदा हो। अगर अलग कानून न बनाया जाए तो मौजूदा कानून को प्रभावी ढंग से संशोधित किया जाना चाहिए। कानून कड़ा करने के साथ ही सर्विस प्रोवाइडर को भी जिम्मेदार बनाना होगा, तभी इस पर लगाम लगेगी।

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